उदयपुर . भारत-पाकिस्तान की सीमा के साथ लगते गांव राजस्थान के बिंजौर (अनूपगढ़) में लैला-मजनूं की मजार पर देश भर से आए प्रेमी-प्रेमिकाओं का हुजूम एकत्र होकर उनकी मजार पर माथा टेकते हैं। ऐसा माना जाता है कि लैला व मजनूं ने इसी गांव में अपनी जान दी थी। इस मजार पर पूजा करने के लिए दूर- दूर से नव विवाहित जोड़े आते हैं और साथ में प्रेमी-प्रेमिकाओं का हुजूम भी उमड़ता है।
मजनूँ के काल्पनिक होने के संबंध में कई कथन वर्णित हैं। लेकिन सदियों से लैला-मजनूँ की प्रेम कहानी दुनिया भर के प्रेमियों के लिए मिसाल बनी हुई हैं। प्रेमी युगल आज भी लैला मजनूं की मजार पर सजदा करते हैं। प्रेमी जोड़ों को विश्वास है कि सैंकड़ों वर्ष पुरानी इस मजार पर मत्था टेकने से उनकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होंगी।
अरब के प्रेमी युगल लैला-मजनूं सदियों से प्रेमियों के आदर्श रहे हैं। कैस-लुबना, मारवा-अल मजनूं अल फरांसी, अंतरा-अबला, कुथैर-अजा, लैला-मजनूं सरीखी प्रेम कहानियां इसकी मिसाल हैं। और रहें भी क्यों नहीं, इन्होंने अपने अमर प्रेम से दुनिया को दिखा दिया है कि मोहब्बत इस जमीन पर तो क्या जन्नत में भी जिंदा रहती है। इनमें लैला-मजनूं की प्रेम कहानी जगजाहिर है।
अरबपति शाह अमारी के बेटे कैस की किस्मत में यह प्रेम रोग हाथ की लकीरों में ही लिखा था। उसे देखते ही भविष्य वक्ताओं ने कहा कि कैस प्रेम दीवाना होकर दर-दर भटकता फिरेगा।उनकी भविष्यवाणी को झुठलाने के लिए शाह अमारी ने खूब मन्नतें कीं ताकि उनका बेटा इस प्रेम रोग से महरूम रहे, लेकिन कुदरत अपना खेल दिखाती ही है।दमिश्क के मदरसे में जब उसने नाज्द के शाह की बेटी लैला को देखा तो पहली नजऱ में उसका आशिक हो गया | मौलवी ने उसे समझाया कि वह प्रेम की बातें भूल जाए और पढ़ाई में अपना ध्यान लगाए। लेकिन प्रेम दीवाने ऐसी बातें कहां सुनते हैं। कैस की मोहब्बत का असर लैला पर भी हुआ। नतीजा यह हुआ कि लैला को घर में कैद कर दिया गया और लैला की जुदाई में कैस दीवानों की तरह मारा-मारा फि रने लगा।
कुछ कथाओं में यह कहा गया है कि मजनूं को जब यह पता चला तो वह पागल हो गया और इसी पागलपन में उन्होंने कई कविताएं रचीं। उसकी दीवानगी देखकर लोगों ने उसे ‘मजनूं’ का नाम दिया। आज भी लोग उसे ‘मजनूं के नाम से जानते हैं और मजनूं मोहब्बत का पर्याय बन गया है। लैला-मजनूं को अलग करने की लाख कोशिशें की गई। लेकिन सब बेकार साबित हुईं। लैला की तो बख्त नामक व्यक्ति से शादी भी कर दी गई। लेकिन उसने अपने शौहर को बता दिया कि वह सिर्फ मजनूं की है। मजनूं के अलावा उसे और कोई नहीं छू सकता। बख्त ने उसे तलाक दे दिया और मजनूं के प्यार में पागल लैला जंगलों में ‘मजनूं-मजनूं’ पुकारने लगी। जब मजनूं उसे मिला तो दोनों प्रेम पाश में बंध गए। लैला की मां ने उसे अलग किया और घर ले गई। मजनूं के गम में लैला ने दम तोड़ दिया। लैला की मौत की खबर सुनकर मजनूं भी चल बसा।
उनकी मौत के बाद दुनिया ने जाना कि दोनों की मोहब्बत कितनी अजीज थी। दोनों को साथ-साथ दफ नाया गया ताकि इस दुनिया में न मिलने वाले लैला-मजनूं जन्नत में जाकर मिल जाएं। लैला-मजनूं की कब्र आज भी दुनिया भर के प्रेमियों की इबादतगाह है।
समय की गति ने उनकी कब्र को नष्ट कर दिया है, लेकिन लैला-मजनूँ की मोहब्बत जिंदा है और जब तक दुनिया है जिंदा रहेगी।
लैला मजनूं की प्रेम कहानी पर हिंदी में पहली फि ल्म इसी नाम से 1953 में ऑल इंडिया पिक्चर्स के बैनर तले बनी थी जिसके निर्देशक थे – अमरनाथ।
उस फिल्म में बेगम पारा, नूतन, रतन कुमार, शम्मी कपूर आदि कलाकारों ने काम किया था।
उसके बाद हरनाम सिंह रवैल ने ऋषि कपूर और रंजीता को लेकर ‘लैला मजनूं’ फिल्म बनाई थी जो 1976 में रिलीज हुई। उसमें गीत साहिर लुधियानवी ने लिखे थे और संगीत मदन मोहन का था।
फिल्म बनाने के दौरान ही 1975 में मदन मोहन की मौत हो गई और फिर संगीत पूरा करने की जिम्मेदारी जयदेव को सौंपी गई थी।