कैद, आशा, दुआ के ‘वो 372 दिन’

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अमरपाल की फ़ाइल फोटो
अमरपाल की फ़ाइल फोटो

सोमालिया में 372 दिन तक बंधक रहने के बाद राजस्थान के अरुणपाल सिंह सोमवार को सुरक्षित भारत लौट आए.

 

27 वर्षीय अरुणपाल सिंह जब जयपुर हवाई अड्डे से बाहर निकले तो पिता प्रेम सिंह ने उन्हें गले लगा लिया.

 

झुंझुनू जिले के वाहिदपुर गांव निवासी अरुण उन 17 भारतीय नागरिकों में से एक हैं जिन्हें आठ मार्च को समुद्री डाकुओं से रिहाई मिली है.

 

एक गैर सरकारी संगठन की मदद से कुल 22 बंधकों को छुड़ाया गया है.

 

मुश्किल था वक्त

 

अरुण के रिश्तेदारों के अनुसार 17 बंधक भारत से, एक पाकिस्तान से, दो बांग्लादेश और दो नाइजीरिया से थे. एक नाइजीरियाई व्यक्ति की लुटेरों ने हत्या कर दी थी.

 

ओमान से एक विमान द्वारा अरुण सोमवार को जयपुर पहुंचे.

 

उनके रिश्तेदार अश्वनी राठौड़ कहते हैं, “हमारे लिए ये सबसे बड़ा दिन था.हमने सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाए, मंदिर, देवालयों पर प्रार्थना की, तब जाकर ये दिन नसीब हुआ.”

 

लेकिन एक साल की लंबी कैद ने अरुणपाल को बीमार कर दिया है. जयपुर पहुँचते ही उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया.

 

वो अभी सदमे में हैं और उनके वजन में 20 से 25 किलो तक गिरावट आई है. डॉक्टरों का कहना है कि 12 घंटे बाद ही उनकी सेहत की सही जानकारी मिल सकेगी.

 

परिजन बताते हैं कि इस एक साल में अरुणपाल सिर्फ़ कुछ सेकंड के लिए ही फोन से घर पर बात कर पाए.

 

अरुण समुद्री जहाज पर बतौर इलेक्ट्रीशियन काम कर रहे थे.ये जहाज 28 फरवरी, 2012 को दुबई से नाइजीरिया के लिए रवाना हुआ था.लेकिन दो मार्च को रास्ते में समुद्री दस्युओं ने इसका अपहरण कर लिया और सोमालिया ले गए.

 

‘धन्यवाद, सबका धन्यवाद’

 

अरुण ने अपने परिजनों को बताया, “जब आठ मार्च को रिहा करने का फरमान सुनाया गया तो सहसा यकीन नहीं हुआ.जब चले तो भी रह-रहकर लगता था कि कहीं कोई तल्ख़ आवाज न सुनाई दे जो रुकने के लिए कह दे.“

 

भारत में साल भर अपहृतों के परिजन भी तकलीफ़ से गुज़रते रहे.अरुण के चाचा रूप सिंह के अनुसार, “कई बार डर लगता कि कहीं अनहोनी न हो जाए.ये एक साल बहुत मुश्किल से निकला है, कई बार पूरा परिवार एक साथ रोने लगता था.”

 

जल दस्युओं ने 20 नवम्बर, 2012 की सीमा रेखा तय की थी. उनका कहना था कि इस तारीख़ तक सरकार कुछ नहीं करती तो सभी बंधकों को गोली मार दी जाएगी.

 

रूप सिंह कहते हैं, “हम सबके शुक्रगुजार हैं, सरकार के भी.मगर हम सबसे ज्यादा अहसानमन्द उस गैर सरकारी संगठन के हैं जिसकी वजह से अरुण हमारे बीच में लौटा है, इस संगठन के लोग जयपुर तक उसे छोड़ने आए हैं.

 

वो आगे कहते हैं, “जब 45 महीनों से वहां और जहाज बंधक खड़े हैं तो हम क्या उम्मीद करते.लेकिन अब हम अपने इष्ट देवी-देवताओं के शुक्रगुजार हैं कि हमारा बच्चा सलामत लौट आया.”

सो. बी बी सी

Shabana Pathan
Shabana Pathanhttp://www.udaipurpost.com
Contributer & Co-Editor at UdaipurPost.com

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