उदयपुर, 8 अगस्त। मुनिश्री तरूण सागर ने बी.एन. कालेज ग्राउण्ड में आयोजित कड़वे प्रवचन की श्रृंखला के दूसरे दिन प्रतिदिन घटने वाली छोटी-छोटी घटनाओं का उल्लेख करते हुए भक्तों को सावचेत किया की वे गृहस्थ जीवन के उलझन में डालकर विषम न बनने दें। फुंसी का इलाज फुंसी रहते ही करलें, उसे घाव न बनने दें अन्यथा परेशानी बढ़ती जाएगी।
उन्होंने भक्त को तीन प्रकार बताए – भक्त, विभक्त और कमबख्त। जो भगवान से जुड़ा हुआ है वह भक्त है, जो संसार में बंटा हुआ वह विभक्त और जो न इधर है न उधर है वह कमबख्त है। उन्होंने जीवन को स्वर्ग बनाने के लिए पहला सबक दिया कि दीमाग को ठण्डा रखना सीखो। दूसरों कि गलतियों को माफ करो और स्वयं की गलतियों को स्वीकार करो। सम्यक दृष्टिï बनाओ यानि की दुख में से सुख को खोजने का प्रयास करो। यह कला सत्संग में आने से ही मिल सकती है। मुनिश्री ने कहा की जब व्यक्ति बोलना कम करके सुनने ज्यादा लग जाता है तो उसका जीवन स्वर्ग बनने से कोई रोक नहीं सकता। आलोचना, विरोध और बुराई जैसे जहर को पीना सीखो। दुनिया में जहर की दुकानें गांव-गांव में मिल जाएगी लेकीन अमृत की नहीं। अगर अमृत पाना है तो सत्संग में आना होगा।नव दम्पतियो के बारे में कहा की जहां समर्पण है वहां स्वर्ग है, जहां तर्· है वहां नर है, टकराव है और फिर बिखराव है। इस टकराव और बिखराव को रोकने के लिए समर्पण का साथ जबान को काबू में रखना जरूरी है।
प्रारम्भ में गुरूपूजा और पाद प्रक्षालन का लाभ माधवलाल, राजकुमार, हर्षवर्धन अखावत तथा अशोक शाह ने लिया। अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन कीया गया। धर्मसभा में बालिकाओं द्वारा भक्तिगीत की प्रस्तुति दी गई। शाकाहार अपनाने के लिए विष्णु सुहालका द्वारा संकल्प पत्र भरा गया। संचालन प्रकाश नागोरी द्वारा कीया गया।