.मां मुझे टैगोर बना दो’

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DSCN7835उदयपुर………..मां मुझे टैगोर बना दो’ एक बालक की पढ़ाई करने व कविता लिखकर टैगोर बनने की संघर्श यात्रा है नाटक में एक लड़का बुद्धुराम अपने षिक्षक से प्रभावित होकर कविता लिखना चाहता है। जब यह बात वो अपने षिक्षक को बतलाता है तब षिक्षक रविन्द्रनाथ की कविता पुस्तक गीतांजलि देते है। वो उसे पढ़ता है किन्तु समझ नहीं पाता। षिक्षक से पुछता है, षिक्षक रास्ता दिखाता है और वो एक कविता लिखता है। षिक्षक को दिखाता है। षिक्षक उसे कहता है वाह तुने तो मुझसे भी अच्छी कविता लिखी है। तू टैगोर बन सकता है और वो विद्यार्थी इसे अपना जीवन लक्ष्य बना लेता है। मैं समझ गया कि टैगोर किसे कहते हैै पर अब मैं टैगोर नहीं बनना चाहता हँू मैं अपने षिक्षक जैसा बनना चाहता हूँ जिसके पास ज्ञान का अथाह भण्डार है, पर वे टैगोर नहीं बने और हम जैसे कितने ही बच्चों को उन्होंने टैगोर बनाया। मुझे तो बस अब अपने मास्टर साब जैसा बनना है। नाटक में मातृ प्रेम, पिता के प्रति श्रद्धा अभिभावकों के कठोर परिश्रम से अर्जित धन से बालक को पढ़ाना और बालक से आग्रह करना कि वह तुम्हें पढ़ना चाहिए यही उमर है पढ़ने की। नाटक के मर्मस्पर्षी दृष्यों ने बालकों व उपस्थित दर्षकों को झकझोर दिया। इस नाटक का लेखन निर्देषन व अभिनय लक्की गुप्ता ने किया है।

DSCN7838और अब नहीं बनना मुझे टैगोर मन को भावुक और अन्दर से झकझोर देने वाली ये पंक्तियां हैं। मां मुझे टैगोर बना दे नाटक की जो विद्याभवन पॉलिटेक्निक महाविद्यालय के प्रांगण में लगभग 500 विद्यार्थियों, अभिभावकों, षिक्षकों के साथ उपस्थित मुख्य अतिथि आई.एस.टी.ई. के राजस्थान चेप्टर के संस्थापक अध्यक्ष एवं संयुक्त निदेषक तकनीकी षिक्षा निदेषालय डी.एस. यादव की उपस्थिति में मंचित किया गया। स्वागत प्राचार्य अनिल मेहता ने किया इस अवसर पर रंगकर्मी षिवराज सोनवाल, रेखा सिसोदिया, मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट से नन्दकिषोर षर्मा एवं नितेष सिंह, डॉ. श्रीराम आर्य, डी.एस. पालीवाल, एसआईइआरटी की लावण्या षर्मा उपस्थित थी।

 

Shabana Pathan
Shabana Pathanhttp://www.udaipurpost.com
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