उदयपुर। स्कूल खुल चुके हैं, अभिभावक जहां अपने बच्चों के पहली बार स्कूल जाने या अगली क्लास में प्रमोट होने पर खुश है, वहीं बढ़ती हुई स्कूल फीस को लेकर उनकी चिंताएं हैं। ऐसे में शिक्षा की दुकानें बन चुके निजी स्कूलों की यह कोशिश रहती है कि बच्चों के माता-पिता की जेब से किस तरह से ज्यादा से ज्यादा रूपया निकला जाए। यहां तक की यह निजी स्कूल हर एक बात के पैसे एंठने वाले ये स्कूल कमिशनखोरी से भी नहीं चुकते हैं। विशेषकर स्कूल यूनिफॉर्म पर जमकर कमीशन लेते हैं।
शहर के कुछ गिने चुने स्कूल की युनिफॉर्म के लिए दुकानों पर इन दिनों सुबह से देर रात तक भीड़ लगी रहती है। अभिभावक और बच्चे अपनी स्कूल यूनीफॉर्म के लिए इन्हीं दुकानों पर आते हैं। ऐसा नहीं है कि स्कूल यूनिफॉर्म अन्य कपड़ों कि दुकानों पर नहीं मिलती, लेकिन शहर की कुछ चुनिंदा दुकानों पर स्कूल वालों का कांट्रेक्ट होता है और स्कूल से हिदायत दी जाती है की यूनिफॉर्म निर्धारित दुकान से ही खरीदी जाए, क्योंकि वह दुकानदार कमिशन के रूप में एक मोटी रकम स्कूल को देता है। ये रकम वो घटिया क्वालिटी के कपड़े की स्कूल ड्रेस और अभिभावकों से डबल कीमत लेकर वसूलता है।
हर स्कूल की अलग दुकान
प्रत्येक निजी स्कूल में हफ्ते में कम से कम दो अलग-अलग ड्रेस होती है। इसके अलावा एक स्काउड व स्पोट्र्स की ड्रेस अलग से होती है। इसके लिए स्कूल प्रबंधक शहर में पहले से तय एक दुकान निर्धारित कर लेते हंै। अभिभावकों को उसी दुकान पर जाकर ड्रेस लेनी होती है या फिर यूनिफॉर्म के पैसे स्कूल में जमा करने होते हैं और रसीद लेकर उस दुकान पर जाना होता है। स्कूल प्रबंधन के स्पष्ट निर्देश होते है कि स्कूल यूनिफॉर्म उसी दुकान से जाकर खरीदी जाए। कई स्कूलों ने यह व्यवस्था तो अपने स्कूल में ही कर रखी है, जिन्होंने यहां कमिशन पर एक टेलर को ठेका दे दिया है, जो बच्चों का नाप लेकर ड्रेस तैयार करता है।
घटिया क्वालिटी और दुगुनी कीमत
निजी स्कूलों की इस कमिशनखोरी के चलते दुकानदार अपनी मनमर्जी चलाते हैं। कपड़े की घटिया क्वालिटी रखते हैं और उस पर कीमत दोगुनी वसूलते हैं। एक स्कूल यूनिफॉर्म की नार्मल कीमत 300 से 500 की होती है, जबकि अभिभावकों को इसके 500 से 900 रूपये तक चुकाने पड़ते हैं। बच्चों के भविष्य और उनकी सुविधा के आगे बेबस अभिभावक सब कुछ समझते हुए भी कुछ नहीं कर पाते और डबल कीमत चुकानी पड़ती है।
किसी का अंकुश नहीं है इन पर
निजी स्कूलों की इस कमिशनखोरी पर किसी का कोई अंकुश नहीं है। हर स्कूल की अपनी अलग ही मनमानी और अपने ही नियम है। यह भी निर्धारित नहीं है कि हफ्ते में कितनी ड्रेस होनी चाहिए। कई स्कूलों में हफ्ते कि चार ड्रेसे होती है और सर्दी में फिर अलग ड्रेस। सरकार द्वारा भी ऐसे कोई नियम कानून नहीं है, जिससे इनकी इस मनमानी पर रोक लग सके।
शहर की चुनिंदा दुकानें
वैसे तो शहर में सैंकड़ों कपड़े की दुकानें हैं और वहां स्कूल ड्रेस भी उपलब्ध है, लेकिन स्कूलों के निर्देश के चलते शहर की कुछ ही चुनिंदा दुकाने हैं, जहाँ ड्रेस के लिए अभिभावकों को घंटों खड़े रह कर इंतजार करना पड़ता है और कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। इन दुकानों में बापू बाजार में अनुपम वस्त्रालय, लोढ़ा वस्त्रालय, राजलक्ष्मी, न्यू राज लक्ष्मी, शिरीन वस्त्रालय आदि शामिल है।
rokana hoga sare haramkhor hai sali