37 साल में राजस्थान से सिर्फ एक मुस्लिम आईएएस

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जयपुर। राजस्थान में मुस्लिमों की करीब 12 प्रतिशत आबादी (70-80 लाख) है, लेकिन पिछले करीब 37 साल में सिर्फ एक मुस्लिम युवा आईएएस बन पाया है। हाल ही सिविल सेवा-2014 के तहत आईएएस का नतीजा जारी हुआ है और संभवत: इस बार भी किसी मुस्लिम अभ्यर्थी का चयन होना सामने नहीं आया है। जानकारों का कहना है कि आईएएस बनने में किसी धर्म-समुदाय से होने-न होने का महत्व नहीं है, लेकिन देश की शीर्ष सेवा में इतने बड़े समुदाय में से बीते 38 वर्षो में सिर्फ एक का ही चयन होना इसकी शैक्षणिक और सामाजिक स्थिति के बेहद चिंताजनक होने का सबब तो है ही।

वर्ष 2013 में जाफर मलिक (सवाई माधोपुर) का आईएएस में चयन हो सका है, जो फिलहाल मसूरी में ट्रेनिंग ले रहे हैं। राजस्थान में मौजूदा आईएएस काडर में अभी करीब 221 अधिकारी हैं, इनमें भी कोई मुस्लिम आईएएस नहीं है। न तो राजस्थान मूल से, न बाहरी राज्यों से और न ही आरएएस या अन्य सेवाओं से पदोन्नत होकर आईएएस बनने वालों में कोई मुस्लिम शामिल हैं।

प्रदेश में सीधे चयन वाले आखिरी मुस्लिम आईएएस अधिकारी वर्ष 1975 बैच के सलाउद्दीन अहमद (मूलत: उत्तरप्रदेश से) थे, जो फरवरी-2012 में राज्य के मुख्य सचिव पद से रिटायर हो गए। वे फिलहाल आंध्रप्रदेश के राजभवन में राज्यपाल के सलाहकार पद पर कार्यरत हैं। गौरतलब है कि राज्य में जैन, सिख, ईसाई जैसे अन्य अल्पसंख्यक समुदायों से भी आईएएस बन चुके हैं। अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के युवाओं का भी बड़ी संख्या में चयन होता रहा है।

अन्य राज्यों से लगातार हो रहा चयन
उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तमिलनाडू, जम्मू और कश्मीर, आंध्रप्रदेश, केरल, कर्नाटक, असम आदि प्रदेशों से लगभग हर वर्ष मुस्लिम युवाओं का चयन आईएएस में होता रहा है। यहां तक कि पंजाब, गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, पूर्वोत्तर से भी दो से पांच साल के बीच मुस्लिम अभ्यर्थियों का चयन होता रहा है।

आरएएस से मुख्यमंत्री तक
राज्य में यूं तो आरएएस, इंजीनियर, डॉक्टर, कुलपति, मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री जैसे पदों पर मुस्लिम रह चुके हैं, लेकिन आईएएस का ख्वाब अब भी बेहद मुश्किल है। (1975-76 से 2013 तक के आंकड़े केन्द्र-राज्य कार्मिक विभाग की वेबसाइट व सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार)

क्या कहते हैं जानकार
आईएएस कॉम्पीटिशन का मामला है। कॉम्पीट करेंगे तो ही चयन संभव है। युवाओं को पढ़ने-लिखने पर ध्यान देना चाहिए। प्रतियोगिता को फोकस कर तैयारी करनी चाहिए। चयन का यही एक रास्ता है।
एस. अहमद, पूर्व मुख्य सचिव राजस्थान

मुस्लिम युवाओं को घरों में आम तौर पर पढ़ने का माहौल नहीं मिल पाता है। समाज में कई स्तरों पर हो रहे भेदभाव से भी इनकार नहीं किया जा सकता। सरकारों और समाज को मिलकर इस विषय में कुछ करना चाहिए।
डॉ. इकबाल सिद्दिकी व इंजीनियर मोहम्मद सलीम, जमाते इस्लामी हिन्द

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