जिसकी दहाड़ से कांप उठता था रणथम्भोर – आज सलाखों में कैद लाचार आखिरी सांसे ले रहा है।

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ustad1[2]उदयपुर। जिसके पैरों की धमक से धरती कांप उठती थी, जिसकी दहाड़ सैंकड़ों किलोमीटर के जंगलों में हवा को चीरती हुई सभी को डरने पर मजबूर कर देती थी। आज हिन्दूस्तान का वही सबसे बलवान जानवर जिन्दगी की आखिरी सांसे गिन रहा है। वही बहादूर ‘उस्ताद’ निरंकुश अधिकारियों और अपराधी सरकार की  तानाशाही का खामियाजा भुगत रहा है, जिसे इंसानों की गलती की वजह से चालिस गज के एन्क्लोजर में बंधक बनाकर रखा गया है। क्या यही है हमारा संविधान ?  क्या यही है इंसानी कानून ?
हालाकि सरकारी अधिकारी यह भी साबित नहीं कर पाए कि ‘उस्ताद’ आदम खोर हो गया है। वे ‘उस्ताद’ के हाथों किसी भी मानव की मौत की एक भी नजीर सामने नहीं ला पाए है। एक बेजुबान जानवर को मिली इस तरह की सजा देखकर लगता है कि आज हम आजाद भारत में नहीं बल्कि गुलामी की जंजीरों से जकड़े भारत में रह रहे हैं।
हम बात कर रहे है दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर जिले की जो छह माह से एक बदनामी का दंश जेल रहा है। उस समय रणथम्भौर के घने जंगलों से वन विभाग के स्वयं भू न्यायाधीशों के फरमान पर टाईगर 24 ( उस्ताद ) को उदयपुर के बायलोजिकल पार्क के एक छोटे सेे एन्क्लोजर में लाकर बंधक बनाया गया था। लेकिन अपराध यहीं नहीं थमा इस घायल बेजुबान के पिंजरे के चारो तरफ ग्रीन नेट का पर्दा लगवा दिया गया ताकि वो किसी को देख तक नहीं सके। नूर और बच्चों से दूर होने का गम अभी उस्ताद के जहन से गया ही नही था कि उसे ऐसी बिमारी ने जकड़ लिया कि चिकित्सकों को भी पता नहीं चल पाया। अभी तो ‘उस्ताद’ की हालात बद से बदत्तर हो गई है।

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रणथम्भौर अभ्यारण्य की शान रहे टी – 24 को बिना वन मंंत्रालय को सूचित किए  गत 16 मई को उदयपुर के सज्जन गढ़ बायलोजिकल पार्क में शिफ्ट कर दिया गया। उस दौरान पूरे देश के वन प्रेमियों ने इस घटनाक्रम का काफी विरोध किया था, लेकिन निरंकुश नौकर शाहों ने किसी की एक न सुनी। मामला सार्वजनिक होने के बाद वन मंत्री राजकुमार रिणवा ने अपने विभाग के बचाव में बयान दे डाला कि उस्ताद के रणथम्भौर में होने से असुरक्षा होगी। उस्ताद को यहां पर लाकर वनकर्मियों और पशु चिकित्सकों ने आॅब्जर्व करना शुरू कर दिया। उस्ताद केे एन्क्लोजर के पास किसी के भी जाने की अनुमति नहीं थी। वन अधिकारी रोजाना बुलेटिन जारी करके उस्ताद की स्थिति के बारे में बताने लगे,लेकिन सभी गुमराह करते ही दिखाई दिए। क्योंकि कोई भी चिकित्सक उस्ताद की असली बिमारी को नहीं पकड़ पाया। उस्ताद के एन्क्लोजर के पास ही शेरनी दामिनी का एन्क्लोजर था। केयर टेकरों का मानना था कि  दामिनी की दहाड़ सुनने के बाद उस्ताद की चहल कदमियां बड़ी है। लेकिन 23 नवम्बर से उस्ताद के हालात फिर बिगड़ने लगे उसने खाना पीना छोड़ दिया। बाहर से आए चिकित्सकों ने उस्ताद को ईलाज शुरू कर दिया लेकिन किसी को बिमार का पता नहीं चला ऐसे में माना ये जा रहा था कि उस्ताद के टूल पास नहीं हो रहा है,लेकिन उस्ताद का पेट लगातार फूलता ही जा रहा था। पिछले दो दिनों से इण्डियन वैटेनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट का दल उस्ताद की तिमारदारी में लगा है। इस दल का मानना है कि उस्ताद की आहार नली में रूकावट और कान्सटीपेशन की शिकायत है। शुक्रवार को सोनोग्राफी भी की गई लेकिन कोई अधिकारिक जवाब नहीं आने से साफ नहीं किया जा सकता है कि उस्ताद की हालत अभी कैसी है। वैसे माना यह जा रहा है कि उस्ताद का आॅपरेशन करना पड़ेगा और उसी से उसकी हालात में सुधार होगा।
उस्ताद को वापस रणथंभोर भेज देना चाहिए :
रणथम्भौर अभ्यारण्य से उदयपुर लाकर कैद किए गए सोनेहरी शेर ‘उस्ताद’ को तुरन्त वापस उनके परिवार के पास भेज दिया जाना चाहिए। वैसे भी हमारी न्याय व्यवस्था अंतिम इच्छा पूरी करने का आदर्श सिद्धांत स्थापित करके दुनिया में अपान सिर उंचा कर रखा है। इस मामले में देशभर के वन्यजीव प्रेमियों ने राजस्थान सरकार की कड़ी निन्दा की, लेकिन राजसत्ता और उसके कारिन्दों ने अभी तक कोई ध्यान नहीं दिया है। दामिनी की दहाड़ उस्ताद को अपनी पत्नी नूर की याद दिलाती है। वह अपने बच्चों से दूर है। इस प्रकार की निर्मम प्रताड़ना लगातार आखिर क्यों दी जाती रही।

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