स्वरुप सागर झील पर निर्माण – नलवाया जी पर महापौर जी की महरबानी

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उदयपुर। इस शहर झीलों की छाती पर भी अगर निर्माण करना है तो जेब में माल और माल के जरिये बने हुए रसूख हो तो आप फतहसागर की पाल पर भी निर्माण कार्य कर सकते हो कोई नियम कोई कायदे आपके आड़े नहीं आयेगें। किसी कोर्ट का कानून आपको नहीं रोक सकता। ना नगर निगम वाले ना ही यु आई टी वाले निर्माण को तोड़ने को आयेगें। बस उनको खुश रखना आपको आना चाहिए। एसा हो रहा है और उसका ताज़ा उदाहरण है स्वरुप सागर के सामने श्री नलवाया जी के भूखंड पर होता निर्माण और मूंह पर टाला लगाए हमारे निगम के महापौर श्री कोठारी जी और अधिकारी। जिनका रसूख हो उनके नाम के आगे “जी” लगाना ज्यादा उचित है।

 

झीलों के शहर उदयपुर में जो चाहे वह कर सकते हैं, कोई भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अवैध काम को भी आप वैध बना सकते है। कितना भी इमानदार अफसर या जनसेवक क्यों न हो आपके रसूख और पैसों के आगे वह बोना ही साबित होगा। जीहां हम बात कर रहे हैं एक ऐसे शख्स की जिसके सामना करने की हिम्मत इस शहर में शायद किसी के पास बची नहीं है। यही वजह है की झील से मात्र पंद्रह फीट की दूरी पर इस शक्स के भुखण्ड पर धड़ल्ले से निर्माण हो रहा है और काफी शिकायतों के बाद भी प्रशासन कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। स्वरूप सागर झील के ठीक सामने निर्माणाधीन रसूखदार नलवाया के भुखण्ड की। सूत्र बताते है कि इस भुखण्ड से सटी हुई ही इनकी होटल है और यहां ठहरने वाले मेहमानों के लिए श्रीमान जी एक तरणताल का निर्माण इस भुखण्ड पर करवाना चाहते हैं। आपको बता दे कि इस भुखण्ड के पहाड़ी आकार को काटकर समतल बनाने का काम पिछले चार वर्षों से छिपते – छिपाते किया जा रहा है। पूर्व महापौर रजनी डांगी के समय जब विरोध बड़ा तो तत्कालीन निगम आयुक्त ने कार्रवाई करने की जहमत उठाई थी, लेकिन श्रीमती डांगी के एक फोन मात्र से निगम के दस्ते को उल्टे पांव लौटना पड़ा। बाद में चुनाव आ गए और निगम में पांचवा बोर्ड भी भारतीय जनता पार्टी का बना। पार्टी के सर्वेसर्वा और निगम में अभी तक के कर्ताधर्ता शहर विधायक और प्रदेश में दूसरे नम्बर के नेता गुलाबचंद कटारिया ने इस बार चंदरसिंह कोठारी पर भरोसा जताया और उनकी ताजपोशी महापौर की कुर्सी पर कर डाली। कोठारी जी के तैवर शुरूआती दौर में तो काफी कड़क दिखाई दिए। अतिक्रमणकारियों की तो मानो शामत ही आ गई हो लेकिन जैसे – जैसे समय बितता गया महापौर की कार्यशैली भी ठण्डी होती गई। इस बीच नलवाया जी का काम एक बार रूकवा भी दिया गया था, इतना ही नहीं निगम के दस्ते ने यहां से चट्टानों को तोड़ने वाले औजारों को जब्त कर नोटिस भी चस्पा कर दिया था। जैसे ही नोटिस चस्पा हुआ मेन रोड़ से दिखने वाली जगह को पूरी तरह से उपर तक ढक दिया गया ताकी अंदर हो रहे काम को कोई देख न सके और हुआ भी ऐसा ही। षनैः षनैः नलवाया जी अपनी मंजिल पाने में सफल भी होते रहे और आज यह स्थिति है कि इस भुखण्ड का काफी हिस्सा अपने मुल रूप तक पंहुच गया है, लेकिन प्रशासन पूरी तरह से इन जनाब के रसूख के आगे बोना ही साबित होता रहा है। स्मार्ट सिटी के फेर में फंसे निगम के निजाम अपनी रोटिया सेकने में लगे है तो दबंग माने जाने वाले महापौर एक बार फिर विदेश दौरे पर चले गए हैं। ऐसे में नलवाया जी भी दिन रात मजदूरों को लगाकर अवैध रूप से भुखण्ड को समतल कराने का काम जारी रखे हुए हैं और इनका बेखौफ अंदाज देखकर ही लगता है कि यहां पर निगम और प्रषासन सिर्फ गरीबों के झोपडें तोड़ने के लिए ही बना हैं पैसें वालों की चैखट पर तो बड़े से बड़ा अधिकारी जाने में कतराता है, क्योंकि इन जनाब की आलीशान होटल भी पास में है और ऐसा कौन होगा जो अपने मेहमानों की खातिरदारी नलवाया जी की होटल में न करवाए।

रसूखदार नलवाया जी द्वारा बेखौफ होकर झील से मात्र पंद्रह फीट की दूरी पर तरणताल के लिए भुखण्ड को समतल करवाया रहे है और यही वजह है कि शहर में अवैध काम न करने देने का वादा करने वाले महापौर और निजाम यहां से गुजरते भी है तो आंखों पर पट्टी बांध लेते है। यह देखकर तो बिल्ली के दुध पीते समय आंख बंद करने वाली कहावत जहन में आ जाती है जब बिल्ली को लगता है कि उसके आंख बंद कर देने से कोई उसे नहीं देख पाएगा। लेकिन यह मेवाड़ की धरती है यहां का हर शक्स सबकुछ जानता है और उसे सबकुछ पता है। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या निगम में बैठे जिम्मेदार जो इमानदारी का काफी ढोल पीटते है वह इस पर कार्रवाई कर भी सकते है या नहीं।

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