उदयपुर। महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती ( र. अ.) के दरबार में एक गरीब से लेकर हिंदुस्तान के शहंशाह तक अपना सर झुकाते आये है। और अपने दिल की मुराद पूरी करके अपनी झोलियों को खुशियों और कामयाबी से भर कर जाते है जिनके दिल से एक ही आवाज़ निकलती है “ये तो मेरे ख्वाज़ा का करम है ” ।
आज भी ख्वाजा के दरबार में बड़े बड़े राजनीतिज्ञ हो या बड़े फ़िल्म स्टार या बड़े बिजनेस टायकून सबके सर इस चोखट पर अपनी मुरादों की आस पूरी होने कि ख्वाहिश में झुकते है ।
ख्वाजा के दर से कोई खाली हाथ नहीं लोटता यहाँ हर दिन हज़ारों लाखों लोगों का मेला लगा रहता है। देश विदेश से जायरीन आकर अपनी मन कि मुराद पूरी करते है ।
यह फिल्मी सितारों के लिए सबसे बड़ा आस्था का मंदिर बनकर उभरा है। यह स्थान सभी धर्मों के लोगों के लिए पूजनीय है। इस दरगाह के दरवाजे चांदी के बने हैं। इसके गर्भ गृह में संत की मूल कब्र है जो संगमरमर की बनी है। इसके चारों ओर की रेलिंग चांदी की है।
महान सूफ़ी संत की याद में यहां हर साल एक एक उर्स लगता है जो 6 दिन तक चलता है। इस मेले को लेकर मान्यता यह है कि जब संत की आयु 114 वर्ष की थी तब उन्होंने प्रार्थना करने के लिए स्वयं को 6 दिन तक कमरे में बंद कर लिया था और अपने नश्वर शरीर को एकांत में छोड़ दिया था।
अपनी मेहनत को कामयाबी की ऊंचाइयों पर चढ़ाने के लिए आए दिन यहां सितारों का तांता लगा रहता है ।