भूमाफिया ने करोड़ों डकारे – भू-कारोबारियों की हो गई मौज ( video )

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मनु राव 

20160222000448

उदयपुर। बोहरा समुदाय के धर्मगुरु के नाम पर भुवाणा क्षेत्र के कथित बुरहानीनगर में करोड़ों की जमीन का घोटाला सामने आया है। करीब 30 साल पहले 36 बीघा जमीन पर समुदाय के लोगों से पूंजी निवेश करवाई गई। बाद में उक्त जमीनों की कीमतों में बढ़ोतरी हुई तो उन्हें डरा-धमकाकर वहां से हटा दिया गया और औने-पौने दामों पर उक्त जमीन को भू-कारोबारियों ने हथिया लिया। इसके साथ ही प्लान को अब तक तीन बार बदला गया है, जिसमें सुविधा क्षेत्र की करीब 70 हजार स्क्वायर फीट जमीन को हथियाने के साथ नक्शे में हेर-फेर करके करीब एक लाख स्क्वायर फीट जमीन 80 फीट रोड पर निकाली गई, जो आज करोड़ों रुपए की है। इस भूमि घोटाला में यूआईटी के नाम पर दर्ज आराजी नंबर 3379 की सरकारी जमीन भी हजम कर ली गई।

यह सारा खेल कृषि भूमि पर हुआ और कोई नक्शा भी अब तक पास नहीं करवाया गया है। पिछले दिनों पुलिस में हुई शिकायत के बाद इस मामले से पर्दा उठता जा रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग 76 से डेढ़ किलोमीटर अंदर की तरफ 36 बीघा से ज्यादा जमीन पर भू-कारोबारियों ने एक बस्ती बसाने की योजना सन् 1986 में बनाई थी। इसमें एक ऐसे समाज का चयन किया गया, जो ज्यादातर बाहर रहने के साथ पूरी तरह संभ्रात है। इसमें पहले चार किरदार थे, जिनमें भूपेंद्र बाबेल, दिलीप सुराणा, विनय भाणावत और इंद्रसिंह मेहता के नाम शामिल थे लेकिन अब केवल भूपेन्द्र बाबेल व दिलीप सुराणा ही इसके प्लानर है।

इसमें इन्द्र जिनमें वर्तमान में  सभी ने बुरहानीनगर नाम से इस जमीन पर प्लानिंग काटी और समुदाय के लोगों से पंूजी निवेश करवाई। इस प्लान में मस्जिद, जमातखाना, मुसाफिरखाना, स्कूल, अस्पताल, बच्चा के गार्डन के साथ सुविधा क्षेत्र छोड़ा गया था, जो करीब 70,000 स्क्वायर फीट था, लेकिन इन मूलभूत सुविधाओं की जगह को भी ये जमीनखोर हड़प गए। हालांकि कोई सरकारी स्वीकृति बुरहानीनगर को अभी तक नहीं मिली, लेकिन यह जमीनखोर आखिरकार बोहरा समाज के सीधे-साधे लोगों को अपने जाल में फांसने में कामयाब हो गए।

आराजी नंबर 3609 से 3621 तक की करीब ३६ बीघा जमीन में  आठ लाख 42 हजार 800 स्क्वायर फीट कृषि भूमि थी, जहां सन् 1986 में बोहरा समाज के परिवारों को पांच रुपए स्क्वायर फीट में प्लॉट काटकर बेच दिए गए। प्लॉट बेचने के बाद बुरहानीनगर के बंटवारे तैयार करके सभी से हाथों-हाथ हस्ताक्षर करवाए गए। इस प्रकार प्लानर के पास करीब 25 प्रतिशत जमीन आ गई। पुराने नक्शे में 80 प्रतिशत कृषि भूमि पर प्लानिंग काटी गई, बाकी जमीन रोड नेटवर्क के लिए छोड़ी गई थी। इसमें करीब पांच लाख स्क्वायर फीट जमीन पर भूखंड काटे जाने चाहिए थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

बुरहानी नगर के प्लानर्स दिलीप सुराणा और भूपेंद्र बाबेल ने 20 साल बाद यानी कि 2006 में नगर विकास प्रन्यास में एक नक्शा पेश किया, जिसे बाद में अनुमोदन के लिए भेजा, लेकिन यूआईटी से अनुमोदित हुए बिना ही इस कृषि भूमि पर अन्य लोगों के कब्जे हो गए, तो इन्होंने ने षडयंत्र के तहत बाहुबलियों का सहारा लेकर कब्जे ध्वस्त कराए और एक नया नक्शा प्लान किया, जिसमें वो सारी मूलभूत सुविधाएं हटा दी गई, जो 1986 के नक्शे में प्लानिंग के साथ दी गई थी। इन सुविधाओं में मस्जिद, मुसाफिरखाना, जमातखाना, स्कूल, गार्डन, हॉस्पीटल आदि शामिल थे। इतना ही नहीं इन बाहुबलियों ने खातेदारों को डरा-धमकाकर जमीन अपने आदमियों के नाम करवा दी। मूल खातेदारों से कौडिय़ों के दाम खरीदकर उन्हें यहां से बेदखल करते हुए कहा कि यह भूमि विवादित है और यहां माफियाओं के कब्जे है। इतना ही नहीं 2006 में नए प्लान के तहत नया बंटवारा भी तैयार किया, जिसमें यहां पर सबसे आश्चर्य वाली बात यह हुई कि आठ लाख 42 हजार 800 स्क्वायर फीट कृषि भूमि में से मात्र 6, 71000 स्क्वायर फीट कृषि भूमि का ही बंटवारा तैयार किया गया। इस प्रकार प्लानर ने 1, 71000 स्क्वायर फीट जमीन कागजों से ही गायब कर दी। कोई भी खातेदार इन दबंगों के आगे विरोध नहीं कर पाया, बस डरकर हस्ताक्षर करता गया।

सभी खातेदारों को प्लानिंग में मिलने वाली जमीन को डकारने वाले इन भू कारोबारियों ने वैसे तो 2006 के नक्शे के अनुसार 27 प्रतिशत जमीन काटने की बात कही थी, जो किसी भी तरह से गले नही उतरती। कायदे से १५ फीसदी कटौती होनी थी, जो आमने-सामने के दोनों खातेदारों से आधा-आधा लिया जाना चाहिए था, लेकिन इन जमीनखोरो ने 27 प्रतिशत के हिसाब से दोनों खातेदारों की मिलाकर करीब 54 प्रतिशत जमीन मूल भूखंड में से ले ली। अब जब 25 की जगह 40 फीट रोड नक्शे के अनुसार निकालनी है, तो दोनो तरफ  से 15 फीट ही तो लिया जाना चाहिए था, लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ।

सिर्फ  इसी खेल में प्लानर्स ने करीब एक लाख स्क्वॉयर फीट जमीन और गायब कर दी। इस बार भी अधिकतर खातेदार बाहुबलियों के आगे विवश होकर हस्ताक्षर करते गए एवं मौके पर 27 प्रतिशत कम जमीन लेकर काबिज हुए। इस प्रकार करीब 90 प्रतिशत लोगों के हस्ताक्षर होने के बाद दोनो प्लानर्स अपने असली रंग में आ गए और नया नक्शा बनाया, जिसमें इन्होंने एक पूरा ब्लॉक तैयार किया, जो पिछले दोनों नक्शों में कहीं नही दिखाई दिया। 80 फीट रोड के पास निकाले गए इस बड़े ब्लॉक में अभी करीब तीन से चार हजार रुपए स्क्वायर फीट की दर से भूखंड दिए जा रहे हैं, जो इस योजना में शामिल खातेदारों की सुविधा क्षेत्र की जमीन है। हालांकि सुविधा क्षेत्र की जमीन का कोई और उपयोग किया ही नहीं जा सकता, ये सरकारी कायदा है। किंतु ये जमीन कारोबारी तो यहां पर स्वयं सरकार बनकर काम कर रहे हैं।

इस संबंध में जब दिलीप सुराणा और भूपेंद्र बाबेल से जवाब मांगा गया, तो उनका कहना है कि वर्ष 1986 में बोहरा समुदाय के लिए बुरहानीनगर के नाम से प्लानिंग काटी गई थी, परंतु ज्यादा बोहरा समाज के लोग नहीं होने के बाद यह प्लानिंग कैंसल कर दी गई थी। प्लानिंग के अनुसार 70 हजार स्क्वायर फीट पर स्कूल, मुसाफिर खाना व अन्य मूलभूत सुविधाओं का निर्माण करवाया जाना था, परंतु जब प्लानिंग ही निरस्त हो गई, तो मूलभूत सुविधाओं का कोई सवाल ही नहीं उठता। उनका कहना है कि इस भूमि पर सरकारी स्कूल बना हुआ है। इधर, अंकों के हिसाब से हुए घपले पर एक लाख 71 हजार स्क्वायर फीट के 13 आराजी को लेकर पूछे सवाल पर सुराणा व बाबेल कोई जवाब नहीं दे पाए। उन्होंने कहा कि हम दस्तावेज देखकर इस संबंध में दो दिन में जवाब दे देंगे। इस पूरे मामले में सभी खातेदारों को एक साथ बैठाकर वार्ता कर हल निकाला जाएगा।

https://www.youtube.com/watch?v=QwhlyPbznww&feature=youtu.be

 

॥मैंने टीवी पर बुरहानीनगर प्लानिंग के संबंध में समाचार देखा, जो स्कूल के लिए जमीन दान करने की बात की जा रही है, उसमें किसी तरह की सत्यता नहीं है, क्योंकि स्कूल जिस आराजी पर स्थित है, वह शोभागपुरा पंचायत की है और बुरहानीनगर की जिस जमीन पर ये काबिज है, वो भुवाणा पंचायत में आती है, इसलिए स्कूल की जमीन से उनका कोई लेना-देना नहीं है।

– कविता जोशी, शोभागपुरा सरपंच

॥ आराजी नंबर 3610 के अंदर मैंने पिछले एक साल में करीब 26500 वर्गफीट जमीन अलग-अलग बोहरा खोतदारों से खरीदी थी। उसमें से १८ हजार वर्ग फीट जमीन पर कच्ची चारदीवारी बनी थी, जिसे ध्वस्त करके वहां पर कुछ लोगों ने पक्की चारदीवारी बनवा दी। वहां जाते हैं, तो असामाजिक तत्व डराते-धमकाते हैं। मेरे कब्जे में रहा भूखंड 8500 फीट का ही मिला। इसमें से साढ़े 4 हजार वर्ग फीट जमीन  बेच दी। अब मेरे पास 4 हजार वर्गफीट जमीन बची है। मेरे द्वारा खरीदी गई जमीन के सारे दस्तावेज मेरे पास है, लेकिन मौके पर बाहुबलियों ने आतंक मचा रखा है।

-राजेंद्र धाकड़, खातेदार

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