विद्या भवन में दो दिवसीय $िजला स्तरीय कार्यशाला शुरू
हर ग्राम पंचायत को मिलेंगे २ एल.डी.सी.
शीघ्र आयेंगे घुमन्तु ‘बैंकिंग कॉरस्पॉण्डेण्ट‘
‘आधार‘ के जरिए जुलाई से होगा भुगतान
उदयपुर, अशिक्षा, जानकारियों का अभाव और ग्रामवासियों तक योजनाओं की पहुँच की सीमाओं के बीच पंचायती राज के सशक्तीकरण का माध्यम वॉर्ड सभायें हो सकती हैं। सावचेत जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र के लोगों को अनेक योजनाओं के माध्यम से लाभान्वित कर सकते हैं।
यह विचार विद्या भवन स्थानीय स्वशासन एवं उत्तरदायी नागरिकता संस्थान की ओर से गुरूवार (२३ मई २०१३) को ’पंचायती राज सशक्तीकरण‘ विषयक दो दिवसीय कार्यशाला के पहले दिन उभर कर आए। यहाँ विद्या भवन कृषि विज्ञान केन्द्र में आयोजित कार्यशाला में संस्थान ने क्षमता सम्वद्र्घन कार्यक्रम के साथ ही २४ ग्राम पंचायतों में ५४ वॉर्ड सभाओं के जरिए राजनैतिक प्रक्रिया में जड-मूल स्तर पर ग्रामवासियों की भागीदारी के अपने प्रयोग को भी प्रस्तुत किया।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि जला परिषद उदयपुर के उप-प्रमुख श्यामलाल चौधरी ने कहा कि पंचायती राज ने अधिकार दिया है और जनता ने अमूल्य वोट, जिसका आदर करना जनप्रतिनिधियों का कर्तव्य है। नौकरशाही का दोष देने भर से काम नहीं होगा, अधिकार जनप्रतिनिधियों के पास है तो जनहित में उसका उपयोग भी करना होगा। शिक्षा और जानकारियों के अभाव में अधिकतर सरपंचों को भी मालूम नहीं कि वित्तीय स्वीकृति जारी होते ही उनकी पंचायत के खाते में ६० फीसदी राशि हस्तान्तरित हो जाती है। पंचायती राज में ‘बिचौलिये‘ की भूमिका ख्$ात्म हो गई है और ग्राम पंचायतों को पंचायत समिति या $िजला परिषद के चक्कर लगाने की $जरूरत नहीं है। अध्यक्षता करते हुए विद्या भवन सोसायटी के अध्यक्ष रिया$ज तहसीन ने बताया कि आ$जादी के आन्दोलन के दौरान १९३१ में $िजम्मेदार नागरिक तैयार करने के लक्ष्य को लेकर विद्या भवन की स्थापना हुई थी और १९९७ में $िजम्मेदार जनप्रतिनिधि तैयार करने के लिए इस संस्थान को स्थापित किया गया। ब$डी राशियों के बजट पूरे हो रहे हैं, लेकिन मानव विकास सूचकाँक में अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा है। इसके लिए जनप्रतिनिधियों को सजग होकर शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे विषयों पर काम करना होगा। वॉर्ड के स्तर पर छोटी-छोटी पहल से पूरी ग्राम पंचायत और इस प्रकार $िजले का सुधार किया जा सकता है। शासन में संख्या-बल की बजाय समन्वय के आधार पर निर्णयों पर अमल किया जाए तो समग्र विकास सम्भव है।
संस्थान के प्रो. वेददान सुधीर ने पंचायती राज के सरोकारों का उल्लेख किया, जबकि अकादमिक सलाहकार के.सी. मालू ने पंचायती राज संस्थाओं के सुचारू संचालन में बाधाओं और उन्हें दूर करने के प्रयासों का उल्लेख किया।
दूसरे सत्र में पंचायती राज को हस्तान्तरित ५ विभागों के सन्दर्भ में पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका और संस्थान के प्रयासों पर प्रतापमल देवपुरा ने प्रस्तुति दी। मुख्य वक्ता ब$डगाँव पंचायत समिति के विकास अधिकारी एल.सी. तोमर ने विभागों का उदाहरण देते हुए बताया कि योजनाओं पर अमल सरपंच एवं पंचायत की सहमति से होता है। लोक सेवक जनप्रतिनिधि के अधीन है। पूर्व विदेष सचिव प्रो. जगत मेहता ने कहा कि गाँव की समस्या का समाधान गाँव में ही करना होगा। अध्यक्षता करते हुए झा$डोल पंचायत समिति के प्रधान कन्हैयालाल खरा$डी ने उदाहरणों से स्पष्ट किया कि पंचायत के संचालन व योजनाओं के अमल के काम झग$डे की बजाए अच्छे व्यवहार से बेहतर हो सकते हैं।
कार्यशाला के दौरान खुली चर्चा में वर$डा सरपंच तुलसीराम सुथार, पदरा$डा सरपंच नरपतसिंह, वास उपसरपंच शान्तिलाल सुथार, अति.बी.ई.ओ. सुरेन्द्रसिंह सोलंकी व विनोद सनाढ्य, पूर्व बी.डी.ओ. रमेश जैन, सेवा मन्दिर के माधव टेलर, आस्था के हरिओम सोनी व भवानी सिंह सहित जनप्रतिनिधियों, विभागीय अधिकारियों व स्वयंसेवी संगठनों के सदस्यों ने विचार रखे।