‘बच्चों में भावात्मक ज्ञान की कमी’

Date:

terapanth-3आध्यात्मिक प्रशिक्षण कार्यशाला में महिलाओं ने बताए आदर्श अभिभावक की परिभाषा
उदयपुर, आज के अभिभावकों की परिभाषा बदल गई है। सिर्फ उन्हें ब्रांडेड कपड़े पहनाना, अच्छे जूते-मोजे दिलाना, बड़ी बड़ी होटलों में खाना खिलाना और फिर बाहर पढऩे भेज देना बस इन्हीं सब को अभिभावकों ने अपनी जिम्मेदारी मान लिया है। यही कारण है कि आजकल के बच्चों में शैक्षिक ज्ञान तो आ जाता है लेकिन व्यावहारिक और भावात्मक ज्ञान नहीं आ पाता।
ये तथ्य महिलाओं ने व्यक्त किए आदर्श अभिभावक कैसे बनें विषयक आध्यात्मिक कार्यशाला में जिसका आयोजन मंगलवार को श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से तेरापंथ भवन में किया गया।
प्रतियोगिता में श्रीमती आजाद तलेसरा ने कहा कि अभिभावकों को आदर्श बनने के लिए घर का वातावरण हल्का रखना चाहिए। बच्चों के साथ हल्की-फुल्की भी मारपीट बिल्कुल न करें। उनके लिए समय निकालें। अपनी हर छोटी बड़ी बातें बच्चों के साथ शेयर करें। आजकल के बच्चे समझदार हैं। वे आपकी समस्याओं को समझ सकते हैं। भले ही समस्या का समाधान नहीं कर सकेंगे लेकिन उसमें साझेदार जरूर बनेंगे। इसी से आपको अपनी समस्या हल्की लगने लगेगी। बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखें लेकिन उन्हें उसी समय हाथों हाथ टोकें नहीं। बाद में उचित समय देखकर उन्हें सचेत अवश्य करें। निज पर शासन फिर अनुशासन की परंपरा का पालन करें। जो काम आप नहीं कर सकते तो उसे दूसरों को करने के लिए आप कैसे कह सकते हैं। साथ ही अपनी खीझ बच्चों पर न निकालें। सबसे बड़ी बात कि बच्चों के लिए किए गए कार्यों का उन पर अहसान न जताएं। कभी उन्हें यह महसूस न होने दें कि आपने उन पर कोई अहसान किया है।
terapanth-1एक अन्य प्रतिभागी कशिश पोरवाल ने कहा कि अभिभावक बनना कोई जॉब नहीं है। बच्चों को बिना मतलब भी प्यार करें। उनके खाने-पीने का ध्यान रखें। पौष्टिक आहार दें। आप बाहर भले ही कैसे भी हों लेकिन घर में आने के बाद सहज हो जाएं। बच्चों को अनुशासन में रहने की सीख दें। श्रीमती बसंत कंठालिया ने कहा कि बच्चों के स्वभाव पर उसके माता-पिता और घर परिवार के माहौल का भी प्रभाव पड़ता है। अगर आप झूठ बोलेंगे तो बच्चा भी झूठ बोलेगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि पिता के घर में होने के बावजूद बच्चे से कहलवा देना कि कह दो, पापा नहीं हैं, वह भी यही सीखेगा। निर्मला दुग्गड़ ने कहा कि आज के माता-पिता के पास समय नहीं है। बच्चों में इससे कुंठा जाग्रत होती है। आज के बड़े बड़े इंस्टीट्यूट आईआईएम, आईआईटी जैसे संस्थान के बच्चे भी आत्महत्या कर लेते हैं। बच्चों से भावनात्मक जुड़ाव रखें। स्कूल से आने के बाद उनसे उनकी दिन भर की गतिविधियों के बारे पूछें, अध्यापकों के बारे में पूछें। कभी कभी स्कूल जाकर अध्यापकों से अपने बच्चों के बारे में जानकारी करते रहें। उसे ऐसा ज्ञान दें कि बच्चा आपका नाम रोशन करें।
संगीता चपलोत ने कहा कि बच्चों को जो नहीं पढ़ाते, वे शत्रु होते हैं लेकिन आज के युग में इसका उल्टा हो गया है कि बच्चों को बार बार माता-पिता को यह कहना पड़ता है कि क्या इस दिन के लिए तुम्हें पढ़ाया था? मतलब बच्चों में संस्कार बिल्कुल नहीं रहे हैं। बच्चे स्कूल में अध्यापकों के तो घरों में नौकरों के भरोसे रहते हैं। ऐसे में बच्चों को कैसे संस्कार मिल सकते हैं? चारित्र और नैतिकता का बच्चों में विकास हो रहा है या नहीं? इस पर ध्यान देना आवश्यक है।
सरोज सोनी ने कहा कि बच्चा अगर घर-समाज में रहेगा तभी वह कुछ सीख पाएगा। अभिभावकों से ही बच्चा सीखता है। बच्चों को देशभक्ति, ईमानदारी की प्रेरणा देनी होगी। संगीता पोरवाल ने कहा कि आज के युग में भौतिक संसाधनों, शिक्षा की दौड़ में बस भाग रहे हैं। सब कुछ पढ़ रहे हैं, सुन रहे हैं, देख भी रहे हैं लेकिन अपने घर में जाते ही सारी लिखी-पढ़ी-सुनी बातें भूल जाते हैं और अपने असली स्वरूप में आ जाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। संतों की बातें सुनकर कुछ उन पर अमल भी करना चाहिए। हर बच्चे की अलग अलग क्षमता होती है। हर बच्चा डॉक्टर, इंजीनियर नहीं हो सकता। बौद्धिक, शारीरिक के साथ बच्चे के भावनात्मक विकास पर भी ध्यान देना चाहिए। परिस्थितियों से जूझने की शक्ति उसमें पैदा करें, आदर्श अभिभावक वही होंगे।
सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि अगली कार्यशाला 24 जून को होगी। इसमें महिलाओं के सर्वांगीण विकास विषय रहेगा जिस पर महिलाओं को अपने विचार रखने होंगे। उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हर कार्यशाला में वक्ताओं की संख्या निरंतर क्रमश: बढ़ती जा रही है। अधिक से अधिक महिलाएं अपने विचार व्यक्त करें, ऐसी अपेक्षा है। उन्होंने बताया कि अगले माह कुल 12 आध्यात्मिक कार्यशालाओं के आयोजन के बाद जुलाई में होने वाली कार्यशाला में सामूहिक टेस्ट होगा जिसके विजेताओं को क्रमश: 5000, 3000 तथा 2000 रुपए का इनाम दिया जाएगा।
प्रतिभागी महिलाओं के लिए जैन हाउजी का आयोजन किया गया। शताब्दी गीत से कार्यक्रम का आगाज शशि चह्वाण, मंजू फत्तावत, सीमा कच्छारा, एवं सरिता कोठारी ने किया। पिछली आध्यात्मिक प्रतियोगिता में आयोजित स्पर्धा की विजेता श्रीमती आजाद तलेसरा को 30 में से 30 अंक प्राप्त करने पर, प्रतिभा इंटोदिया और संगीता कावडिय़ा को 29.5 अंक तथा बसंत कंठालिया एवं शशिकला जैन को 29-29 अंक प्राप्त करने पर विजयलक्ष्मी मुंशी एवं कंचन देवी नगावत ने पारितोषिक प्रदान किया।
मई में जन्मदिन वाली महिलाओं बसंतमाला पोरवाल, जसवंत देवी डागलिया, कल्पना जैन, मंजू इंटोदिया, निर्मला पोरवाल, राजकुमारी जैन, संगीता कावडिय़ा, सुचिता मोटावत, सुनीता नंदावत, सुशीला कोठारी, रूपीबाई मारू, पारुल डागलिया एवं प्रभा कोठारी का माल्यार्पण कर उपरणा ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। संगीता पोरवाल ने पे्रक्षाध्यान के माध्यम से मानसिक संतुलन के प्रयोग करवाए। संचालन सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने किया वहीं आभार सरोज सोनी ने जताया। कार्यशाला में सहयोग मीडिया प्रभारी दीपक सिंघवी, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष धीरेन्द्र मेहता, मंत्री अभिषेक पोखरना ने दिया।

Shabana Pathan
Shabana Pathanhttp://www.udaipurpost.com
Contributer & Co-Editor at UdaipurPost.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

Motherless.com Review | LUSTFEL

Motherless.com is among those...

Enjoy enjoyable and engaging conversations inside our bi guy chat room

Enjoy enjoyable and engaging conversations inside our bi guy...

Benefits of cross dressing dating

Benefits of cross dressing datingThere are many benefits to...