उदयपुर। बांसवाडा शहर में गुरुवार रात को दो समुदायों के बिच उपद्रव शुरू हुआ जो शुक्रवार को खुल कर सामने आया दोनों समुदाय ने एक दुसरे की संम्पत्ति को जम कर नुकसान पहुचाया. पथराव हुए तलवारों से हमला किया गया. उपद्रवियों को पुलिस ने एक तरह से इतना मोका दे दिया कि वे बेकाबू हो गए और निरंकुश हो कर शहर को आग के हवाले करते रहे. जिन लोगों का दंगों या उपद्रवों से कोई लेना देना नहीं वे लोग इस हिंसा में अपने जीवन भर की कमाई को आग में स्वाहा होते देखते रहे .
बांसवाडा में हुए इस दंगों के जिम्मेदार किसको मना जाय ? क्या यह माना जाय कि आगामी राजस्थान विधान सभा के चुनाव के मद्देनज़र ध्रुवीकरण की राजनीति का खेल खेला जा रहा है ? हालाँकि राजस्थान के बारे इस तरह से कहना गलत होगा क्यूँ कि राजस्थान की प्रकृति ईएसआई नहीं है . तो फिर जहर फैलाने वाले कुछ गुंडों को जिम्मेदार माना जाय ? या पुलिस प्रशासन का निकम्मापन माना जाय ?
अगर बांसवाडा वासियों की माने तो वे इस दंगे का जिम्मेदार पुलिस – प्रशासन को मानती है . पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारियों के सामने बांसवाड़ा शहर तीन घंटे तक जलता पुलिस मूक दर्शक बनी रही। लोग अधिकारियों को फोन लगाते रहे लेकिन मोके पर कोई अधिकारी या पुलिस जाब्ता नहीं पंहुचा। बांसवाड़ा शहर में आगजनी और हिंसा के लिए अगर उपद्रवी जिम्मेदार है तो काफी हद तक पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी भी जिम्मेदार है। शुक्रवार सुबह ९ बजे तनाव वाले इलाकों में जब उपद्रवियों ने पुलिस का एक सिपाही भी तैनात नहीं पाया तो वे लोग अपनी शैतानियत पर उतर गए और अपने क्षेत्र में दुसरे समुदाय के मकानों वाहनों में आग लगाना शुरू कर दिया। तीन घंटे तक उपद्रवी खुल कर तांडव करते रहे। हर उपद्रवी पर हैवानियत सवार होती गयी और दुसरे समुदाय के घरों और दुकानों को आग के हवाले करते गए। यही नहीं घरों में आग लगाने के लिए उपद्रवियों ने गैस सिलेंडर को बम की तरह से इस्तमाल कीया और घरों को धमाके के साथ नुक्सान पहुचाते गए। पुलिस की नींद १२.३० बजे खुली तब तक हालात बेकाबू हो गए थे और उसके बाद पुलिस बल तैनात कर कर्फ्यू लगाया गया .
बांसवाड़ा निवासियों से उपद्रव और हिंसा के बारे में जब पूछा तो उनका गुस्सा पुलिस और प्रशासन पर फुट पड़ा। उदयपुर पोस्ट ने दोनों समुदाय के समझदार गणमान्य लोगों से हालात का जायज़ा लिया लोगों की ज़ुबानी पुलिस सारे घटना कर्म में पूरी तरह से नाकाम रही। लोगों ने बताया की पुलिस के निकम्मेपन की वजह से बात इतनी आगे बड़ी वरना गुरुवार रात को झगड़े के बाद बात समाप्त हो गयी थी। दोनों समुदाय के लोगों ने बताया की जब पुलिस प्रशासन को अच्छी तरह से पता था कि धार्मिक स्थल को लेकर दोनों समुदाय में तनाव था तो शब् ए बरात की रात को विवादित स्थल पर पुलिस बल तैनात क्यों नहीं किया गया। यही नहीं जब वहां पर विवाद हो गया और रात को धरा १४४ लगा दी गयी उसके बाद सुबह तड़के विवादित स्थल या तनाव ग्रस्त इलाके में एक भी पुलिस कर्मी क्यों नहीं तैनात था। यही वजह रही कि सुबह जब उपद्रवियों ने देखा कि कोई पुलिस कर्मी नहीं है तो उन्होंने जम कर आगजनी और तोड़ फोड़ की एक दुसरे के ऊपर पत्थर फेंके। यही नहीं खांटवडा और गोरख इमली का विवाद पुरे शहर में फ़ैल गया और शहर भर की दुकानों मकानों और वाहनों को उपद्रवी आग के हवाले करते रहे। सुबह ९ बजे से शुरू हुआ उपद्रव दिन को कर्फ्यू लगने तक चलता रहा। जिला कलेक्टर और एसपी आगजनी होते हुए देखते रहे थे लेकिन उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की। लोगों के पुलिस प्रशासन के प्रति गुस्से की वजह से शाम को पुलिस मार्च पर भी पथराव किया गया। लोगों का कहना था कि उपद्रव बढ़ता गया कई क्षेत्रों में जाब्ता भी बढ़ा दिया। लेकिन ढाई घंटे तक पुलिस मूकदर्शक बनी रही। मौके पर तैनात एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि हमारे हाथ आदेश नहीं आने की वजह से बंधे हुए थे। इस कारण भी कार्रवाई नहीं कर पाए। बाद में देहात के पुलिस थानों से जाब्ता गया। इसके अलावा आईजी के निर्देश तक प्रतापगढ़, डूंगरपुर और उदयपुर से बुलाकर पुलिस बल तैनात कर दिया गया।
बैठकों का दौर शुरू शांति प्रयास जारी :
शहरमें हुए उपद्रव और कर्फ्यू लगाने के बाद दोनों पक्षों के लोगों की बैठक हुई। कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट भगवतीप्रसाद ने कहा कि किसी धर्म के लोगों के घर या वाहन जले हैं, लेकिन ये नुकसान इंसानियत का हुआ है। जिन बच्चों का कॅरिअर बनना था, वे अब किसी के उकसावे पर आकर कानूनी उलझनों में उलझकर अपनी जिंदगी खराब करेेंगे। शांति और भाईचारा इस शहर की पहली जरूरत है। आईजी आनंद श्रीवास्तव ने कहा कि कलेक्टर-जिला मजिस्ट्रेट के आदेश पर लागू कर्फ्यू प्रभावी ढंग से लागू होगा। इस दौरान कोई घर से बाहर सड़क पर दिखा तो वो सीधा हवालात में होगा। यदि कोई रोगी है या परीक्षा देने वाला विद्यार्थी है और बाहर से शहर में आने वाला व्यक्ति है, तो पुलिस उसे मदद भी करेगी। हमारा पहला लक्ष्
शहरकाजी हाजी वहीद अली ने कहा कि लोगों की यही शिकायत रही कि एक घटना हुई और सूचना देने पर सहायता नहीं मिली और अन्य घटनाएं घटती गईं। अंजुमन के सदर सोहराब खान और पूर्व उपसभापति अमजद हुसैन, गुलाम मोहम्मद खोखर, अब्दुल समद, अब्दुल वहीद पिंटू ने कहा कि हमें प्रशासन का समय पर सहयोग नहीं मिला, जिस पर मंत्री ने कहा कि जो हालात थे, उसके अनुरूप ठीक काम किया है।