संसद में आज से मानसून सत्र शुरू हो गया है. ये सत्र 18 जुलाई से लेकर 10 अगस्त तक चलेगा. पिछले कुछ समय में संसद में कामकाज को लेकर सवाल उठते रहे हैं. खासकर संसद में होने वाले हंगामे और बहिष्कार को लेकर खराब होने वाले समय को लेकर. क्या आपको मालूम है कि संसद में एक घंटे की कार्यवाही पर कितना खर्च होता है. करीब 1.5 करोड़ रुपया यानि हर मिनट की कार्यवाही पर 2.5 लाख रुपया.
संसद के सत्र कुल कितने दिनों के होते हैं?
– खुद अंदाज लगाया जा सकता है कि संसद के दोनों सदनों में होने वाले बॉयकाट और हंगामे से जनता का कितना पैसा बर्बाद हो जाता है. मोटे तौर पर देखा जाए तो संसद में सालभर के तीन सत्रों में छह से सात काम के होते हैं. इनमें भी अगर अवकाश और सप्ताहांत के दिनों को निकाल दें तो दो से तीन महीने और कम हो जाते हैं. इस लिहाज से सालभर में वास्तविक काम के दिन 70-80 ही होते हैं. लेकिन इतने दिन भी संसद चल नहीं पाती. 1982 ही एकमात्र ऐसा साल था जब हमारी संसद 80 दिन चल पाई थी.
संसद कितने बजे शुरू होता कामकाज?
– संसद में कामकाज सुबह 11 बजे शुरू होता है और आमतौर पर शाम छह बजे तक चलता है. लेकिन ये पक्का नहीं होता. कभी कभी शाम को देर तक कार्यवाही चलती रहती है. इसमें दोपहर में एक बजे से लेकर दो बजे तक का समय लंच का होता है लेकिन कभी कभी लंच का समय बदला भी जा सकता है या खत्म किया जा सकता है. ये स्पीकर पर निर्भर करता है. शनिवार और रविवार के दिन संसद में कार्यवाही नहीं चलती, ये दिन सप्ताहांत अवकाश के होते हैं
संसद के तीन सत्र कब कब होते हैं?
– बजट सत्र – फरवरी से लेकर मई
– मानसून सत्र – जुलाई से अगस्त-सितंबर
– शीत सत्र – नवंबर से दिसंबर
किस तरह संसद कार्यवाही पर खर्च होता है धन ?
लोकसभा के पिछले शीतकालीन सत्र पर हुआ कुल खर्च – 144 करोड़ रुपए
प्रतिदिन कार्यवाही का समय – छह घंटे
शीतकालीन सत्र में संसद चली – 90 घंटे
प्रति घंटे का खर्च – 1.44 करोड़ रुपए
संसद को एक घंटे चलाने की लागत – 1.6 करोड़ रुपए
संसद के प्रति मिनट का खर्च -1.6 लाख रुपए
संसद के एक मिनट तक चलने की कुल लागत – 2.6 लाख रुपये.
पिछले सत्रों में कितना खर्च हुआ ?
– एक रिपोर्ट के मुताबिक 29 जनवरी से 9 फरवरी और 5 मार्च से 6 अप्रैल तक दो चरणों में चले बजट सत्र में कुल मिलाकर 190 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुए. यानि अगर इसकी खर्च की गणित पर जाएंगे तो संसद चलने पर आई प्रति मिनट लागत तीन लाख रुपए से ज्यादा होगी. संसदीय आंकड़ों के अनुसार दिसम्बर 2016 के शीत कालीन सत्र के दौरान करीब 92 घंटे व्यवधान की वजह से बर्बाद हो गए थे. इस दौरान करीब 144 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था, जिसमें 138 करोड़ रुपये संसद चलाने का खर्च और 6 करोड़ रुपये सांसदों के वेतन, भत्ते और आवास का खर्च शामिल है.
कितने घंटे हुआ काम
– पीआरएस लेजिस्लेटिव के डाटा के अनुसार मौजूदा साल बजट सत्र का दूसरा चरण छह अप्रैल तक चला. इसमें लोकसभा में 14.1 घंटे और राज्यसभा में मात्र 11.2 घंटे ही बजट पर चर्चा हुई. काम के घंटों के लिहाज से साल 2000 से अब तक यह सबसे खराब बजट सत्र रहा. वैसे कुल मिलाकर बजट सत्र के दोनों चरणों में लोकसभा में सिर्फ 33.6 घंटे और राज्यसभा कुल 53.2 घंटे काम हुआ.
ये पैसा किस तरह खर्च होता है?
– सांसदों के वेतन के रूप में
– सत्र दौरान सांसदों को मिलने वाले भत्तों के रूप में
– संसद सचिवालय पर आने वाले खर्च के रूप में
– संसद सचिवालय के कर्मचारियों के वेतन के रूप में
– सत्र के दौरान सांसदों की सुविधाओं पर खर्च के रूप में
क्या है रिकॉर्ड?
– पिछले कुछ सालों के बजट सत्रों से तुलना की जाए तो आमतौर पर बजट सत्र में बजट पर चर्चा के लिए निर्धारित घंटों के करीब 20 फीसद या 33 घंटे बहस होती है. साल 2018 के बजट सत्र में कुल 21 फीसद (लोकसभा) और 31 फीसद (राज्यसभा) में काम हुआ. आंकड़ों के मुताबिक 2010 का शीतकालीन सत्र प्रोडक्टिविटी के लिहाज से सबसे खराब सत्र रहा था. इसके बाद 2013 और 2016 के संसद सत्रों का नंबर आता है. 2010- 2014 के बीच संसद के 900 घंटे बर्बाद हुए, ताे साेचिए कितना पैसा बर्बाद हुअा हाेगा.
यानि क्या होता है?
– संसद में हंगामा होने से आम आदमी का ढाई लाख रुपए हर मिनट बर्बाद होता है
आपकी कमाई से चलती है संसद?
– जानते हैं संसद की कार्यवाही के लिए जो इतने पैसे खर्च किए जाते हैं वो कहां से आते हैं. वो आते हैं हमारी और आपकी कमाई से. ये वही धन है, जो हमसे टैक्स के रूप में वसूला जाता है.
कितना होता है सांसदों का वेतन?
– लोकसभा द्वारा मिले आंकड़ों की माने तो सांसदों को वेतन के रूप में हर महीने 50,000 रुपये, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता के रूप में 45,000 रुपये, कार्यालय खर्च के रूप में 15,000 रुपये और सचिवीय सहायता के रूप में 30,000 रुपये दिये जाते हैं. इस प्रकार सांसदों की प्रति माह सैलरी 1.4 लाख रुपए होती है. इसके अलावा सांसदों को सालभर में 34 हवाई यात्राओं और असीमित रेल और सड़क यात्रा के लिए सरकारी खजाने से धन दिया जाता है.