उदयपुर। मेरा बेटा मिनहाज खान 12th में पढ़ता है, सुबह से वह बड़ा उलझन में था, आर्ट्स का विद्यार्थी है, हिस्ट्री में उसकी ख़ास रूचि भी है। सुबह से में उसको देख रहा था दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, टाइम्स ऑफ़ इंडिया न्यूज़ पेपरों को उसने बीसियों बार पलट पलट कर देखा। दिन भर सभी न्यूज़ चैनल बदल बदल कर देखता रहा। शाम को चहरे पर कन्फूजन के भाव लिए मेरे से सवाल किया ,… पापा आज 13 अप्रेल है, आज के दिन ही जालियां वाला बाग़ ह्त्या काण्ड हुआ था, और यहीं से हिन्दुस्तान में आज़ादी की चिंगारी ने एक ज्वाला का रूप लिया था। इस ह्त्या काण्ड में हज़ारों लोग शहीद हुए थे। …. फिर भी आज ना तो किसी अखबार में ना ही किसी न्यूज़ चैनल पे कोई इस बारे में न्यूज़ आई ना ही किसी ने उन शहीदों को याद किया। और तो और शोशल मीडिया पर भी कोई हलचल नहीं जब कि वहां पे तो बड़े बड़े ज्ञानी बुद्धिजीवी और बड़े बड़े देश भक्त बैठे है उन्होंने भी कोई ऐसी पोस्ट नहीं की।
उसकी इस बात का कुछ जवाब दे पाता उससे पहले उसने धड़ाधड़ तीन चार और दहकते हुआ सवाल दाग दिए,..
तो क्या मेने जो किताबों पढ़ा वो सिर्फ ऐसे ही कहानी बनाने के लिए कोर्स पूरा करने के लिए ही लिखा था क्या ?
जालियां वालां बाग़ का हम हिन्दुस्तानियों की आज़ादी से कोई लेना देना नहीं है क्या ?
जब इसका महत्त्व ही नहीं तो क्यों इसको इतिहास में इतना बढ़ा चढ़ा कर बता रखा है ?
क्या आज़ादी हमको ऐसे ही मुफ्त में मिल गयी ?
बात उस 16 साला युवा की सही है, जिसके बाद में भी सोचा में पढ़ गया, ये सवाल सिर्फ उसी के नहीं देश के हर उस युवा के होंगे जिसने अपने कोर्स में जलियाँ वाला बाग़ पढ़ा होगा उसने इतनी बात इसलिए भी की क्यों की वो एक आर्ट्स का छात्र है, और उसने जलियाँ वाला बाग़ ह्त्या काण्ड को पढ़ रखा है, लेकिन, जिन्होंने नहीं पढ़ा उनका क्या, उनको तो ये बताने वाले “हम” भी तो सो गए है, कि उनको ये बताएं कि देखो ये आज़ादी मुफ्त में नहीं मिली है, हज़ारों शहीदों का खून बहा है, अब तो ये याद दिलाने वाले भी इतने बाज़ारू हो गए है जिनके लिए कॉन्डम, जापानी तेल, और ना जाने कैसे कैसे वाहियात विज्ञापन ज्यादा जरूरी है, बजाय इसके कि ये बताएं की आज कोनसा और कितना बढ़ा दिन है।
( उदयपुर के दैनिक अखबार मददगार ने जरूर लीड पर एक बड़ा सा फोटो लगा कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी उसके लिए मददगार का आभार )
बात ये इतनी छोटी नहीं है ,……. बात ये है कि आज ९६ साल के बाद हम अपनी जमीं अपना वतन खुद को भूले जा रहे है, आने वाली पीढ़ी को देने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है ,। क्यों कि हमे कुछ याद ही नहीं तो क्या आने वाली पीढ़ी को बतायेगें । हम भारतीय बड़े बड़े देश भक्ति की बाते करने वाले, शोशल साइट फेसबुक और वॉट्सएप्प पर गालियां दे कर अपनी देशभक्ति जताने वाले महान देश भक्त उन हज़ारों लोगों की कुर्बानी को भुला बैठे है।
बात सिर्फ फेसबुक, वॉट्सएप्प की ही नहीं है । इस घटना को तो दुनिया का विकसित माना जाने वाला मिडिया तक भुला चुका है। सनी लीओन या किसी पोर्न स्टार तक की ज़रा सी हरकत पर आधा आधा घंटा प्राइम टाइम में खबरे चलाने वाला, बाज़ारू नेताओं की बेबुनियाद बातों पर घंटों तक बकवास करने वाला इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने भी पुरे दिन किसी चैनल पर एक मिनट के लिए जालियां वालां बाग़ पर कोई प्रोग्राम नहीं चलाया ।
यहाँ में नेताओं और संगठनों की बात तो क्या करू क्यों कि जलियाँ वाला बाग़ को जब हम लोग ही भुला चुके है तो ये तो मौका परस्त लोग है ये फिर क्यों याद करेंगे इसमे इनका कोई लाभ नहीं है। बात तो यहां आज सिर्फ आपकी और छाती ठोकने वाले हम मिडिया की है ।
इस शहादत पर कैसे और क्यों हमको मिडिया और देश भक्ति का बिगुल बजा कर माहोल गरमाने वालों को शर्म आने लग गई। जहाँ तक मुझे याद है मेने पढ़ा है, तो इस शहादत की चिंगारी ही ब्रिटिश शाशन को भारी पड़ी और इस चिंगारी ने ही ऐसा रूप लिया था जिसकी वजह से आज हम खुद को आज़ाद समझते है। लेकिन हमे इसके लिए ना तो समय है ना ही हमे पता है । कल ऐसा भी दिन आएगा जब देश का युवा ये कहेगा ,… कोण था जलियाँ वाला बाग़ क्या हुआ था ,…. क्या कोई रेव पार्टी हुई थी या,… फिर किसी फिल्म की शूटिंग थी या कोई और मजेदार बात हुई थी ,…। बिलकुल ऐसा ही होगा ,…. धन्यवाद आपका भी और हमारा भी ।
जाते जाते बता दू जलियाँ वाला बाग़ क्या था :
भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में १३ अप्रैल १९१९ (बैसाखी के दिन) हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं जिसमें १००० से अधिक व्यक्ति मरे और २००० से अधिक घायल हुए ।यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था। माना जाता है कि यह घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी। ……।