आतंक का आरोप, दान से मदद

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पिछले दो साल में देश भर में ऐसे दर्जनों मुसलमान युवा जेल से रिहा किए गए हैं जिन पर चरमपंथी घटनाओं में शामिल होने के आरोप थे.

अदालत ने इस तरह के मामलों में 100 से अधिक मुसलमान युवाओं को इलज़ामों से बाइज्जत बरी कर दिया है. इस तरह के युवाओं की मदद कर रही हैं कुछ मुस्लिम संस्थाएं. इनमें सबसे आगे है जमीयत-उल-उलेमा-ए हिंद.

अक्षरधाम मंदिर पर हमले का मामला हो या मालेगांव बम धमाके का, इस संस्था ने आतंकवाद के मामलों में मुस्लिम युवाओं का मुक़दमा लड़ने और उन्हें इंसाफ दिलाने में अहम भूमिका निभाई है.

muslim acquittal

गुलज़ार आज़मी इस संस्था के लीगल सेल के अध्यक्ष हैं. वो कहते हैं कि अब तक उनकी संस्था ने 104 मुस्लिम युवाओं को आतंक के इलज़ाम से बरी करवाया है.

वो बताते हैं, “इनमें से कई ऐसे थे जिन्हें निचली अदालतों ने फांसी की सजा सुनाई थी.” उन्होंने बताया कि उनकी संस्था 65 मुक़दमों में 560 मुस्लिम युवाओं के मुक़दमे लड़ रही है.

आज़मी के मुताबिक़ जमीयत की वकीलों की एक टीम पहले हर केस के तह तक जाती है. यह टीम वही मुक़दमा लड़ने को तैयार होती है जिसमें ये साफ़ होता है कि मुल्ज़िम को फंसाया गया है या वो बेक़सूर है.

गुलज़ार आज़मी कहते हैं कि जमीयत ने इस काम को उस समय शुरू किया जब वकीलों की फीस न देने के कारण कई बेक़सूर मुस्लिम यवाओं को सज़ाएं मिलने लगीं. पैसों की कमी के कारण वो वकीलों की फ़ीस नहीं दे सकते थे और वो मुक़दमा हार जाते थे.”

muslim indiaImage copyrightAP

जमीयत ने रमज़ान के महीने में मस्जिदों में चंदा जमा करना शुरू किया है. हर साल मुसलमान अपनी कमाई का 2.5 फीसद हिस्सा ज़कात में दान करते हैं. कई लोग ग़रीबों को पैसे देते हैं और कई लोग ऐसी संस्थाओं को जो अच्छे कामों में जुटी हैं. जमीयत ने अब तक इन पैसों में से दो करोड़ रुपए इन मुक़दमों पर खर्च किए हैं.

इस पैसे का एक छोटा हिस्सा उन मुस्लिम युवाओं के परिवारों को दिया जाता है जो या तो जेल में हैं या जो बेगुनाह साबित होकर समाज से दोबारा जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

गुलज़ार आज़मी के मुताबिक़ वो बेक़सूर ग़ैर मुस्लिमों के मुक़दमे भी लड़ते हैं. उनकी संस्था ने दो ऐसे हिंदुओं को भी बरी करवाया है जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी. लेकिन ये आतंकवाद से जुड़े मुक़दमे नहीं थे.

muslim indiaImage copyrightREUTERS

जमीयत के इस काम की सराहना मुसलमान खुलकर कर रहे हैं.

पश्चिम बंगाल में युवा मुस्लिम के संगठन के पदाधिकारी मुहम्मद कमरुजमां कहते हैं कि ग़रीब मुस्लिम नौजवान, जो पैसे की कमी की वजह से ख़ुद को निर्दोष साबित नहीं कर पा रहे हैं, ऐसे में उन्हें निर्दोष साबित करने के लिए जमीयत के पास कोई प्रोग्राम है तो यह अच्छी बात है.

कोलकाता की एक बड़ी मस्जिद के इमाम क़ारी मुहम्मद शफ़ीक़ कहते हैं कि ज़कात के पैसे को ग़रीब मुसलमानों की रिहाई के लिए अदालत में उनकी पैरवी के लिए खर्च की जाए, तो यह एक अच्छा क़दम है

eidImage copyrightREUTERS

पिछले साल जमीयत ने एक और बड़ा क़दम उठाया. इसने आतंकवाद के मामलों से बरी हुए मुस्लिम युवाओं को मुआवज़ा दिलाने के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है.

अक्षरधाम हमले के मामले में बरी हुए सभी छह मुसलमानों की तरफ से जमीयत ने गुजरात पुलिस के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में मुक़दमा किया है.

इसमें उन पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की गई है जिन्होंने ग़लत तरीक़े से इन मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार किया था.

आतंक विरोधी क़ानून पोटा के सेक्शन 58 में इस बात का प्रावधान है कि इस तरह के मामलों में लोगों को फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है. उनसे बरी हुए लोगों को मुआवजा देने को कहा जा सकता है. इन अधिकारियों के खिलाफ आरोप सही पाए जाने पर अधिकारियों को दो साल की जेल की सजा हो सकती है.

इस केस की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जल्द शुरू होने वाली है.

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