उदयपुर। विधानसभा चुनाव में राजस्थान की सबसे हॉट सीट वल्लभनगर सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। यहां भाजपा के बागी रणधीरसिंह भींडर तीसरी शक्ति के रूप में उभरे हैं और पूरे दमखम के साथ पहले पायदान पर है। इनका विरोध करके भाजपा के कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया भी मुश्किल में फंसे हुए हैं और कटारिया को राजपूतों का विरोध झेलना पड़ रहा है, लेकिन मुकाबला यहां पर त्रिकोणीय है।
इस सीट से आठ प्रत्याशी मैदान में हैं। वर्तमान में इस सीट पर कांग्रेस के गजेन्द्र सिंह शक्तावत का कब्जा है, जो कांग्रेसी प्रत्याशी है। भाजपा से गणपत मेनारिया मैदान में है, जिन्हें ब्राह्मण होने के साथ ही सांठगांठ के कारण भाजपा से टिकट मिला है। इस सीट पर कांग्रेस को वोट बंटने का, तो भाजपा को बागी का खतरा है, क्योंकि भाजपा प्रत्याशी गणपत मेनारिया को कांग्रेस से लाकर आखिरी वक्त में भाजपा का प्रत्याशी घोषित किया गया है। वल्लभनगर में मतदाताओं की संख्या 221674 है। इनमें से 113019 मतदाता पुरूष और 108६55 मतदाता महिलाएं हैं। पिछली बार कांग्रेस के गजेन्द्रसिंह शक्तावत यहां से विजयी हुए थे।
वोट बंटने का खतरा: कांग्रेस ने इस बार मौजूदा विधायक गजेन्द्रसिंह शक्तावत को ही मैदान में उतारा हैं। हालांकि उनकी स्थिति भाजपा के बागी रणधीरसिंह भींडर के मैदान में होने से मजबूत समझी जा रही है, लेकिन रणधीरसिंह भींडर यह कहकर प्रचार कर रहे हैं कि शक्तावत कांग्रेसी प्रत्याशी है, मेनारिया मूल रूप से कांग्रेसी है, जिनको भाजपा ने टिकट दिया है। इनके अलावा राजपा प्रत्याशी भी टिकट मिलने से पहले कांग्रेस से ही जुड़ा था। टिकट नहीं मिलने के कारण रणधीरसिंह भींडर के प्रति पूरे क्षेत्र में एक सहानुभूति का माहौल बन गया है, जो शायद भाजपा से टिकट मिलने के बाद भी नहीं बन पाता।
ब्राह्मण कार्ड हो सकता है फेल: सबसे ज्यादा मुसीबत यहां पर भाजपा की है। भाजपा ने इस सीट पर मेवाड़ के ब्राह्मणोंं को खुश करने के लिए गणपत मेनारिया को टिकट दिया है। पिछले चुनाव में गणपत मेनारिया कांग्रेस के बागी के रूप में चुनाव लड़े थे और इस बार उन्हें स्वयं को सभी जगह भाजपा का प्रत्याशी बताना पड़ रहा है। सबसे बड़ा खतरा मेनारिया को रणधीरसिंह भींडर से है, जो भाजपा के बागी है। भींडर मेवाड़ के राजपूतों के सहानुभूति और समर्थन से मजबूत स्थिति में है। दूसरी और वल्लभनगर क्षेत्र में कटारिया का भारी विरोध है और मेनारिया को कटारिया समर्थित होने का खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
निर्दलीय होने का डर: इस सीट से भाजपा के सबसे प्रबल दावेदार रणधीर सिंह भींडर ही माने जा रहे थे, लेकिन कटारिया से विवाद के कारण उनका टिकट कट गया। इसके बाद कार्यकर्ताओं के भारी समर्थन के चलते भींडर बागी बन निर्दलीय खड़े हो गए। 2003 में भींडर यहां से भारी मतों से विजयी हुए थे। इस बार उन्हें राजपूतों का भारी समर्थन हासिल है, लेकिन पार्टी सिम्बोल नहीं होने से उन्हें हर जगह अपने सिम्बोल क्रबल्लेञ्ज का प्रचार करना पड़ रहा है। क्षेत्र के अधिकतर मतदाता भींडर को कमल निशान से ही पहचानते हैं। वल्लभनगर सीट पर पूरे जिले की नजर है।
वल्लभनगर सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला
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