“ये देश हे वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का इस देश का यारों क्या कहना”
बिलकुल सही इस देश का यारों क्या कहना । मेरे देश के वीर जवानों की याददाश्त धीरे धीरे कमज़ोर होती जा रही है ।
आज २८ सितम्बर शहीदे आज़म कहे जाने वाले शहीद भगत सिंह का जन्म दिन था। और लोगों के साथ मेरे साथी बुद्धिजीवी वर्ग कहे जाने वाले महान मीडिया की भी याददाश्त कमज़ोर होगयी है । अखबार और इलेक्ट्रॉनिक मीडया पुरे जमाने की खबरों से भरे पड़े है, लेकिन उस शख्श के लिए अखबार में एक कॉलम की खबर भी जगह नहीं बना पायी जिसने आज उन्हें लिखने की आज़ादी दिलवाई । जिस शहीद भगत सिंह ने मात्र २७ साल की उम्र में अपनी जान इस देश की आज़ादी के लिए देदी उसके लिए किसी एक चैनल ने एक मिनट की फुटेज भी नहीं चलायी । जबकि इस मुल्क में “नफरत का कारोबार चलाने वालों” को बैठा बैठा कर आपकी अदालत और जाने कौन कौन से प्रोग्राम बना घंटे घंटे भर के एपिसोड तैयार कर देते है ।
नोट : “नफरत का कारोबार चलाने वाले” से मेरा मतलब साक्षी महाराज, योगी आदित्य नाथ और असाउद्दीन ओवेसी व् उनके भाई अकबरुदीन ओवेसी से बिलकुल नहीं है। मुझे लव जेहाद जैसे हवाई इलज़ाम और फतवों से डर लगता है ।
जो बड़े बड़े चिंतक जो देश भक्ति की ताल फेसबुक और वॉट्सएप्प पर हमेशा ठोकते रहते है । जैसे के देश भक्ति का ठेका उन्ही लोगों के पास है उन्होंने एक पोस्ट तक नहीं की। कमाल है याददाश्त कमजोर होगयी है । लेकिन ऐसी याददाश्त अपने आकाओं के जन्मदिन पर तो कमज़ोर नहीं होती। अपने आकाओं के जन्म दिन पर तो बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह मिठाइयां बांटते है और पटाखे चओड़ाते है । और आज का जागरूक मीडिया जो सनी लीओन के जन्म दिन पर पुरे के पुरे घंटे भर के एपिसोड न्योछावर कर देती है । उसके वाहियात और बेढंगे गाने दिन भर चला देती है उसको भी याद नहीं आया। पुरे दिन ये बिकाऊ चैनल ” भक्ति ” में ऐसे लीन रहे कि जिसकी वजह से जिस जमीं पर इतनी आज़ादी से माइक थामे खड़े है, उसको ही याद नहीं किया । कमाल है साहब प्रोफेशनल होना अच्छी बात है लेकिन कुछ दायित्व भी है उनको भी याद कर लीजिए ।
हर खबर और हर मेसेज को अपने चेनल की टी आर पी बढाने का जरिया नहीं बनाइये । २८ सितम्बर के खुद को नंबर वन कहने वाले दैनिक भास्कर और खुद को राजस्थान का सिरमौर कहने वाले राजस्थान पत्रिका ने अपने २४ – २४ पेज के पेपर में एक कॉलम खबर नहीं लगाईं ।
कुछ फेसबुक और वॉट्सएप्प इक्का दुक्का पोस्ट जरूर नज़र आई ।
युवाओं और संस्कृति का देश कहे जाने वाले भारत में अगर एक शहीद क्रांति कारी के बलिदान का एसा तिरस्कार होता है तो हमे खुद को आईने के सामने खड़ा रख के यह आंकलन करना चाहिए की देश के आने वाली पीडी को हम अपनी धरोहर और संस्कृति के नाम पर क्या देगे, पोर्न फिल्मों की बेहया सन्नी लियोन । सोचो और सोचना ही पड़ेगा के कल को हमारे बच्चे हमारी आने वाली पीढ़ी बड़ी होके हमे ये कहे की शहीद भगत सिंह कोन था हम नहीं जानते हम तो सन्नी लियोन की तरह बनाना चाहते है तो क्या जवाब देगे । तो जरा एक बार विचार करिये क्या बीतेगा आपके दिल पर। आज हमें असली स्टार को स्टार कहने में शर्म आ रही है। वहीं दूसरी तरफ हम ऐसे लोगों को याद रख रहे है जो सांस्कृतिक रूप में हमारे अंदर जहर भर रहे हैं, हमें हमारे इतिहास से दूर कर रहे हैं। हमें मिल बैठ के इस तरह की किसी भी साजिश का अंत करना होगा। हम तभी विकसित हो सकते है, जब हम अपने इतिहास को जाने और उसे याद रखे।