गाजियाबाद में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने राजेश तलवार और नूपुर तलवार को अपनी बेटी आरुषि की हत्या का दोषी पाया है.
सीबीआई की एक विशेष अदालत ने सोमवार को कहा कि दोनों अभियुक्त धारा 302 और 201 के तहत दोषी हैं. इसके अलावा राजेश तलवार को फर्जी एफआईआर दर्ज कराने के लिए धारा 203 के तहत भी दोषी पाया गया.
अदालत अब मंगलवार को दोषियों को सजा सुनाएगी. फिलहाल तलवार दंपति को हिरासत में लेकर डासना डेल भेज दिया गया है.
फैसले के तुरंत बाद राजेश और नूपुर तलवार ने एक बयान जारी कर कहा, “हम फैसले से काफी निराश, दुखी और आहत महसूस कर रहे हैं.”
उन्होंने बयान में कहा, “हम अभी हारे नहीं हैं और न्याय के लिए लड़ाई जारी रहेगी.”
तलवार के वकील सत्यकेतु सिंह ने कहा, “कोई सबूत नहीं है. फैसला निराशाजनक है. यह गलत है.”
दूसरी ओर सीबीआई के वकील आर के सैनी का आरुषि मामले पर बताया, “अदालत ने कहा कि परिस्थितियों के मुताबिक इस अपराध को अंजाम देने के लिए वहां कोई दूसरा मौजूद नहीं था.”
सनसनीख़ेज हत्या
करीब साढ़े पांच साल पहले हुई आरुषि और उनके घरेलू नौकर हेमराज की सनसनीखेज हत्या के बाद सीबीआई की एक विशेष अदालत ने सोमवार को फैसला सुनाया.
इस दौरान आरुषि मामले में कई नाटकीय मोड़ और बदलाव आए.
विशेष जज एस लाल ने करीब 15 महीने तक चली सुनवाई के बाद इस मामले में फैसला सुनाया.
तलवार दंपति पर अपनी 14 वर्षीया बेटी और नौकर की हत्या के साथ ही सबूतों से छेड़छाड़ करने का भी आरोप था और अभी तक वे जमानत पर थे.
आरुषि और हेमराज की हत्या 15-16 मई 2008 को की गई थी.
इसके बाद उत्तर प्रदेश पुलिस और सीबीआई की जांच में कई नाटकीय मोड़ देखने को मिले.
सुरक्षा के भारी इंतजाम
इससे पहले सुबह सीबीआई कोर्ट के आस-पास सुरक्षा बढ़ा दी गई थी. गाजियाबाद के पुलिस अधीक्षक मुनिराज ने बताया कि अदालत के बाहर तीन डीएसपी, तीन स्टेशन ऑफिसर, 90 सिपाही और पीएसी की एक टुकड़ी को तैनात किया गया था.
इस हत्याकांड को मीडिया में काफी अधिक कवरेज मिली.
उत्तर प्रदेश पुलिस से शुरुआत में संदेह जताया कि हेमराज ने आरुषि की हत्या की और वो हत्या करके भाग गया लेकिन अगले ही दिन 16 मई को तलवार के फ्लैट की छत पर हेमराज का शव मिला.
इसके बाद एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत शक की सुई राजेश तलवार पर आ गई और उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस ने हिरासत में ले लिया.
पिता पर शक
पुलिस ने आरोप लगाया कि आरुषि की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि उसके पिता ने ही की है.
मीडिया में इस केस को लेकर बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुई उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इस मामले को सीबीआई के सौंप दिया.
शुरुआती जांच में सीबीआई किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी. इसके बाद सीबीआई के संयुक्त निदेशक जावेद अहमद की अगुवाई में एक नई टीम का गठन किया गया.
इसके अलावा एसपी नीलाभ किशोर को इस केस से जोड़ा गया और उन्हें अपनी जांच टीम चुनने की पूरी आजादी दी गई.
करीब एक साल की जांच के बाद इस टीम ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य राजेश तलवार की भूमिका की ओर संकेत करते हैं.
क्लोजर रिपोर्ट हुई खारिज
इसके बाद टीम ने 29 दिसंबर 2010 को अपर्याप्त सबूतों का हवाला देते हुए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की लेकिन जिला न्यायाधीश प्रीति सिंह ने उसे खारिज कर दिया.
अदालत ने कहा, “ऐसे मामले में जहां घटना घर के भीतर हुई हो, प्रत्यक्ष सबूतों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है.”
इसके बाद तलवार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील की लेकिन उन्हें राहत नहीं मिल सकी.
इसके बाद इस सनसनीखेज हत्याकांड की सुनवाई एक बार फिर 11 जून 2012 को शुरू हुई.
सीबीआई ने दलील में कहा कि जिस रात ये हत्या हुई उस दिन इस बात के कोई भी सबूत नहीं हैं कि बाहर से कोई आया और साक्ष्य ये भी बताते हैं कि घर में चार लोग मौजूद थे- आरुषि, हेमराज, राजेश और नूपुर.
सीबीआई ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य इशारा करते हैं कि इन हत्याओं में राजेश और नूपूर शामिल थे.
सैनी ने अदालत से कहा कि तलवार ने अदालत की कार्रवाई को गुमराह करने की कोशिश की.