उदयपुर । मुस्लिम समुदाय द्वारा देश भर के साथ साथ शहर में ईदुल ज़ुहा हर्षोल्लास और अकीदत के साथ मनाया जारहा है । सुबह 7.15 से ९ बजे तक शहर की विभिन्न मस्जिदों में ईद की नमाज अदा की गयी । नमाज़ के दौरान शहर और देश की खुश हाली की दुआएं मांगी गयी । और कुर्बानी का सवाब अल्लाह से देश में अम्नो अमान की सूरत में मांगा गया । सभी मस्जिदों में ईद की नमाज़ के बाद सभी मुस्लिम भाइयों ने एक दूसरे को गले लगा कर ईद की बधाई दी । और फिर घरों में बकरों की कुरबनानी का सिलसिला चला जो दोपहर तक चलता रहा । कई घरों में बकरों की कुर्बानी की गयी और नियमानुसार कुर्बानी के गोश्त को रिश्तेदारों और गरीबों में तकसीम किया गया ।
यहाँ यहाँ हुई ईद की नमाज़ : अंजुमन तालीमुल इस्लाम की सूचना के अनुसार शहर की विभिन्न मजिस्दों में अलग अलग समय पर ईद की नमाज़ अदा की गयी जिसमे सुबह 7.15 बजे : चिल्ले की मस्जिद , कहारवाड़ी, दरखान वाड़ी, हाथीपोल।
सुबह 7.30 बजे : मदीना मस्जिद लोहार कॉलोनी आयड़ ।
सुबह 7.45 बजे : छोटी मस्जिद सवीना ।
सुबह 8 बजे : मस्जिद 80 फीट रोड सज्जननगर, शोएबुल अौलिया मुर्शिद नगर, खारा कुआं, बड़ी मस्जिद सवीना, रजा कॉलोनी मल्लातलाई, हुसैन मस्जिद धोली बावड़ी, छीपा कॉलोनी मल्लातलाई, दीवानशाह कॉलोनी पटेल सर्कल, खांजीपीर, मस्ताना बाबा, आलू फैक्ट्री, सौदागर वाले बाबा खाई कब्रिस्तान मस्जिद।
सुबह 8.15 बजे : मस्जिद आयड़ ईदगाह, सिलावटवाड़ी, गोसिया कॉॅलोनी, हिरणमगरी सेक्टर-5, जहांगीरी मस्जिद वर्मा कॉलोनी, गरीब नवाज कॉलोनी रूपसागर, सज्जननगर ए-ब्लॉक, कत्ले सात।
सुबह 8.30 बजे : मस्जिद पहाड़ा, रहमान कॉलोनी, अलीपुरा।
सुबह 8.45 बजे : मस्जिद पलटन ईदगाह।
सुबह 9 बजे : मस्जिद मकबरा सूरजपोल, जामा मस्जिद चमनपुरा, ईदगाह पुराना स्टेशन। ईद की नमाज़ अदा की गयी । मस्जिदों में नमाज़ के दौरान जिला प्रशासन द्वारा भी व्यवस्थाएं की गयी थी ।
कुर्बानी पर्व : बकरीद को इस्लाम में बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है। इस्लाम में एक वर्ष में दो ईद मनाई जाती है। एक ईद जिसे मीठी ईद कहा जाता है और दूसरी है बकरीद। बकरीद पर अल्लाह को बकरे की कुर्बानी दी जाती है। पहली ईद यानी मीठी ईद समाज और राष्ट्र में प्रेम की मिठास घोलने का संदेश देती है।
दूसरी ईद अपने कर्तव्य के लिए जागरूक रहने का सबक सिखाती है। राष्ट्र और समाज के हित के लिए खुद या खुद की सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का संदेश देती है। बकरे की कुर्बानी तो प्रतीक मात्र है, यह बताता है कि जब भी राष्ट्र, समाज और गरीबों के हित की बात आए तो खुद को भी कुर्बान करने से नहीं हिचकना चाहिए।
क्या है ईद-उल-अजहा
अल्लाह के हुक्म पर पैगंबर हजरत इब्राहिम (अ.स.) द्वारा अपने प्रिय पुत्र हजरत इस्माईल (अ.स.) को कुर्बान करने की याद में लोग जानवरों की कुर्बानी देकर ईद-उल-अजहा मनाते हैं । इस यादगार परंपरा को पैगंबर हजरत मोहम्मद (स.अ.) ने मुसलमानों को भी अदा करने का हुक्म दिया। उसके बाद से दुनिया भर के मुसलमान अरबी महीना ‘जिइल हिज्जा’ की दसवीं तारीख को यह पर्व मनाते हैं। इसी दौरान मक्का में हज के अरकान भी अदा किए जाते हैं।
ईदुल ज़ुहा अपने कर्तव्य के लिए जागरूक रहने का सबक सिखाती है। राष्ट्र और समाज के हित के लिए खुद या खुद की सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का संदेश देती है। बकरे की कुर्बानी तो प्रतीक मात्र है, यह बताता है कि जब भी राष्ट्र, समाज और गरीबों के हित की बात आए तो खुद को भी कुर्बान करने से नहीं हिचकना चाहिए। कोई व्यक्ति जिस परिवार में रहता है, वह जिस समाज का हिस्सा है, जिस शहर में रहता है और जिस देश का वह निवासी है। उस व्यक्ति का फर्ज है कि वह अपने देश, समाज और परिवार की रक्षा करे। इसके लिए यदि उसे अपनी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देना पड़े तब भी वह पीछे ना हटे।
तीन हिस्से किए जाते हैं कुर्बानी के :
इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है। इसी वजह से ईद-उल-जुहा पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन कुर्बानी के सामान के तीन हिस्से किए जाते हैं। इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों का बांटा दिया जाता है।