-कलेक्ट्रेट, कोर्ट और तहसील में खुलेआम लोगों से हो रही है लूट, तीनों कार्यालय में Èैला है दलालों का जाल
उदयपुर। जिला कलेक्ट्रेट, तहसील और कोर्ट जिले के बड़े और अनुशाषित कार्यालय माने जाते हैं, मगर यहा मंजर ही उलटा है। जिला कलेक्टर के आस-पास ही छोटे-मोटे कार्यों के लिए दलालों का जमावड़ा लगा रहता है। कमीशनबाजी के चलते दलालों का इन कार्यालयों में हस्तक्षेप इतना बढ़ गया है कि बिना दलालों के यहां कोई काम नहीं हो सकता। साथ ही कमीशनखोरी के चक्कर में यह दलाल कई दÈा उलझते हुए भी नजर आ जाते हैं। कोर्ट, जिला कलेक्ट्री और तहसील में इन दलालों का जाल भी दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है।
गिरोह के रूप में एजेंट कर रहे हैं काम: इन प्रशासनिक अमलों में एजेंट गिरोह के रूप में भी काम करते हंै, जिसमें नेताओं से सांठ-गांठ रखने वाले छुट भैय्या नेता और असमाजिक तत्व शामिल है। इन कार्यालयों के परिसर के आस-पास चाय की थडिय़ों, केबिनों, नाश्ते की दुकानों, टाइपिंग की दुकानों पर जमा रहते हैं और हर आने वाले पर नजऱ और उनकी बातों को सुनकर उनके काम में अपनी दलाली जोड़कर हस्तक्षेप करते हंै। अधिकतर शहर से बाहर से आए लोगों को ये अपना शिकार बनाते हंै। इन सब की जानकारी कई आला अधिकारियों
भी है, लेकिन वे इस बात पर मौन धारण किए रहते हंै।
प्रमाण पत्र बनवाने में होड़: इन कार्यालयों में निगरानी रखने वाले दलाल ख़ास तौर पर मूल निवास, आय प्रमाण-पत्र आदि जैसे प्रमाणपत्र बनवाने आये लोगों की निगरानी रखते हैं और उन्हें अपने जाल में Èांसकर उनसे मोटी राशि वसूलते हैं। कई बार एक ही ग्राहक को लेकर ये एजेंट आपस में भी उलझ जाते हैं।
तीन से चार गुना कीमत: जब क्रमददगारञ्ज दलाली के खेल की तह में गया और इन कार्यालयों में घूमने वाले दलालों से मूल निवास, जाति प्रमाण पत्र बनाने की बात की, तो दलालों ने २०० से ३०० रुपए तक की मांग की, जबकि यह प्रमाण पत्रों प्रशासनिक स्तर पर निशुल्क है। कोई सरकारी Èीस नहीं है और नोटेरी तथा शपथपत्र के 30 से 50 रुपए तक का शुल्क लगता है। वैसे तो कलेक्ट्रेट में सभी प्रमाण पत्र बनवाने के लिए लोक सेवा गारंटी अधिनियम के तहत एक समय सीमा तय की गई है, जिसके तहत सात दिन में मूल निवास, तीन दिन में आय प्रमाण पत्र और 15 दिन में जाति प्रमाण पत्र बनाकर देना तय है। इसके बाद भी यदि कोई व्यक्ति किसी खास वजह से एक दिन में प्रमाण पत्र चाहता है, तो तहसीलदार की विशेष अनुमति से प्रमाण पत्र बनवाया जा सकता है। ये एजेंट लोग ऐसे जरूरत मंद लोगों से अधिक कीमत वसूलते हैं। अपनी सेटिंग से काम करवा देते हैं। कई बार ये एजेंट लोगों की मजबूरी और हाव-भाव देखकर अपनी रेट भी बढ़ाते रहते हैं और इनके चंगुल में अक्सर ग्रामीण और महिलाएं अधिक आती है।
टाइपिंग की दुकानों पर भूमाÈियाओं का जमावड़ा
कोर्ट और तहसील कार्यालय के बाहर स्थित टाइपिंग की अधिकतर दुकानों पर भूमाÈियाओं का जमावड़ा रहता है। यही नहीं कई बार रजिस्ट्री के लिए आए ग्रामीणों के कागजातों पर भी इनकी नजऱ रहती है। यदि कोई ग्रामीण इनके चंगुल में Èंस जाए, तो ये लोग उसकी जमीन हड़पने से भी नहीं चुकते। इन मामलों में टाइपिंग और Èोटो स्टेट की दुकान मालिक की भी मिलीभगत रहती है। ये दुकानों के मालिक इन भूमाÈियाओं के लिए मुखबिरी का काम करते हैं और इसके बदले भूमाÈियाओं से रकम वसूलते हैं।