पोस्ट. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजनेताओं की मौद्रिक संपत्ति में भारी उछाल के विरुद्घ कार्यवाही न करने के लिए केन्द्र की खिंचाई की और इस संबंध में आयकर द्वारा की गई इसकी जांच की रिपोर्ट अगले मंगलवार तक प्रस्तुत करने को कहा।
चुनावों में राजनेताओं द्वारा धनबल का प्रयोग किया जाता है। इसे रोकने के लिए राजनेताओं की संपत्ति की वृद्घि को रोकने पर जोर देते हुए जस्टिस जे चेलमेश्बर तथा अब्दुल नजीर ने कुछ नहीं करने के लिए केन्द्र की नीयत पर सवाल किया। और पूछा कि सरकार ने क्यों और चुनाव सुधार की बात की किन्तु उन्हें लागू करने की तारीख की बात कभी नहीं की।
पीठ ने अतिरित्त सॉलिसिटर जनरल पी एस नरसिम्हा से पूछा “क्या भारत सरकार का यही रूख है? आपने अब तक क्या किया है?” मैं पूछना चाहता हूं कि क्या नेताओं द्वारा अपने चुनावी शपथ पत्र में घोषित की गयी संपदाओं और जो वे आयकर रिटर्न में भी दिखाते हैं उनकी किस गतियों के बारे में कभी कोई जांच की गयी है।
एनजीओ लोक प्रहरी ने चुनाव जीतने के बाद राजनेताओं की संपत्ति में अचानक वृद्घि होने के संबंध में एक जनहित याचिका दायर की थी। जब उसके वकील ने बताया कि आयकर विभाग ने ऐसी जांच की है तब कोर्ट ने १२ सितंबर को अगली सुनवाई में इसे जांचना चाहा। जब नरसिम्हन ने कहा कि सरकार कार्यवाही करेगी तब जस्टिस चेलमेश्वर ने पलटकर कहा कृपया यह सुनिश्चित करें और मंगलवार को प्रात: ठीक १०. ३० बजे डेटा उपलब्ध कराये। आप मूलभूत डेटा उपलब्ध क्यों नहीं करा सकते? आप कम से कम यह तो कर सकते हैं। इस पर बल देते हुए कि यह एक बहुत गंभीर मामला है जज ने कहा कि वे ऐसे मामलों में सरकार के टालमटोल वाले वत्त*व्यों की अनुमति नहीं देंगे।
कोर्ट ने पुष्टि की आप कहते हैं कि आप चुनाव व्यवस्था सुधारने को तैयार है लेकिन आप निर्वाचित प्रतिनिधियों के बारे में ऐसी मूलभूत सूचना तक उपलब्ध कराने को तैयार नहीं हैं।
अपनी याचिका में लोक प्रहरी ने मांग की है कि न केवल चुनाव लड रहे प्रत्याशी बल्कि उनके जीवन साथी और बच्चों की आय भी सार्वजनिक की जाए।
जनहित याचिका का जबाव देते हुए चुनाव आयोग ने धनबल का बढती भूमिका पर रोष जताया। आयोग चाहता है कि सुप्रीम कोर्ट प्रत्याशियों के लिए उनके शपथ पत्र में उनके जीवन साथी तथा उन पर निर्भर बच्चों की आय घोषित करना भी आवश्यक कर दे। आयोग ने कहा कि निर्वाचन कानून के उद्देश्य से प्रत्याशियों के वास्ते ईमानदारी का वहीं पैमाना होना चाहिए जिससे सेवा कानूनों के तहत लोक सेवक पाबंद होते हैं।
चुनावों में धन बल के प्रयोग से लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को होने वाले गंभीर खतरे इंगित करते हुए चुनाव आयोग ने कहा कि किस प्रकार उसने भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए पैसे के उपयोग के सबूत मिलने के बाद तमिलनाडु के दो निर्वाचन क्षेत्रों में नये सिरे से चुनाव करवाए।