रिपोर्ट – डा. बाषोबी भटनागर,
व्याख्याता, राजकीय महाविधालय,खैरवाडा
उदयपुर , बचपन से ही प्रकृति प्रेमी रही हूँ, चाहे खेत में (घर के आसपास) सब्जी बोनी हो या नदी, समुद्र, जंगल का सानिध्य हो हमेषा इनके साथ होने पर, अपने को बड़ा गोरवान्वित महसूस करती थी।
ईष्वर ने जीवन साथी भी दिया तो वह भी वन अधिकारी व वन्य प्रेमी। जंगलों के सानिध्य में रहते हुए पता ही नहीं लगा कैसे जीवन के 30 वर्ष गुजर गए। छुट्टी का दिन था 19 तारीख रविवार, 2012, कार्यक्रम बना अचानक जाखम बांध पर जाने का, आधे घण्टे में तैयारी कर निकल पड़े परिवार के साथ। जब धरियावद के सीतामाता अभयारण्य के पास पहुचे तो लगा क्या इससे खूबसूरत होगी ‘स्वर्ग’ की कल्पना? घने सागवान के जंगल कहीं कल-कल बहता पानी, कहीं पेड़ों से ढकी पहाड़ियॉं तो कहीं दूर-दूर तक हरे भरे खेत, जहां देखें वहीं हरियाली। धरियावद के नजदीक पहुँचते पहुचते बडी-बडी पत्तियों वाले दोनों ओर सागवान के घने जंगल ने मन मोह लिया। सागवान के वृक्षों पर लगे सफेद रंग के फूलों के गुच्छे उनकी शोभा और बढ़ा रहे थे। अंत में पहॅचे जाखम बांध के पास बने ‘वन विश्रान्ति गृह’ पर, पहाड़ी पर बना हुआ है, काफी सीढ़ियॉं चढ़कर जब वहां पहुंचे तो देखा चारों ओर पानी ही पानी और उसके चारों ओर पेड़ों से लदी पहाडियॉं। शाम का समय हो गया था चिड़ियॉंऐ व छोटे-छोट जीव जन्तुओं की आवाज, वह सन्नाटा और आकाष का केसरिया रंग इन सबने वातारण को इतना सुन्दर बना दिया था जिसको केवल अनुभव ही किया जा सकता है। बिजली नहीं होने के कारण थोड़ी देर में चारों ओर घनघोर अंधेरा वह चुप्पी मन को इतनी शान्ति पहॅुंचा रही थी कि लग रहा था हमारी बाते उस खूबसूरती को ‘कम’ कर रही है। छत पर बिस्तर लगाकर सब एक साथ सोए, गीली गीली रात लेकिन बरसे नही।
सुबह आंख खुली तो बादल से कहीं से ढका कहीं से दिखता दृष्य बहुत सुन्दर लग रहा था। फिर रवाना हुए जाखम बांध की ओर ।ऊफ।। इतना सुन्दर दृष्य ऊपर से गिरता मिट्टी का पानी ऐसा लग रहा था जैसे ‘चॉकलेट का दूध’ बह रहा हो। छोटे से झरने में बच्चे नहाए और बोले ऐसा लग रहा है मानों इस पानी से शरीर में अलग सी एक खुष्बू ताजगी भर गयी है। बहुत देर वहां वे नहाए और पुनः रवाना हुए उदयपुर की ओर, इतना भारी मन हो रहा था उस जगह को ‘अलविदा’ इस ‘क्षण’ में कहते हुए।
ऐसे स्थान को वन्य प्रेमियों व प्रकृति प्रेमियों की दृष्टि से सरकार की ओर (पर्यटन) ट्यूरिज्म को बढ़ावा मिलना चाहिए पर हां यह ध्यान में रखते हुए कि उसकी शुद्धता , सुन्दरता को बनाए रखने में हम सभी मदद करेंगे, अक्सर देखा जाता हैं कि जैसे ही कोई स्थान विकसित होता है, (पर्यटन) ट्यूरिज्म की दृष्टि से फिर वह अपनी प्राकृतिक सौन्दर्य से हाथ धो बैठता है और हम सब उसे पॉलिथिनल गंदगी से पूर्णतया नष्ट कर देते हैं।
आपको मौका मिले तो उस स्थान पर अवष्य जाऐं व बच्चों को जरूर दिखाऐं ताकि वे ‘प्रकृति’ के सौन्दर्य को रसास्वादन कर सके व उसके महत्व को समझे व देखें कि राजस्थान जिसके लिए लोग कहते है ‘सूखा’ क्षेत्र है, कैसा हरा भरा, पानी से भरा है।