नौटंकी साला कहानी है राम परमार (आयुष्मान खुराना) की जो ‘रावण लीला’ नाम के नाटक में रावण का किरदार निभाता है. इस नाटक का निर्देशक भी वो खुद ही है. राम, मंदार लेले (कुनाल रॉय कपूर) की जान बचाता है जो इसलिए खुदखुशी करना चाहता है क्योंकि वो खुद को किसी लायक नहीं समझता.
राम, मंदार को अपने घर ले आता है. इस घर में राम की गर्लफ्रेंड चित्रा पहले से ही रहती है. अपने नाटक ‘रावण लीला’ में राम, मंदार को भगवान राम का किरदार निभाने के लिए देता है. वो सोचता है कि ऐसा करने से मंदार अपना खोया हुआ आत्मविश्वास वापस पा लेगा.
लेकिन इस नाटक का जो निर्माता है चंद्रा (संजीव भट्ट) उसे इस बात से आपत्ति होती है कि क्यों मंदार को राम की भूमिका दी गई है. चंद्रा को इस बात इसलिए भी परेशानी है क्योंकि मंदार को अभिनय बिलकुल नहीं आता.
राम न सिर्फ मंदार का खोया हुआ आत्मविश्वास लौटाने की कोशिश करता है बल्कि ये भी कोशिश करता है कि किसी तरह वो मंदार को उसके खोए हुए प्यार नंदिनी पटेल (पूजा साल्वी) से मिला दे. लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब राम को खुद नंदिनी से प्यार हो जाता है.
क्या इस बात से मंदार और राम की दोस्ती में दरार पड़ती है? क्या राम की प्रेमिका चित्रा राम का साथ देती है? क्या अंत में राम और नंदिनी का मिलन हो पता है? और राम के नाटक ‘रावण लीला’ का क्या होता है? इसी बारे में है नौटंकी साला.
दर्शकों की उलझन
नौटंकी साला एक फ्रेंच फिल्म पर आधारित है. फिल्म की पटकथा काफी पेचीदा है. निपुण धर्माधिकारी, चारुदुत्त आचार्य और रोहन सिप्पी तीनों लोग मिलकर भी पटकथा में कोई सुधार नहीं कर पाए. कहानी में हर वक़्त यही कन्फ्यूश़न बना रहता है कि कौन किससे प्यार करता है.
दर्शकों के दिमाग में फिल्म देखते हुए ये बात कई बार उठती है कि राम अगर मंदार का भला ही करना चाहता है तो वो क्यों उसे सब कुछ सच नहीं बता देता. राम अपनी प्रेमिका चित्रा से भी क्यों बातें छिपाता है ये सवाल भी लोगों के दिमाग में घूमता रहता है. एक और सवाल जो सभी के मन में आता है वो ये कि क्यों राम मंदार की मदद करना चाहता है.
फिल्म में कुछ हास्य दृश्य ठीक-ठाक हैं लेकिन ज़्यादातर दृश्य हलके ही हैं.
फिल्म में कलाकारों के अभिनय की अगर बात करें तो एक बार फिर आयुष्मान खुराना ने साबित कर दिया कि वो कितने अच्छे अभिनेता हैं. कुनाल रॉय कपूर भी बढ़िया हैं और कुछ मज़ाकिया दृश्यों में तो वो कमाल के लग रहे हैं. पूजा साल्वी ठीक-ठाक ही हैं.
रोहन सिप्पी के निर्देशन की अगर बात करें तो इस तरह की हास्य फिल्म को बनाने के लिए ज़रूरी निपुणता उनमें नज़र नहीं आई. फिल्म में ऐसे कई हास्य दृश्य हैं जो दर्शकों तक इसलिए नहीं पहुंच पाते क्योंकि जिस तरीके से उन्हें फिल्माया गया है वो बड़ा अजीब है.
फिल्म का संगीत अच्छा है. ‘मेरा मन’ और ‘साड्डी गली आजा’ बेहद सुरीले गाने हैं. फिल्म के बाकी गाने औसत हैं. कौसर मुनीर के बोलों में कशिश है. स्वरुप और हिमांशु की कोरियोग्राफि में कोई दम नहीं दिखता. आरिफ शेख की एडिटिंग अगर थोड़ी टाइट होती तो ज्यादा अच्छा होता.
सीधी बात कहूं तो नौटंकी साला कोई बेहद मनोरंजक फिल्म नहीं है. हां ये ज़रूर है कि फिल्म के निर्माताओं ने पहले ही फिल्म डिस्ट्रीब्यूटरों को अच्छे दामों में बेच कर पैसा कमा लिया है लेकिन अब डिस्ट्रीब्यूटर अपने पैसे को कैसे वसूल करेंगे ये पता नहीं.
सो. बी बी सी