बड़े अच्छे लगते है ये “पक्ष” “विपक्ष” और “परिषद्” ( पोस्ट का पंच )

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उदयपुर , बात करते हे हमारे नगर परिषद् में जनता द्वारा चुने हुए जन प्रतिनिधियों की यानी हमारे वार्ड के पार्षद कि ।

बड़े कमाल के हे ये जन प्रतिनिधि हर वार्ड से जनता ने अपना पूरा दिन खराब करके महीनो इनके चुनावी तमाशे को झेल के इन्हें चुन कर भेजा था कि चलो राज्य और केंद्र में बेठी सरकार कुछ करे न करे ये तो हमारे अपने है मोहल्ले के हे कुछ करेगे कुछ हमारा ख़याल करेगे, बड़ी उम्मीद थी इनसे और देखो जनता कि उम्मीद ३ साल के बाद भी बरकरार है ।

ये बात अलग हे कि इनसे वार्ड कि सफाई भी ठीक से नहीं करायी जाती वार्ड कि भलाई तो बहुत दूर कि बात है । अरे बॉस पीछे दिनों राशन कार्ड के फॉर्म पे साइन और सिल लगाने के लिए इन्होने बेचारी जनता के जूते घीस दिए फिर भी जनता कि उम्मीद बरकरार है । कि ये कुछ तो कमाल करेगे ।

अच्छा ऐसा नहीं हे कि ये नहीं करते हे ये बेचारे काम के बोझ के मारे बोहत कुछ करते हे लेकिन इनके करने का तरीका बस अलग हे अपने यार दोस्तों रिश्तेदारों के लिए ये लोग बोहत कुछ करते हे अब सारी जनता तो तो इनकी रिश्ते दार हो नहीं सकती इसलिए ये भी क्या करे चलो खैर जाने दो बात निकले गी तो ख़तम ही नहीं होगी हम तो एक सिंपल सी बात कहने आये है , आज कल ये लोग अतिक्रमण को लेकर बड़े गुस्से में हे ” हलाकि गुस्सा दिखावे का है ” लेकिन है तो सही तो ये अतिक्रमण और अवैध निर्माण को लेकर बड़े गुस्से में हे हर मीटिंग में सभापति जी ( अरे अपनी नगर परिषद् कि सभापति जिनकी बात हम आगे फिर कभी करेगे ) को घेर लेते है कभी कमिश्नर को घेर लेते है । जोर जोर से चिल्ला चिल्ला कर कहते है “आपने क्या किया अभी तक” “कुछ कर क्यों नहीं रहे आप कि मंशा ही नहीं है अति क्रमण हटाने कि” । सभापति और कमिश्नर कभी अगर अति क्रमण या अवैध निर्माण हटाने चले भी गए या नगर परिषद् का कोई दस्ता अतिक्रमण हटाने चला गया अथवा अवैध निर्माण रोकने चला गया तो ये ही शहर के जिम्मेदार जन प्रतिनिधि उस अवैध निर्माण और अतिक्रमण के आगे सन्नी देओल कि तरह ढाल बन के खड़े हो जाते हे और अपने विरोधी के १० अतिक्रमण गिना देते है और फिल्म दीवार के अमिताभ बच्चन कि तरह चिल्ला उठाते है भाई पहले वहां जाओ और वहां तोड़ कर आओ फिर हमारे एरिया में आना और कहना, बेचारे परिषद् कर्म चारी अपना मुह लेके वापस आजाते है ।

मेरा एक सवाल है उदयपुर कि जनता से के क्या आज के हालात में एक आम आदमी किसी के बिना किसी सपोर्ट के या बिना किसी नेता या अधिकारी कि मेलजोल वाली रिश्ते दारी के बिना कही भी कोई अतिक्रमण या अवैध निर्माण कर सकता हे ,………नहीं …. बॉस एक ईंट भी कही गलत नहीं रख सकता फिर यहाँ तो इन्ही कि मिली भगत और लेन देन कि रिश्तेदारी के चलते पूरी बिल्डिंग खड़ी हो जाती है और चिल्लाने वाले लोग चिल्लाते रह जाते है ।

गरीब आदमी एक रूम बनाने कि परमिशन लेने के लिए सालों खप जाता है और एक मल्टिपल कोम्प्लेक्स कि परमिशन या किसी रसूख दार के मकान कि परमिशन यहाँ दीन ईमान समझ कर पहली फुर्सत में दे दी जाती है ,……. चलो आज के लिए इतना ही फिर मिलेगे एक नए पंच के साथ जय हिंद

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