डॉ. अनिल मेहता
शहर के एक नामी इंजीनियरिंग कॉलेज के विद्यार्थी ने निदेशक पर चाकू से हमला किया और फिर स्वयं ने आत्महत्या कर ली। यह घटना झकझोर देने वाली है। निदेशक एक उच्च प्रशिक्षित, सहज प्रवृति के व्यक्ति है। उनको चाकू लगना दुख देता है। वंही एक खूबसूरत युवा का मर जाना उसके माता पिता, परिवार के लिए बहुत पीड़ादायी और आपदा पूर्ण है।यह दुर्घटना वर्तमान समाज की भयावह स्थिति का भी चित्रण करती है। सब तरफ संवेदनाएं घटी है और महत्वकांक्षाएं, गुस्सा, निराशा बढ़ी है। परिवारों में स्नेह नही है, अभिभावक स्वयं अपने कामो में उलझे हैं, वे अपने बच्चो के सामने कोई आदर्श उपस्थित नही कर रहे। अभिभावको में नैतिक साहस घट रहा है । वे स्वयं मोबाइल, सोशल मीडिया पर इतने अस्त व्यस्त है कि अपने बच्चों को यह नही समझा पाते हैं कि मोबाइल,इंटरनेट का सही उपयोग क्या है। आप इन युवा बच्चो के मोबाइल में झांक नही सकते क्यो कि वे इसे अपनी निजता का हनन मानते है। इनके मोबाइल में अधिकांश सामग्री वो है जो घोर अश्लील है और स्वस्थ मस्तिक के विकास के लिए बाधा कारी है। फिर, अभिभावक इन बच्चों की जिद के कारण इतने मजबूर है कि वे उन्हें स्पोर्ट्स बाइक दिलाते है और स्पीड कंट्रोल , हेलमेट के उपयोग के लिए कुछ नही कह पाते। बच्चे में निराशा , गुस्सा और हिंसक प्रवृति है तो परिवार में ये समझ नही कि वो उसका मनोवैज्ञानिक समाधान चुने। ऐसे में अपने बच्चों की समस्याओं का समाधान स्कूल , कॉलेज में ढूंढते है। स्कूल , कॉलेज में अध्यापक, प्रोफेसर भी इसी समाज से आते है, उन्हें स्वयं यह समझ नही कि युवा वर्ग के सामने क्या आदर्श प्रस्तुत करना है। उनमे से कई खुले आम शराब पीते, धूम्रपान करते, गाली गलौच करते मिल जाएंगे। कई लोग दिन भर अश्लील चुटकलों, फ़ोटो , वीडियो क्लिप को भेजते, खोलते मिल जाएंगे।संस्थाओ में इस बात पर चर्चा नही होती कि एक युवा लड़के, लड़की की भावनात्मक, शारीरिक समस्याओ,परिवर्तनो को कैसे देखा जाए, कैसे उन्हें रचनात्मकता प्रदान की जाए।
प्रोफेशनल संस्थानों खास कर इंजीनियरिंग संस्थानों में स्थिति ज्यादा गंभीर है । कई दुकान नुमा कॉलेज है। जो सीटे भर कमाई के लिए बिहार, पूर्वोत्तर भारत , कश्मीर, गुजरात, और मेवाड़ वागड़ के ग्रामीण क्षेत्रो से विद्यार्थियों को, उनके अभिभावकों को बरगलाकर प्रवेश देते है। वे अनैतिक वादे करते है कि बिना पढ़े फर्स्ट डिवीजन मिल जाएगा। वे फर्जी अस्तित्वहीन कंपनियों के नाम बताकर वादा करते है कि विद्यार्थी को ऊंची तनख्वाह की नॉकरी की गारंटी है। ऐसे विद्यार्थी फिर उदयपुर में दिन रात धमा चौकड़ी ही मनाते है। शहर में कई हुक्का कैफे है जंहा शराब से लेकर ड्रग्स मिलती है। और लड़के लड़कियो को एक दो घंटे के एकांत की सुविधा उपलब्ध है।
पर, परिवार इस जूठे मुगालते में रहता है कि बच्चा बड़ी पढ़ाई कर रहा है और बड़ी नॉकरी प्राप्त करने वाला है।फिर जब तीन साल , चार साल बाद विधार्थी को लगता है कि उसने कुछ नही सीखा, वह कुछ नही कर सकता , तब वह गहरी निराशा हताशा में जाता है। वह शार्ट कट ढूंढता है कि कैसे पैसा कमाया जाए।
वक्त आ गया है कि राजस्थान में तकनीकी संस्थाओं की वास्तविक क्षमता का आंकलन करवाया जाए, वंहा किस स्तर की शिक्षण, सलाह, मार्गदर्शन की सुविधाएं है उन्हें जांचा जाए। फर्जीवाड़ा कर रही संस्थाओ पर प्रभावी रोक लगाई जाए। अभिभावकों के प्रशिक्षण की भी समाज मे व्यवस्था बने। संस्थानों में निरंतर इस बात का विमर्श चले कि तकनीकी शिक्षा का उद्देश्य क्या है। तकनीकी शिक्षा के साथ साथ जीवन की शिक्षा की एक अनौपचारिक किंतु प्रभावी व्यवस्था बने। संस्थान भी नकल करवाने, जुठ बोलने, लूटने के इरादे से कार्य नही करे तथा अभिभावक भी संस्थाओ पर बिना सीखे अच्छे रिजल्ट रिपोर्ट कार्ड का दबाव नही बनाये। संस्थान और अभिभावक एक दूसरे के पूरक बन , सहयोग कर, निरंतर संवाद बना कर विद्यार्थी की रचनात्मकता का पोषण करे।