उदयपुर . दहेज प्रताडऩा की धारा 498-ए के दुरुपयोग पर हाईकोर्ट ने चिंता जताई है। हाईकोर्ट ने इस संबंध में दायर तीन याचिकाओं का एक साथ निपटारा करते हुए अधीनस्थ अदालतों में विचाराधीन दहेज प्रताडऩा के मामलों को निरस्त कर दिया।
हाईकोर्ट ने फैसले की प्रति विधि मंत्रालय, विधि मामलात विभाग के सचिव, विधि आयोग के सदस्य सचिव को प्रेषित करते हुए लिखा कि इस फैसले के प्रकाश में आईपीसी की धारा 498 ए के प्रावधानों में संशोधन किए जाने की जरूरत है। एक ओर इस धारा की पालना सुनिश्चित कराने को सरकार प्रतिबद्ध है तो वहीं इसके दुरुपयोग पर भी रोक लगनी चाहिए।
राजस्थान उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता आरोपी बनाए गए कल्याणीपुरा निवासी हीरालाल गोरा, गोपाल किशन, चंचल कुमार, प्रसन्ना, मनोरमा, गीता व सोहनलाल व दर्शन कुमार ने वकील पीयूष नाग के जरिए व अन्य पक्षकार दिल्ली निवासी मनोज कुमार बैरवा, राम बाई तथा गुर्जर की थड़ी जयपुर निवासी मुकेश जांगिड़ ने अलग अलग याचिकाएं दायर की।
याचिका के तथ्य
याचिकर्ताओं में विवाहिताओं ने अपने ससुराल पक्ष से पति या अन्य परिजन को प्राथमिकी में धारा 498-ए व 406 में आरोपित बनाया गया। परिवादी विवाहिताओं ने पारिवारिक न्यायालय में राजीनामा कर आपसी सहमति से विवाह विच्छेद की डिक्री इस आधार पर प्राप्त कर ली कि वह फौजदारी प्रकरणों में भी राजीनामा कर लेंगी लेकिन बाद में उन्होंने विचार बदलते हुए फौजदारी प्रकरण को यथावत चलने दिया।
अदालत में आरोपितों याचिकाकर्ता के वकील के तर्कों से सहमत होने के बाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश मोहम्मद रफीक ने याचिकाएं मंजूर करते हुए अधीनस्थ अदालत मंें दहेज प्रताडऩा के तहत चल रही कार्रवाई को निरस्त करने के आदेश दिए।