उदयपुर में फिल्माई गयी फिल्म धड़क की समीक्षा फिल्म समीक्षक इदरीस खत्री द्वारा
निर्देशक :- शशांक खैतान
संगीत :- अतुल-अजय
कास्ट:- इशांत खट्टर, जहान्वी कपूर, आशुतोष राणा, खरज मुखर्जी, विश्वनाथ चटर्जी
अवधि :- 137 मिनट
मूल परिकल्पना मराठी फिल्म सैराट का रीमेक है फ़िल्म सैराट मराठी सिनेमा की केवल एक फ़िल्म नही वृतांत थी जिसकी लागत महज 4 करोड़ थी और आमदनी 120 करोड़
फ़िल्म सैराट का यह पहला रीमेक नही हैं धड़क के पहले भी पंजाबी, कन्नड़, उड़िया भाषा मे रीमेक बन चुके है.
पंजाबी में पंकज बत्रा चन्ना मोरिया नाम से, कन्नड़ में मानसु मल्लिगे, उड़िया भाषा मे लैला ओ लैला, बन चुकी है, ओर बंग्ला भाषा मे नूरजहाँ नाम से बन रही है.
हिंदी में धड़क एक मात्र रीमेक है लेकिन जिन्होंने सैराट देखी है उन्हें निराशा होगी धड़क देख कर
फिर भी फ़िल्म मनोरंजन करने में कामयाब रही है .
देश के वर्तमान हालात से पहले भी ऊंच नीच जाति, गरीब अमीर पर प्रेम कहानियां बनती रही है
ऊँच नीच प्रेम पर बिमल राय की सुजाता(1959), एक दलित कन्या को ब्राहमंड के लड़के से प्यार यह थी,इसके पहले अछूत कन्या भी उल्लेखनीय फ़िल्म थी| यह तो बात हुई फिल्मी पृष्ठभूमिया भारतीय परिपेक्ष में.
खैर धड़क पर आते है
फ़िल्म राजस्थान के उदयपुर में शुरू होती है जहां रतन सिंह(आशुतोष राणा) एक बड़े, अमीर राजनीतिक शख्सियत है, उनकी बेटी पार्थवी(जहान्वी कपूर) नव युवती है जो कि एक गरीब लड़के मधुकर(इशान्त खट्टर) में प्रेम हो जाता है|जोड़ी एक दम तरोताज़ा लगती है क्योंकि लम्बे समय बाद कमसीन प्यार करने वाले देखने को मिले है, एक दूजे के लिए, कयामत से कयामत, मैंने प्यार किया , जाने तू के बाद,
तो साहब छोटी जात का लड़का, उच्च कुलीन लड़की का बड़ा नफासत भरा प्यार दिखाया गया और जब प्यार मुकम्मल पर आता है तो ट्विस्ट आना तय होता है तो रतन सिंह को पता चल जाता है तो वह मधुकर को अपना रसूख की बिना पर जेल में डलवा देते है पर पार्थवी मधुकर को लेकर भाग जाती है और दोनों कलकत्ता भाग जाते है .
कोलकाता में मधुकर के व्यवहार में अचानक तब्दीली समझ से परे लगती है, पार्थवी अपने पिता के घर को होटल का सम्बोधन भी समझ नही आता है. क्यो एक बाहूबली नेता अपनी बेटी को खोज नही पाता लम्बे समय तक. यह सब सवाल उलझा देते है. लेकिन अंत मे सैराट की जगह कुछ बदलाव किए है जिसे देखने के लिए फ़िल्म देखनी पड़ेगी .
अभिनय की बात करे तो इशान्त ने शानदार अभिनय दिखाया है लेकिन श्रीदेवी पुत्री जहान्वी कपूर कई जगह कमज़ोर नज़र आती है समय लगेगा उसे अभिनय की बारीकियों को समझने में.
आशुतोष राणा उम्दा है लेकिन उन्हें कम जगह मिली है. जितना उनका अभिनय है वह लाजवाब है|
फ़िल्म की लागत 50 करोड़ है मार्केटिंग पब्लिकेशन के 20 करोड़ बजट हो गया 70 करोड़
अब सवाल यह बनता है बजट को लेकर फ़िल्म 100 करोड़ पार करेगी तो हिट मानी जाएगी
संगीत अतुल-अजय के संगीत ने बहूत कमाल तो नही लेकिन फ़िल्म बांधे रखी है अमिताभ भट्टाचार्य के गाने भी सुनने में अच्छे लगे है. सैराट से तुलना न करे तो एक स्वस्थ मनोरंजक फ़िल्म या लम्बे समय बाद एक कमसीन लव स्टोरी आई है बॉलीवुड में .
फ़िल्म 3 स्टार्स
समीक्षक-इदरीस खत्री