-:वरिष्ठ पत्रकार उग्रसेन राव की बेबाक टिपण्णी :-
कहते हैं अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, पर भड़भूजे की आंख तो फोड़ सकता है। उदयपुर की भड़भूजा घाटी पर “वरुण बाजार” को सीज करने की कार्रवाई भी, कुछ इसी तर्ज पर है। चार मंजिला “वरुण बाजार” को बनने में ढाई साल लगे और इसकी 107 दुकानों में ढाई साल से व्यापार चल रहा था। यानी पांच साल तक नगर निगम को न तो निर्माण का पता चला न कारोबार का। इस बीच कई सारे नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ती रही लेकिन संबंधित जनप्रतिनिधि, अफसर और इंस्पेक्टर आंखे मूंदे रहे। ऐसा कभी मुफ्त में नहीं होता। अच्छी खासी वसूली से इनकार नहीं किया जा सकता। संबंधित इंस्पेक्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होना तो यही दर्शाता है कि “परोक्ष राजस्व” ठेठ ऊपर तक पहुंचा है। इस सारे गड़बडज़ाले में निगम कमिश्नर और महापौर के बयान तो कोई खुलासा नहीं कर रहे लेकिन पूर्व महापौर श्रीमती रजनी डांगी का यह कहना कि भवन निर्माण अनुमति समिति की अध्यक्ष श्रीमती किरण जैन थीं, उन्हें पता होगा, कई संकेत दे रहा है।
वैसे यह बड़ी कार्रवाई भी छोटे-छोटे अवैध निर्माणों के लिए बड़ा संकेत है कि ऐसे लोग इस लटके हुए सिर को देखकर अपने सिर की सलामती की व्यवस्था कर ले। पहले भी ऐसा ही होता आया है। शुरू-शुरू में महापौर ने खूब तोडफ़ोड़ मचाई लेकिन जैसे ही यह लगा कि लोग उन्हें यौद्धा मानने लगे हैं, तो उन्हें पीछे खींच लिया गया। इससे हुआ यह कि बचे हुए गैर कानूनी निर्माण कार्यों की सलामती चाहने वाले दौड़ पड़े और एक बड़ा फंड एकत्र हो गया।
इससे पहले तो और भी मजेदार खेल हुआ। विधायकजी ने उदयपुर में धड़ल्ले से चल रहे अवैध निर्माण कार्यों की सूची विधानसभा के पटल पर रख दी। यह घटना अखबारों की सुर्खियां बन गई। उस समय सरकार कांगे्रस की थी और नगर परिषद में बोर्ड भाजपा का था। वह सूची परिषद में आ गई, जिसे तत्कालीन सभापति रवींद्र श्रीमाली ने कमिश्नर को सौंप दिया लेकिन किसी प्रकार की कार्रवाई के लिए नहीं लिखा। कमिश्नर ने उक्त सूची पत्रकारों को बताते हुए पूछा कि “इसका मैं क्या करूं?” बाद में पता चला कि यह सारी नाटकबाजी पार्टी फंड एकत्र करने में काम आई। यह अलग बात है कि पार्टी फंड वरिष्ठ नेताओं के पास रहता है और उसमें गबन घोटालें होते आए हैं। इस बारे में सन् 1977 की एक घटना प्रसिद्ध है, जब जनता पार्टी जन सहयोग के लिए झोलियां फैला रही थी। देहलीगेट की एक इमारत में तीसरी मंजिल पर चुनाव कार्यालय था। वहां नोटे से भरा एक ब्रीफकेस आया, जिसे कामधाम संभाल रहे एक भाई साहब लेकर चलते बने। वे उस चुनाव में वापस कभी कार्यालय की सीढिय़ां नहीं चढ़े।
अब नियम कानूनों की बात करें। शास्त्री सर्किल के एक आवासीय भूखंड पर बगैर भू-उपयोग परिवर्तन कराए आठ दुकानें निकालकर किराए दे दी। निर्माण अनुमति भी नहीं ली। महापौरजी को लिखित शिकायत की तो वे बोले – पूरे शहर में आवासीय भूखंडों पर दुकानें निकालकर व्यवसाय किया जा रहा है। किस-किस पर कार्रवाई करें? जब उन्हें एक फुटपाथ पर अतिक्रमण हटाने के लिए कहा तो वे बोले – फुटपाथ पर पौधरोपण तो किया जा सकता है। जब उन्हें यह बताया गया कि कांटेदार बाड़ लगाकर पूरा फुटपाथ समाप्त कर दिया गया है। तो वे बोले, पौधों की सुरक्षा के लिए बाड़ लगाई गई है। बाद में पता चला कि ये तो इनके सगे वाले हैं। तो वरुण माल वाले व्यापारी निराश न हो। आईएएस कमिश्नर ने संकेत दे दिया है कि जब तक नीतिगत निर्णय नहीं होता, तब तक दुकानें सीज रहेगी। जुगाड़ करो, जुगाड़। पहले परोक्ष पेनल्टी भरो, फिर प्रत्यक्ष भी भर देना। सब सही हो जाएगा। बोलो, सही पकड़े हैं ना।