कल्पना डिण्डोर,
जिला सूचना एवं जन सम्पर्क अधिकारी,
बाँसवाड़ा
भारतीय परंपरा के कुंभ मेलों की ही तरह राजस्थान के दक्षिणी छोर पर मध्यप्रदेश और गुजरात का स्पर्श करने वाले तथा तीनों राज्यों की मिश्रित लोक संस्कृति का दिग्दर्शन कराने वाले वागड़ क्षेत्र बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों के बीच एक ऐसा दस दिवसीय विराट मेला भरता है जिसे आदिवासियों का कुंभ कहा जाता है। यह मेला लगता है माही, सोम और जाखम महानदियों के जल संगम तीर्थ बेणेश्वर टापू पर।
बेणेश्वर महाधाम का नाम सुनते ही लोक आस्थाओं के सारे बिम्ब साकार हो उठते दिखते हैं। सदियों से जन-जन की जुबाँ पर अंकित बेणेश्वर लोक लहरियों का तीर्थ है जहां लोक संस्कृति, सामाजिक सौहार्द और वनवासी संस्कृति के जाने कितने रंगों और रसों का दरिया हमेशा बहता रहता है।
यह आज से नहीं सदियों से पूरे प्रवाह के साथ बह रहा है। मेल-मिलाप की संस्कृति का यह महामेला राजस्थान के दक्षिणाँचल की धडक़नों में समाया हुआ है। $खासकर आदिवासी संस्कृति की तमाम विलक्षणताओं और परंपराओं का सटीक प्रतिदर्श है यह महामेला। इसका शुभारंभ एकादशी गुरुवार को राधाकृष्ण मन्दिर पर ध्वजारोहण से होगा।
एक ओर यह मेला परंपरागत लोक संस्कृति का जीवन्त दिग्दर्शन कराता है तो दूसरी ओर जनजातीय क्षेत्रों में सम-सामयिक परिवर्तनों, रहन-सहन में बदलाव और विकास के विभिन्न आयामों को भी अच्छी तरह दर्शाता है। यह बेणेश्वर मेला ही है जो वागड़ अंचल भर की उन तमाम गतिविधियों का सम्यक प्रतिदर्श पेश करता है जो वर्ष भर लोक जीवन में संवहित होती रहती हैं।
माही मैया, सोम और जाखम सलिलाओं के पवित्र जल राशि संगम स्थल पर बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर बेणेश्वर धाम के नाम से देश-विदेश में सुविख्यात टापू जन-जन की आस्थाओं का प्रतीक है।
वनवासियों के लिए यह महातीर्थ है, जो प्रयाग, पुष्कर, गया, काशी आदि पौराणिक तीर्थों की ही तरह पवित्र माना गया है। यहां का पवित्र संगम पाप मुक्तिदायक एवं सर्वार्थसिद्घि प्रदान करने वाला है।
बेणेश्वर धाम मृतात्माओं के मुित तीर्थ होने के साथ ही देव धाम है जहां बेणेश्वर शिवालय, ब्रह्माजी,राधाकृष्ण मन्दिर, पंचमुखी गायत्री, हनुमान, वाल्मीकि सहित अनेक देव स्थानक हैं जिनमें प्रति अगाध आस्था विद्यमान है। यह मेला 18 फरवरी से आरंभ होगा और दस दिन चलेगा। माघ पूर्णिमा 22 फरवरी को मुख्य मेला भरेगा।
मेलार्थी पवित्र संगम तीर्थ में स्नान, देव-दर्शनादि के बाद मेले के बाजारों से खरीदारी करते हैं, मनोरंजन संसाधनों, प्रदर्शनियों और लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुत्फ उठाते हैं, परिवारजनों के साथ दाल-बाटी-चूरमा का प्रसाद पाते हैं। बहुत बड़ी संख्या में दिवंगत परिजनों की अस्थियों के विसर्जन, मुण्डन, तर्पण आदि का विधान भी संगम में देखने को मिलता है।
बेणेश्वर जहां आनंद का ज्वार उमड़ता है, वहीं मृतात्माओं की मुक्ति का महाधाम है, जो लगभग तीन सौ से अधिक वर्षों से अपनी पावनता का बखान कर रहा है।
वनवासी अंचल में लगने वाला यह परंपरागत मेला प्रकृति, परमात्मा और संसार के आनंद के साथ जीने की कला के दर्शन से हर किसी को अभिभूत कर देता है।
लोक लहरियों का अनूठा मेला – बेणेश्वर
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