मनोज बिनवाल
सवा सौ करोड़ देशवासी नए भारत के उज्जवल भविष्य के लिए उसी दिन दौड़ पड़े थे, जब उन्होंने नरेन्द्र मोदी के वादों पर भरोसा करते हुए भाजपा को वोट दिया था। पांच सालों तक विकास की धीमी गति और घपलों-घोटालों के बाद 2014 में कोटि-कोटि भारतीयों ने तीन दशक बाद स्थिर सरकार चुनी । सरकार ने भी अभी तक 8 महीनों में सकारात्मक संकेत दिया है कि वह देश के लिए कुछ करना चाहती है। सत्ता में आते ही मोदी ने अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने में ही अपने कार्यकाल का पहला महीना खर्च किया। मकसद था ढांचागत सुधार के लिए विदेशों से धन जुटाना। इसी वजह से उन्होंने जापान से लेकर अमेरिका और चीन तक इकोनॉमी लिफ्ट का अपना एजेंडा पहुंचाया है। जनता को इस पर भरोसा भी इसलिए विधानसभा चुनाव में भी वह भाजपा को जितवा रही है। लेकिन नए साल में देश को 1 करोड़ नौकरियों की आवश्यकता है। स्मार्ट सिटी, डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करना होगा। मंहगाई में कमी के असर को घरों तक पहुंचाना होगा। यानी नए साल में सरकार को संकेत से ज्यादा धरातल पर कुछ करना होगा। उधर सरकार के लिए सभी कुछ शुभ-शुभ ही हो रहा है। अर्थव्यस्था की विकास दर बढ़ी है। क्रूड आइल के दाम कम होने से देश का वित्तीय घाटा आैर सब्सिडी का बोझ कम हुआ है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि बेहतर हुई है। विदेश निवेश बढ़ा है। घरेलू उत्पादन बढ़ रहा है। घरेलू मोर्चे पर पेट्रोल- डीजल के दाम में 12 फीसदी और दैनिक अावश्कताओं की वस्तुओं की कीमतों में भी कुछ कमी आई है। इस साल केन्द्र सरकार के सामने सिर्फ बिहार में ही राजनीितक चुनौती है। यानी पूरा साल काम करने और उनके नतीजे दिखाने के लिए है।
बजट पर रहेंगी नजरें
अब सभी की नजरें आम बजट पर हैं। यह बजट मोदी सरकार का एजेंडा तय करेगा कि सरकार की अगले चार साल के लिए लाइन आफ एक्शन क्या होगी। इससे पहले मोदी सरकार के वित्त मंत्री के तौर पर अरूण जेटली की ओर से पेश किए गए अंतरिम बजट में कुछ करने की ज्यादा गुंजाइश नहीं थी। इसलिए अब नए बजट पर देश और दुनिया की नजर लगी हुई है। इसमें भी इन प्रमुख मुद्दों पर देशवासी उत्तर चाहेंगे। मसलन
* देशव्यापी जीएसटी यानी गुड्स और सर्विस टैक्स को लागू करने के लिए राज्यों को आर्थिक मदद कैसी दी जाएगी।
* डायरेक्ट टैक्स कोड कैसे लागू होगा और इनडायरेक्ट टैक्स प्रक्रिया का सरलीकरण कैसे होगा।
फूड सबसिडी से लेकर कुकिंग गैस सबसिडी तक को आधार से जोड़ने और बैंक अकाउंट तक सबसिडी को पहुंचाने की चुनौती का भी हल उन्हें निकालना है।
* राेगजगार बढ़ाने के लिए मेक इन इंडिया का फोकस छोटे उद्योगों पर होगा या बडे उद्ममों पर। या दोनों को साथ में रखते हुए कोई मिश्रित फार्मूला होगा।
विनिवेश से भी 38,000 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य कैसे पूरा होगा।
* गंगा शुद्धिकरण और किसानों के हालात सुधारने और उन्हें उपज के वाजिब दाम दिलवाने के लिए सरकार की योजना क्या है।
* बजट घाटा संभालने और खर्च में कमी के लिए क्या-क्या किया जा रहा है।
हर साल एक करोड नौकरियां की दरकार
सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती नौकरियों को लेकर है। तीन दशक बाद देश को बहुमत वाली सरकार देने में बेरोजगारी या बेहतर करियर की तलाश में भटक रहे युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसलिए सरकार भी इस दिशा में सक्रिय है। विश्व बैंक के एक अनुमान के अनुसार भारत में हर साल एक करोड़ नौकरियों की जरूरत है। अब इस साल कारपोरेट सेक्टर में 10 लाख नौकरियाें की ही संभावना है। कृषि और इससे जुड़े असंगठित क्षेत्र के रोजगार इससे अलग हैं। यह पिछले कुछ सालों में सबसे बेहतर स्थिति है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि नौकरियों की संख्या बढ़ाने मे कम से कम दो साल का समय लगेगा। तत्काल नौकरियों के लिए सरकार को छोटे और मध्यम उद्योगों पर फोकस करना होगा। तभी साल भर में नई नौकरियां आ सकती हैं। मेक इन इंडिया के तहत स्वदेशी उद्योगों को लगाने के बाद भी नई नौकरियां आने में कम से कम दो साल लग जाएंगे।
स्वच्छता के लिए लाना होगा कानून
मोदी सरकार के स्वच्छता अभियान का देश भर में अच्छा संदेश गया है। लेकिन जमीन पर इसे और कारगर बनाने के लिए स्वच्छता संबंधी कानून लाने की जरूरत है। इसके बिना 2019 तक स्वच्छ बनाने के लक्ष्य को पाने में मुश्किलें आएंगी। पिछली सरकारों ने 14 साल में टॉयलेट बनाने के लिए 15 हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं लेकिन स्थिति अभी भी बेहद खराब है। ऐसे में नई सरकार युद्ध स्तर पर काम कर रही है और उसने आइटी कंपनी टीसीएस और भारती फाउंडेशन को इस मिशन से जोड़ा है। खासकर गंदगी फैलाने और सार्वजनिक स्थानों पर थूकने वालों पर दंडात्मक प्रावधान करने होंगे।
स्मार्ट सिटी और डिजीटल इंडिया
स्मार्ट सिटी और डिजीटल इंडिया प्रोजेक्ट पर अमल किया जा रहा है यह सरकार को इसी साल दिखाना होगा। पिछले बजट में स्मार्ट सिटी और डिजीटल इंडिया पर सरकार ने पर कम रकम रखी थी।
अंतरिम बजट मे सरकार ने 100 स्मार्ट सिटी के लए 7060 करोड़ का बजट रखा था। यानी एक सिटी के लिए 70 करोड़। जानकारों का कहना है कि यह रकम तो िसर्फ प्लानिंग में ही खत्म हो जाएगी। इसलिए इस साल सरकार को 100 स्मार्ट सिटी बनाने का पूरा प्लान आैर पैसे की व्यवस्था बजट में करनी होगी।
डिजिटल इंडिया योजना के पहले चरण में हर यूनिवर्सिटी में वाई-फाई और स्कूलों में इंटरनेट होगा। 50 हजार गांवों को ब्रॉड बैंड से कनेक्ट किया जाएगा। साथ ही मोबाइल इंटरनेट के जरिए बैंक खातों का संचालन होगा। टेलीमेडिसन से डॉक्टर से सलाह लेना आसान होगा। इसके लिए सरकार ने अंतरिम बजट में एक लाख करोड़ रूपए का प्रावधान किया था। इस पर अभी तक कुछ खास नहीं हुआ है। यह ऐसी योजना है जिस का अमल जनता को आसानी से समझ में आ जाएगा।
महंगाई, कालाधन और लोकपाल
सरकार को इस साल जिन कसौटियों कर कसा जाएगा उनमें महंगाई काे कम करना सबसे प्रमुख है। पेट्रोल-डीजल सस्ते हुए हैं, खाद्य महंगाई कम हुई है, लेकिन अभी इसका उतना फायदा जनता तक नहीं पहुंचा है। नए साल में कीमतों में कमी के असर को घरों तक पहुंचाना होगा। इसके अलावा विदेशों से कालाधन लाना, लोकपाल की नियुक्ति करना, जैसे मुद्दों पर पर सरकार के काम की समीक्षा होगी।
अध्यादेश की राजनीति
संसद में कुछ गतिरोधों के बाद भाजपा ने बीमा में एफडीआई की सीमा बढ़ाने और जमीन अधिग्रहण कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश का सहारा लिया। कुछ बिल लोकसभा में तो पारित हो चुके हैं। भाजपा को इन बिलों को पारित करवाने में विपक्ष का रचनात्मक सहयोग लेना चाहिए। सरकार का तर्क है कि राज्यसभा में विपक्ष के हंगामें के कारण कुछ बिल पारित नहीं हो पाए। विकास की गति को तेज करने के लिए ऐसा करना जरूरी था। वैसे संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर भी कानूनों में संशोधन किसा जा सकता है। जो भी हो भारत में संसद की सर्वोच्चता बनाए रखी ही जानी चाहिए। इसकी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी सत्तापक्ष की होती है और इसे भाजपा को नहीं भूलना चाहिए।
कांग्रेस को विपक्ष की भूमिका में आना ही होगा
इस सब के बीच कांग्रेस अभी भी अपनी भूमिका की तलाश में है। कांग्रेस दोहरे सदमे में है। पहले तो उसे यह स्वीकारने में समय लग रहा है कि वह अब सत्ता से बाहर है। दूसरा वह यह बात भी नहीं पचा पा रही है कि जनता ने उसे प्रमुख विपक्षी दल बनने लायक भी सीटें नहीं दी। और रही सही कसर महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड में हार ने पूरी कर दी। पर उसे विपक्ष की भूमिका में तो आना ही होगा। सवाल भूमिका को लेकर भी है। पार्टी में भूमिका परिवार की होगी या अब किसी कार्यकर्ता को पार्टी में अहम भूमिका सौंपी जाएगी। कांग्रेस को जनता को यह तो बताना ही होगा कि भले भी जतना ने उसे विपक्ष के लायक भी नहीं समझा पर वह इस भूिमका को लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी की तरह निभा रही है। शायद इसी सकारात्मकता में से कंाग्रेस के लिए कोई भविष्य का रास्ता निकले।