उदयपुर। विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार की घोषणा होते ही तत्काल आम प्रतिक्रिया यह थी कि कांग्रेस ने भाजपा को सोने के थाल में सीट परोस दी। यहां से डॉ. गिरिजा व्यास, लालसिंह झाला, सुरेश श्रीमाली आदि में से किसी को टिकिट दिया जाता तो संघर्ष कांटे का हो सकता था, किन्तु अब तो कटारिया को कुछ करने की जरूरत ही नहीं है, सारा मामला एक तरफा है।
लेकिन, जैसे ही मावली और वल्लभनगर विधानसभा क्षेत्रों से भाजपा उम्मीदवारों की घोषणा हुई ब्राह्मण और राजपूत समाज के काफी लोगों की त्यौरियां चढ गई और उन्होंने उदयपुर शहर के भाजपा उम्मीदवार और भाजपा नेता गुलाबचन्द कटारिया के विरोध का बिगुल बजा दिया। जातीय धु्रवीकरण के असफल प्रयास भी हुए और लगा कि यदि विरोध तगडा हुआ तो भाजपा-कांग्रेस में कांटे की टक्कर होगी। किन्तु कांग्रेस में भी घोषित उम्मीदवार का विरोध होने से पूरी स्थिति असमंजस पूर्ण हो गई। दोनों दलों के कई वरिष्ठ कार्यकर्ता अपनी-अपनी पार्टी के उम्मीदवार को हराना चाहते हैं और सोचते हैं कि इनके हारने पर ही कार्यकर्ताओं की अहमियत आलाकमान को महसूस हो सकती है तथा भविष्य में उनके लिए अवसर खुले हो सकते हैं।
भाजपा के असंतुष्टों में यह चर्चा आम है कि यदि गुलाबजी जीत गए तो वे उन्हे हमें हमेशा-हमेशा के लिए राजनीतिक दृष्टि से दफन कर देंगे। जबकि कांग्रेस में यह चर्चा है कि दिनेश श्रीमाली जीत गया तो भविष्य में उनका नम्बर तीन टर्म तक नहीं लगने वाला है। इससे असमंजस पूर्ण हालात बन गए है।
इस बीच माकपा के राजेश सिंघवी ने घर-घर खूब जनसम्पर्क कर लिया और लगातार तीन बार से नगर परिषद में पार्षद चुने जाने और अपनी साफ-सुथरी छवि, सरलता, सहजता के कारण काफी लोकप्रियता अर्जित कर ली। अब भाजपा और कांग्रेस के असंतुष्टों का व्यक्तिगत छवि के आधार पर राजेश सिंघवी की ओर रुझान बनने लगा है, जिससे उदयपुर शहर विधानसभा क्षेत्र में त्रिकोणीय संघर्ष के हालात पैदा हो गए हैं।
मेवाड में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दलों में पहली बार असंतुष्ट इतने मुखर हुए हैं, जितने पहले कभी नहीं हुए, यह गहराते जा रहे असंतोष और सहनशक्ति की सीमा की पराकाष्ठा का प्रतीक है। लेकिन, यह मुखर विरोध आत्महत्या जैसा है या दम घोटू गुलामी के माहौल से बाहर आकर अन्याय, अनीति का प्रतिकार कर भविष्य के लिए रास्ता साफ करने वाला सिद्ध होगा; यह वक्त की कसौटी पर है।
राजनीति में इस समय मेवाड के दो क्षत्रप सक्रिय हैं। एक ओर भाजपा व श्री गुलाबचन्द कटारिया एक दूसरे के पर्याय हैं, वहीं दूसरी ओर प्रोफेसर सी.पी. जोशी कांग्रेस के पर्याय बन गए हैं। दोनों क्षत्रपों के बीच कई प्रकार के संबंधों की चर्चा और राजनीतिक मैच फिक्सिंग सांठगांठ जैसे संगीन आरोप भी हवा में हैं, लेकिन उन पर चर्चा करना इस समय औचित्यहीन हो गया है, क्योंकि टिकिट वितरण में उनको जो करना था उन्होंने कर लिया। अब तो सबकुछ कार्यकर्ताओं और जनता के हाथों में है कि वे उनके किए पर मोहर लगाते हैं या वाकई अनीति, अन्याय, सिद्धान्तहीनता की मुहर लगाकर उनके फैसलों को नकारते हैं। अपनी राजनीतिक हत्या की कोशिश को वे राजनीतिक आत्महत्या में बदलते हैं या कड़ा जवाब देकर इस आघात को सहन करने से इन्कार करते हुए अपने रास्ते साफ करते हैं। ताकि भविष्य में आलाकमानों को सोचने पर विवश होना पड़े कि वह टिकिट वितरण में जनाधार, जन भावना और कार्यकर्ताओं की वरिष्ठता तथा काबलियत को अनदेखा न करे।
बहरहाल, एक बात पिछले कुछ दिनों से चल रही है ब्राह्मणों के धु्रवीकरण की, किन्तु मेवाड के राजनीतिक मंच पर यह नितांत असंभव और अव्यावहारिक है। यहां न तो बनिया (जैन) समुदाय एकजुट है और न ही ब्राह्मण समुदाय एकजुट हो सकता है और न ही दोनों में जातीय संघर्ष संभव है। यह उचित भी नहीं है। दूसरी बात यह धु्रवीकरण होकर आप क्या उपलब्धि हासिल कर लेंगे? यह सवाल पिछले तीन दिनों से दोनों ही पार्टियों के उन असंतुष्ट लोगों के इर्दगिर्द तेजी से घूम रहा है। इन लोगों का यह स्पष्ट मानना है कि उदयपुर में यदि श्री गुलाबचन्द कटारिया जीतते हैं तो विरोधियों की दुर्गति निश्चित है। और कांग्रेस के श्री दिनेश श्रीमाली जीतते हैं तो कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ लोगों के सीने पर सांप दौडऩे लगे हैं। साथ ही भविष्य में उनका नम्बर लगने की संभावनाएं समाप्त हो जाएंगी। दोनों पार्टियों के असंतुष्टों के लिए दोनों ही उम्मीदवारों का हारना जरूरी है।
इधर लोगों का यह विचार भी सामने आया कि इस बार सरकार ने जिस एक और बटन (नोटो) की व्यवस्था की है, उसे दबाया जाए, किन्तु उन्हीं के साथी यह दलील भी दे रहे हैं कि इसका भी कोई फायदा नहीं होगा। ऐसे में क्यों न सभी नाराज लोग एक साथ इस निर्णय पर आजाएं कि हम व्यक्तिगत आधार पर एक अच्छे मिलनसार, साफ-सुथरी छवि और नगर परिषद में लगातार तीन बार पार्षद चुनकर आने वाले श्री राजेश सिंघवी को वोट दें। ऐसा करना हर दृष्टि से और भावी राजनीतिक अवसरों की दृष्टि से भी उपयुक्त होगा। असंतुष्टों का प्रबल समर्थन मिले तो राजेश सिंघवी के जरिए सबके रास्ते साफ़ हो सकते हैं.
वैसे अब आम जन के समझ में आने लगा है कि मेवाड में भाजपा और कांग्रेस दोनों के क्षत्रप झण्डाबरदार, जो अपनी अंधी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं और अहंकार के कारण पार्टी का हित-अहित नहीं सोचते, पार्टी और अपने कार्यकर्ताओं के साथ धोखा करते हैं, वे आम आदमी के कब हो सकते हैं और आम आदमी का क्या भला कर सकते हैं?
त्रिकोणात्मक संघर्ष में फंसी उदयपुर सीट!
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