आबकारी और पुलिस विभाग की बंदियां फिक्स, पिछले छह माह में एक भी शराब से भरा ट्रक नहीं पकड़ा ।
उदयपुर। पिछले छह माह से जिले में शराब तस्करी कर ले जाई जा रही एक भी ट्रक या कोई बड़ी खेप नहीं पकड़ी गर्ई। ऐसी किसी कार्रवाई को न तो पुलिस ने अंजाम दिया है और ना ही आबकारी विभाग ने कोई रूचि दिखाई है। पता चला है कि जिले में शराब तस्कर, पुलिस और आबकारी के बीच एक सिंडीकेट काम कर रहा है, जिसके तहत सबको सेट कर लिया गया है। पिछले छह माह से ऐसा लगा रहा है, जैसे उदयपुर-अहमदाबाद हाइवे से शराब तस्करी बंद हो गई है, लेकिन ऐसा नहीं है तस्करों द्वारा बनाए गए सिंडीकेट ने ऐसा तालमेल बिठाया है कि सबकुछ आराम से चल रहा है। बस अवैध शराब की उन्हीं गाडिय़ों को पकड़ा जा रहा है, जो इस सिंडीकेट में शामिल नहीं है।
महाराष्ट्र, गुजरात जाने का मुख्य हाइवे नंबर आठ उदयपुर से गुजरता है, जिससे सर्वाधिक शराब की तस्करी होती है। इसीलिए कुछ समय पहले महीने में पांच से दस ट्रकें शराब की पकड़ी जा रही थी। एसपी दिनेश एमएन के समय में शराब तस्कारों की अधिकतर गाडिय़ां पकड़ी गई। सर्वाधिक कार्रवाई गोवर्धनविलास और प्रतापनगर पुलिस ने की, लेकिन पिछले छह माह से एक भी तस्करी की गाड़ी को पुलिस या आबकारी विभाग के अधिकारियों ने नहीं पकड़ा।
आबकारी और पुलिस के अधिकारी अधिकारिक तौर पर तो कुछ नहीं कहते हैं, लेकिन जब शराब तस्करी को लेकर सवाल किया जाता है, तो उनका सिर्फ एक ही जवाब होता है कि तस्करों ने रूट बदल दिय है। इन दिनों सिरोही, पिंडवाड़ा सहित अन्य मार्गों से हरियाणा निर्मित शराब गुजरात पहुंचाई जा रही है। जब कि शराब से जुड़े ही कुछ व्यवसाइयों का कहना है कि शराब माफियाओं का बनाया हुआ सिंडिकेट अब इतना मजबूत हो गया है कि इसके तहत तस्करी होने वाली शराब को कोई नहीं पकड़ता और अगर कोई नया तस्कर इससे अलग हट कर सीधा मुनाफ़ा कमाने के लालच में काम शुरू करता है तो उसको आबकारी विभाग या पुलिस द्वारा कहीं न कहीं दबोच लिया जाता है।
क्या है सिंडिकेट : शराब कारोबारियों की अंधी कमाई के बारे में हर कोई जानता है, लेकिन इस कमाई में कुछ दिक्कतें भी आती है, जिसे देखते हुए शराब कारोबारियों ने सफेद पोश बड़े कारोबारियों के साथ मिलकर सिंडीकेट बना लिया है। इसमें सभी को हिस्सेदारी के हिसाब से शेयर मिलता है। इसमें शराब के कारोबारी धंधे को संभालते है और सिंडीकेट के सफेदपोश पुलिस, प्रशासन और राजनीति से जुड़े लोगों को अपने साथ मिलाने का काम करता है। इस अवैध कारोबार में सबसे ज्यदा दिक्कत वसूली और कमीशन को लेकर होती थी, लेकिन सिंडीकेट के बनने के बाद यह धंधा पुरी ईमानदारी के साथ किया जा रहा है।
मुखबिर भी सेट : शराब तस्करी से जुड़े कई पुराने ट्रक ड्राइवर और खलासियों को पुलिस ने ही अपना मुखबिरा बना लिया था, जो अवैध शराब की गाडिय़ों को उड़वाने में लग गए थे। पहले पुलिस मुखबिरों को ५० से सौ पेटी तक मुखबिरों को दी थी, लेकिन बाद में शराब तस्करों ने मुखबिरों का भी कमिशन बांध दिया। अब मुखबिरों को भी मंथली दी जाती है। मुखबिर भी सिंडीकेट के प्रभाव के आगे किसी के साथ धोखा नहीं करते हैं।