‘सखी’ राजस्थान की ग्रामीण उद्यमी महिलाओं का एक प्रतीक

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IMG-20151111-WA0007राजस्थान की ग्रामीण महिलाएं सदैव अपनी रचनात्मक कौषल और पारम्परिक कलाओं के लिए विष्व में अलग पहचान बनाई है। महिलाओं की नए कौषल सीखने की क्षमता एवं जागरूकता ने पारम्परिक कला प्रेमियों को आकर्षित किया है।

ग्रामीण महिलाएं रोजगार के लिए अपने खाली समय का सद्पयोग कर रही है। इन छुपी प्रतिभाओं को जागरूक एवं विकसित करने के लिए, भारत का एकमात्र एवं राजस्थान का सबसे बड़ा जस्ता उत्पादक हिन्दुस्तान जिं़क ने ‘सखी’ परियोजना का शुभारंभ किया। हिन्दुस्तान ज़िक के हेड-कार्पोरेट कम्यूनिकेषन पवन कौषिक ने बताया कि इच्छुक ग्रामीण महिलाओं को ‘सखी’ परियोजना के माध्यम से नये व्यावसायिक एवं रचनात्मक कौषल सिखाना शुरू किया जिससे ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में लगातार सुधार हो रहा है।

पवन कौषिक ने बताया कि उनकी रूचि एवं जरूरतों को समझने के लिए हमें दूर दराज गांवों में घूमने में कुछ महीने लगे। अधिकतर ये ग्रामीण महिलाएं आदिवासी क्षेत्रों से हैं जिन्होंने सामाजिक सषक्तिकरण के बजाय आर्थिक सषक्तिकरण में अधिक रूचि दिखाई। इन लोगों के विचारों को समझने के लिए हमें गांवों में रहना पड़ा।

तुलसी उदयपुर शहर से 15 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव कलड़वास में रहती है। हिन्दुस्तान जिं़क ने तुलसी से व्यावसायिक कौषल में प्रषिक्षण के लिए सम्पर्क किया और वह इसके लिए सहमत हो गई तथा अपने अन्य साथियों को प्रषिक्षण के लिए साथ लाने के लिए कही। आधारभूत सुविधाओं के साथ सुनिष्चित किया गया कि सुगन्धित मोमबत्ती बनाने के लिए प्रषिक्षण कार्यषाला का आयोजन किया जाए तथा प्रषिक्षण के दौरान ही लगभग 2000 मोमबत्तियां बनायी जाए। इन मोमबत्तियों की शीघ्र ही बिक्री की जाएगी। तुलसी ने सहमती एवं वादा किया कि सीखने एवं इस परियोजना के संचालन के लिए और अधिक महिलाएं आएगी।

2-दिनों के भीतर सब कुछ तुलसी द्वारा आयोजित किया गया। हिन्दुस्तान जिं़क ने सभी कच्चे माल की व्यवस्था की और तुलसी ने मोम पिघलाने के लिए रसाई गैस, बर्तन और अन्य जरूरत के सामान जो घर में उपलब्ध थे व्यवस्था की।

पवन कौषिक ने बताया कि जब आपकी रूचि एवं दृढ़ इच्छाषक्ति हो तो सीखना आसान हो जाता है।

इस प्रकार कलड़वास गांव में 18 ग्रामीण महिलाओं के साथ 2000 मोमबत्तियां बनाने का ‘‘सखी’’ परियोजना शुरू हुआ।

Matoon Sakhi Uniform

तुलसी ने अपनी कौषलता से महिलाओं को समूह में बांटा और प्रत्येक समूह की महिलाओं को अपनी पसंद के अनुसार अलग-अलग कार्य करने को कहा गया। किसी ने नए-नए सॉंचें तैयार किये, मोम पिघलाये तथा किसी ने पैकेजिंग का कार्य किये। यह एक सपने के सच होने जैसा था।

सभी भावुक हो गई जब उनको इस कठिन परिश्रम का मानदेय दिया गया। तुलसी भी रो पड़ी। यह उसके लिए एक सपना सच होने जैसा था। सिखाने की व्यवस्था तथा इनाम के रूप में नकद मानदेय वास्तव में बहुत ही प्रोत्साहित किया। ‘सखी’ उन सभी ग्रामीण महिलाओं के लिए आषा की किरण है जो अपने सपने और इरादों को पूरा करने की इच्छा रखती हैं।

हिन्दुस्तान जिं़क ने महिलाओं में सामाजिक सषक्तिकरण लाने के लिए राजस्थान में स्वयं सहायता समूह के गठन का कार्य प्रारंभ किया। धीरे-धीरे इन महिलाओं के लिए कौषल प्रषिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ किये। अब तक इन महिलाओं में आर्थिक सषक्तिकरण लाने के लिए 10 क्लस्टर्स बनाये जा चुके है जिसमें यूनिफॉम, फैषन वस्त्र, मोमबत्तियां, पापड़, आचार, घर के साज-सज्जा के सामान, मसाले, फर्ष मैट एवं पेपर बास्केट के सामान बनाने शामिल है।

अजमेर में, फैषन गारमेन्टस क्लस्टर्स की 50 ग्रामीण महिलाओं को फैषन एवं डिजाइन के लिए प्रषिक्षित किया गया। 60 से अधिक पहनने के एप्रेल्स बनाये। उनकी प्रतिभा को दिखाने एवं मंच देने के लिए हिन्दुस्तान जिं़क ने अक्टूबर, 2015 में ‘सखी’ फैषन शो का आयोजन किया। आंगनवाड़ी एवं नन्द घर के बच्चों के लिए बनाये गये यूनिफार्मस को भी दिखाया गया।

जावर में मोमबत्तियां बनाने के लिए क्लस्टर्स का गठन कर 18 आदिवासी महिलाओं को प्रषिक्षित किया गया जहां इन महिलाओं ने 500 मोमबत्तियां बनाई जिनकी शीघ्र ही बिक्री हो गई तथा ये बाजार से भी जुड़ चुकी है कंपनी के कर्मचारियों के घरेलू उपयोग के लिए भी मोमबत्तियां बनाई गई। मटून में भी मोमबत्तियां बनाने के लिए प्रषिक्षण का आयोजन किया गया जहां 17 आदिवासी महिलाओं ने 1100 से अधिक मोमबत्तियां बनाई।

मटून एवं देबारी में ग्रामीण महिलाओं को स्कूल के बच्चों के लिए यूनिफॉम्स बनाने के लिए प्रषिक्षित किया गया। सिलाई एवं पैकिजिंग से लेकर सभी कार्य इन महिलाओं द्वारा दिया जाता है।

दरीबा में 36 ग्रामीण महिलाओं को होम फर्निषिंग के लिए प्रषिक्षित किया गया जहां डबल बैड-षीट्स, सिंग्ल बैड-षीट्स एवं कुषन कवर्स बनाये जा रहे हैं।

अजमेर में आचार बनाना परियोजनाओं के तहत समूहों की 17 ग्रामीण महिलाएं 4 इकाइयों में कार्य कर रही है जिससे उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। पूरे गांव के लोग इन महिलाओं द्वारा उत्पादित मसालों का उपयोग करते हैं जिसके परिणास्वरूप कम लागत में 100 प्रतिषत शुद्ध मसाले उपलब्ध हो रहे हैं।

ग्रामीण महिलाओं द्वारा उत्पादित सामान की बिक्री बाजार से लिंक है, इन उत्पादों की बिक्री के लिए हिन्दुस्तान जिं़क को प्राथमिकता दी जाती है। पवन कौषिक ने बताया कि ग्रामीण महिलाओं द्वारा उत्पादों की बिक्री के लिए बाहरी बाजार में सम्पर्क किया जाता है तथा लोगों से सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिल रही है।

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