मोदी लहर पर अर्जुन सवार गुटबाजी में फंसे रघुवीर

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उदयपुर। उदयपुर संसदीय सीट पर आठ प्रत्याशियों के बीच राजनीतिक समर की तैयारी शुरू हो चुकी है, लेकिन खास मुकाबला कांग्रेस एवं भाजपा के बीच ही होगा, क्योंकि अन्य प्रत्याशियों का फिलहाल कोई खास राजनीतिक वजूद यहां नहीं दिखाई पड़ रहा है। इधर, भाजपा प्रत्याशी अर्जुनलाल जहां मोदी लहर पर सवार होकर वोटर्स को आकर्षित करने में एक पायदान ऊपर नजर आ रहे हैं, वहीं कांग्रेसी प्रत्याशी रघुवीर मीणा कांग्रेस की गुटबाजी में फंसे दिखाई पड़ रहे हैं।
भाजपा में उत्साह : जनजाति प्रत्याशी के लिए आरक्षित उदयपुर लोकसभा सीट पर भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में सात सीटों पर जीत हासिल की है, वहीं कांग्रेस के पास मात्र एक सीट झाड़ोल (फलासिया) है। शेष उदयपुर शहर, उदयपुर ग्रामीण, खेरवाड़ा, सलूंबर, गोगुंदा, आसपुर तथा धरियावद में भाजपा का परचम है। वैसे भी तीन जिलों में बंटे इस संसदीय क्षेत्र का भौगोलिक आधार भी जनजाति को समाहित किए हुए हैं। ऐसे परिदृश्य में इस सीट पर आदिवासी वोटों का विभाजन होना निश्चित है, वहीं जीत का आधार अन्य व स्वर्ण जातियों के मतों पर ही निर्भर करेगा।
अर्जुन को मिल सकता है लाभ : भाजपा के प्रत्याशी अर्जुनलाल मीणा को जहां कांग्रेस विरोधी लहर का लाभ मिल सकता है, वहीं भाजपा कार्यकर्ताओं के एकजुट होकर उनके समर्थन में जुटने से मोदी लहर पर सवार अर्जुन की चुनावी नाव को गति मिल रही है। मंडल स्तर से लेकर जिला स्तरीय कार्यकर्ताओं का सुव्यवस्थित चुनाव-प्रचार अर्जुन को आगे बढऩे के लिए उत्साहित कर रहा है। अर्जुन को वसुंधरा राजे के नजदीक माना जाता है और वे जनजाति मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष है। युवा होना तथा क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं के लगातार संपर्क में रहना उनके लिए लाभदायक साबित होगा। इसके साथ संघ का जी-जान से उनके समर्थन में जुट जाना भी निश्चित रूप से भाजपा का वोट बैंक बढ़ाएगा।
कांग्रेस में गुटबाजी : कांग्रेस प्रत्याशी रघुवीर मीणा में स्वच्छ छवि, निष्कलंक कार्यशैली, मिलनसारिता आदि गुण है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निकटस्थ माने जाने वाले रघुवीर को लंबे समय से सीपी जोशी और उनके समर्थकों का विरोध झेलना पड़ रहा है। वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में भारी मतों से जीत एवं मंत्री पद के लिए उपयुक्त होने के उपरांत भी सीपी जोशी के विरोध के चलते उन्हें मंत्री पद से वंचित रहना पड़ा था। उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में वे सांसद चुने गए तथा उनके स्थान पर उनके विधानसभा क्षेत्र सलूंबर में हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी बसंती देवी कांग्रेस की विधायक चुनी गई। इधर, उदयपुर ग्रामीण की पूर्व विधायक सज्जन कटारा से भी उनकी तकरार रही है। श्रीमती सज्जन कटारा पूर्व मंत्री स्व. खेमराज कटारा की पत्नी है तथा कटारा को सीपी जोशी का निकटस्थ माना जाता है। इसी निकटता के चलते कटारा के पुत्र विवेक कटारा युवक कांग्रेस के प्रदेश महासचिव है, तो विवेक की पत्नी सुखबीर कटारा गिर्वा पंचायत समिति की प्रधान है। सज्जन कटारा का आरोप है कि सांसद रघुवीर ने उदयपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली एक भी पंचायत के विकास कार्य के लिए धनराशि उपलब्ध न करवाकर उन्हें हतोत्साहित किया है। उनका यह भी आरोप है कि विधानसभा चुनाव में रघुवीर ने भीतरघात किया और वे हार गई। यही कारण है कि ऊपरी तौर पर तो वे कांग्रेस के साथ है, लेकिन आंतरिक तौर पर वे रघुवीर की जड़े काटने में जुटी है। इधर, शहर जिलाध्यक्ष नीलिमा सुखाडिय़ा का रूख भी स्पष्ट नहीं है। युवक कांग्रेस भी अभी सक्रिय नहीं हुई है। कुछ कार्यकर्ता व्यक्तिगत निकटता के कारण रघुवीर के समर्थन में प्रचार जरूर कर रहे हैं, लेकिन युवक कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में नहीं। सीपी जोशी से जुड़े कांग्रेस कार्यकर्ता भी अभी खुलकर रघुवीर के समर्थन में नहीं उतरे हैं। वर्तमान में एक ही परिवर्तन हुआ है, जिसमें देहात जिलाध्यक्ष लालसिंह झाला उनके समर्थन में उतरे हैं, क्योंकि उदयपुर विधानसभा सीट से लालसिंह झाला का टिकट कटवाने में सीपी जोशी ने अहम भूमिका निभाई थी। झाला इससे खिन्न होकर जोशी से विमुख हो गए। झाला का देहात जिला क्षेत्र में वर्चस्व होने के साथ ही गोगुंदा विधानसभा क्षेत्र में भी अच्छा प्रभाव है। इस प्रभाव और वर्चस्व का लाभ रघुवीर को मिलेगा, ऐसी उम्मीद जताई जा सकती है। इधर वर्षों तक कांग्रेसी नेताओं की चाटुकारिता कर पार्टी के नाम पर धन-यश कमाने वाले कुछ कार्यकर्ता केवल नाम के लिए पार्टी के साथ जुड़े हैं, जो रघुवीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

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