उदयपुर, मौताणा जैसी कुरीति जोर जबरदस्ती से समाप्त नहीं की जा सकती है, क्योंकि इससे जनजाति समाज हिंसक प्रतिक्रिया कर सकता है।
यह विचार मंगलवार को यहां पुलिस लाइन सभागार मेें मौताणा विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर जिला कलेक्टर विकास भाले ने व्यत्त* किए। सुखा$िडया विश्वविद्यालय एवं लोक प्रशासन विभाग राजस्थान द्वारा आयोजित गोष्ठी को संबेाधित करते हुए जिलाधीश ने कहा कि पुलिस एवं प्रशासनिक अमले को सावधानी पूर्वक कार्यवाही करनी होगी। उन्होने विष्वास दिलाया की संगोश्ठी में आये सुझावों पर कार्य योजना निर्मित होगी। विशिष्ट अतिथि प्रो. एन.एस.राठौड ने कहा कि जनजाति समाज की जीवन शैली प्रकृति के समीप होती है। अत: उनका समाधान उसी परिवेष में होना चाहियें । मुख्य अतिथि टी.सी. डामोर महानिरीक्षक पुलिस उदयपुर रेंज उदयपुर ने पुलिस अधिकारियों से आह्रवान किया कि वह मौताणा, चढोतरा जैसे प्रकरणों को पूर्णत: वैज्ञानिक पद्घति से वर्णित करे तथा शोध कार्य हेतु विष्वविद्यालय के सहयोग लें। जिला पुलिस अधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा ने कहा कि पूरे विष्व में मानव स्वभाव एक जैसा है। किसी भी समाज का पतन भले लोगों की निश्क्रियता के कारण होता है। आज समाज का नेतृत्व नकारात्मक लोग कर रहे हैं। अत: हमे खुद के गिरेबान में झाक कर सुधारों की षुरूआत स्वयं से करनी होगी। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक कालूराम रावत ने सुझाव दिया की मौताणा जैसी घटनाओं का विस्तृत डेटा-बेस तैयार होना चाहियें व इन प्रकरणों मे सहायता करने वालों को पुरूस्कार मिलना चाहियें तथा केस ऑफिसर स्कीम का सहारा लेकर व विस्थापित लोगों का पुर्नवास कर इस समस्या से मुक्ति पायी जा सकती है।
सुबह के सत्र में विषिश्ट आंमत्रित वक्ता इतिहासकार डॉ. सुरेन्द्र डी. सोनी ने कहा कि जिन आदिवासियों को हम असभ्य मानते हैं वह हमसे अधिक शिक्षित, स्वावलम्बी, तथा संस्कारवान होते है। बंद समाज होने के कारण व हमेशा सामुदायिक असुरक्षा के भाव से ग्रस्त रहते हैं। आज संगोष्ठी में दो दर्जन शोध पत्र पढे गये।