पुलिस ने डकैती पर पाया काबू, अन्य सारे अपराध अनियंत्रित
चोरों का आतंक बढ़ता रहा
पुलिस का शिकंजा चोरों पर भी कमजोर रहा क्योंकि आज़ादी के वक्त राÓय में अगर अपराध होते थे, उनमें चोरी के मामले सबसे अधिक थे। 1947 में 8058 मामले दर्ज हैं, जो 201& में बढ़कर 28928 हो गए। अगर रिकॉर्ड की बात मानें तो यह अपराध चार गुना तक बढ़ा है, लेकिन एक पहलु यह भी है कि सबसे अधिक अगर कोई अपराध होता है, तो वह है चोरी और चोरी के कई मामले थाने में दर्ज भी नहीं किए जाते है। किसी भी अधिकारी और थाने की अगर सबसे बड़ी कमजोरी है, तो वह उस थाना क्षेत्र में कोई चोरी की वारदात होना। आला अधिकारी इस बात को मानते हंै कि चोरी के कई मुक़दमे दर्ज ही नहीं किए जाते।
उदयपुर। आजादी के बाद जितना विकास बाकी सारे क्षेत्र में हुआ उतना ही विकास अपराधों में भी हुआ है। 67 सालों में राजस्थान में अपराधियों के हौसले बुलंद हुए है, और क़ानून को ठेंगा बताते हुए कई क्षेत्रों में अपराध में भारी वृद्धि हुई है। पुलिस के पिछले 67 सालों के रिकॉर्ड तो यही बताते हैं। इसमें अगर सबसे अधिक चिंता का विषय हैं तो आजादी के बाद बलात्कार की घटनाओं में बीस गुना वृद्धि होना।
साथ ही बलवा और गुटों के संघर्ष और दंगे भी बढ़े हैं। अगर किसी अपराध को पुलिस ने कम किया है, तो वह है डकैती।
रेप केस में बीस गुना वृद्धि
राÓय के पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार ऐसा लगता है कि सच में उस वक्त लोग भले हुआ करते थे, क्योंकि 1947 से 1974 तक 27 सालों में पूरे राÓय में पुलिस रिकॉर्ड में एक भी रेप का मुकदमा दर्ज नहीं है। 1975 में 164 रेप के मुक़दमे दर्ज हुए, जो की 201& में 20 गुना तक बढ़ते हुए &285 तक पहुंच गए। बढ़ते बलात्कार के मामले यह दर्शाते हैं कि जो समाज आज़ादी के वक्त साफ़ सुथरा था, अब उसका चेहरा बदल कर विकृत हो गया है। हालांकि पुलिस अधिकारियों की अगर बात मानें, तो इन में कई मामले झूठे होते हैं या फिर कई समय तक आपसी सहमति से होते हैं, लेकिन जब किसी बात को लेकर अनबन होती है, तो महिला द्वारा रेप का मुकदमा लगा दिया जाता है। ख़ासकर आदिवासी क्षेत्रों में यह Óयादा होता है और रेप के मुक़दमें वहां गांव-ढाणियों में अधिक दर्ज होते हैं। अधिकारी कहते हैं कि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता की रेप के मामले पहले के मुकाबले अब बढ़ोतरी हुई है। इसके कई कारण है सामाजिक, आंतरिक, घरेलु, बाहरी, युवाओं की सोच में माहौल की वजह से जो विकृति पैदा हुई है, यह भी एक कारण है। पुलिस वैसे इन पर लगाम लगाने की पूरी कोशिश कर रही है।
डकैती पर लगी लगाम
आज़ादी के बाद अगर राजस्थान पुलिस ने सबसे अधिक लगाम लगाई है, तो वह है डकैती पर। 1947 में पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार &20 मामले दर्ज हैं, जबकि 201& में सिर्फ 59 मामले ही रिकॉर्ड में दर्ज है। आज़ादी के बाद डकैती का ग्राफ निरंतर गिरता रहा, बाकी अपराध चाहे बढे हो और कभी घटे हो, लेकिन यह अपराध एक ऐसा है जिस पर पुलिस ने अपना पूरा शिकंजा कसा। इसकी वजह अधिकारी बताते हैं कि पहले डकैत हुआ करते थे, लेकिन धीरे-धीरे कइयों को समर्पण करवा दिया। कइयों को गिरफ्तार कर आतंक ख़त्म कर दिया।
बलवा, दंगों में भी आगे
दंगों की बात करें, तो इसका ग्राफ उतरता चढ़ता रहा और 1947 से आज की तुलना में तो दंगे कम हुए है, लेकिन बीच के सालों में 10 से 15 गुना तक बढ़ गए थे। 1947 में जहां दंगों के 772 मामले दर्ज हैं, वही 201& में 542 लेकिन 2004 के बाद कम हुए उसके पहले इनकी संख्या में इजाफा होते हुए 1997 में बढ़कर 21565 तक पहुंच गए थे। 2002 में इनकी संख्या 7178 दर्ज की गई। उसके बाद मामलों में कमी आना शुरू हुई, जो 201& में सिर्फ 542 मुक़दमे ही दर्ज है। अधिकारियों का कहना है यह सिर्फ सांप्रदायिक दंगों का ही रिकॉर्ड नहीं है। दंगे का मतलब पांच से अधिक लोग मिलकर किसी पर हमला करे, वह भी दंगे की श्रेणी में आता है। हालांकि उनका मानना है कि सांप्रदायिक दंगे भी कई सालों में बहुत अधिक हुए है। यह जब एक बार कही शुरू होते हैं, तो राजनैतिक से प्रेरित होकर राÓयभर में बढ़ाते चले जाते हैं। हत्या के रिकॉर्ड पर अगर नजऱ डाले, तो यह भी निरंतर बढ़ता हुआ चार गुना हो गया है। 1947 में जहां राÓयभर में 421 मामले दर्ज किये गए थे, वही 201& में यह बढ़कर 157& हो गए हैं।