उदयपुर। पूरे प्रदेश में जब से तबादलों का सिलसिला शुरू हुआ है। पुलिस महकमे में मानों खलबली मच गई है। कई तो अपनी मुहं मांगी जगह मिलने से खुश है, तो कई थोपी गई जगहों पर जुगाड़ करने में लग गए हैं। इन दिनों जिले में बदले गए कोतवाल बस इसी पशोपेश में लगे हैं कि नए थाने को कैसे संभाले और यहां पर कारोबार कैसे चलता है। खाली कोतवालों के तबादले की बात होती तो इतनी मुश्किल नहीं होती, लेकिन इस बार तो थानों से करीब-करीब सभी के तबादलों से परेशानी और बढ़ गई है।
हाइवे का थाना पहली पसंद: यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन पूरी तरह सत्य है। कोई भी थानेदार हाइवे का थाना पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है, क्योंकि एक तो यहां पर चांदी ही चांदी होती है और आबादी से थोड़ा दूर होता है तो ज्यादा किट-किट नहीं होती। कभी कभार ही उच्च अधिकारियों का थाने में आना होता है। इसलिए इस बार भी हाइवे के थाने पाने के लिए कोतवालों ने जयपुर तक कई चक्कर लगाए और कई तो सफल भी हो गए।
मालदार थाने : उदयपुर जिले के कुछ थानों को छोड़ दिया जाए, तो लगभग सभी थाने मालामाल ही रहते है। इनमें डबोक, सुखेर, प्रतापनगर, गोवर्धन विलास, ऋषभदेव, गोगुन्दा, कोटड़ा, मांडवा, बेकरिया थाना शामिल है। ये थाने राजस्थान को गुजरात से जोडऩे वाले हैं इसलिए इन थानों के हल्कों में तस्करी का कारोबार सबसे ज्यादा होता है। महीने की सैंकड़ों ट्रकों से हरियाणा की शराब राजस्थान होते हुए गुजरात पहुंचती है, जिनमें करोड़ों रुपए की अवैध शराब भरी होती है।
माफिया, हिस्ट्रीशीटर और
तस्करों को बुलावा
पता चला है कि कोतवाल अपने अधीनस्त से फोन लगवाकर सभी को बुला रहे हैं। कोतवाल का फरमान क्षेत्र के तस्करों, हिस्ट्रीशीटरों, भूमाफियाआें और उद्यमियों तक पहुंच रहा है। एेसे में कई तो मुलाकात करके आ गए हैं, लेकिन कई नए थानेदार का पिछला रिकॉर्ड चैक करने में लगे है कि इनसे जुगाड़ कैसे हो पाएगा।
हाजिर हो! थानों में कोतवालों का फरमान
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