अखिल भारतीय मुशायरे में पढ़े बेतहरीन कलाम

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mushyre me klam pesh karte hue shayar (3)मैं नही कहता हर एक चीज़ पुरानी ले जा, मुझको जीने नही देती वो निशानी ले जा,
सच को कागज पे उतरने में हो खतरा शायद, मेरी सोची हुई हर बात जुबानी ले जा
उदयपुर, आकाशवाणी उदयपुर के 47 वे. स्थापना दिवस पर तीन दिवसीय कार्यक्रम के आखिरी दिन 28 मार्च की शाम को रेल्वे ट्रेनिग संस्थान सभागार में पूरे देश से तशरीफ लाये शायरों ने अपने-अपने कलाम सुनाकर अखिल भारतीय मुशायरा में आमंत्रित श्रोताओं को वाह वाह कहने पर मजबूर कर दिया।
मुशायरे के आरंभ में शायर मेहमानों का स्वागत करते हुए उप महानिदेशक (कार्यक्रम) श्री माणिक आर्य ने कहा कि इस मुशायरे में उर्दु अदब की शायरी ग़ज़ल, ऩज्म को लेकर देशभर के शायर आज हमारी महफील में मौजुद है। दुश्यंत कुमार ने कहा कि मुझमें रहते है करोड़ो लोग चुप कैसे रहु अब सल्तनत के नाम एक बयान है।
मुशायरें में पठानकोट से पधारे मशहूर शायर राजेन्द्र नाथ रहबर ने अपना कलाम भूल जाना मुझे आसान नही है इतना, जब मुझे भुलना चाहोगे तो याद आउंगा सुनाई। दिल्ली के नंदानूर ने अपने कलाम में कहा हम आपकी चाहत से दामन न छुड़ा पाये कुछ अश्क थे जो अपनी पलको में उतर आये पेश की। नीमच के शायर प्रमोद रामावत ने अपने कलाम में कहा आज पानी मिल गया है, कल कहां से लायेगी, बार मे बैठी है गंगाजल कहा से लायेगी सुनाई। असद अली असद ने धरती के हाथ अपने ही खंजर से कट गये, दो बेटे एक मां के थे फिरकों में बंट गये। शाहिद अजीज की नज्म पत्थर समझ के फैंका मुझे आसमान पर अब देखना मैं गिरता हॅू किसके मकान पर, और उदयपुर के ही खुर्शीद नवाब ने देष भक्ति से ओतप्रोत अपनी रचना- ये मादरे हिंद मेरा चमन मेरा चमन है,ये खाक गोया मेरा बदन मेरा बदन है, हर दर्जा मोहब्बत मुझे खुर्शीद है इससे और क्यो न हो ये मेरा वतन मेरा वतन है सुनाकर खुब दाद बटोरी। आबिद हुसैन अदीब ने अपनी ग़ज़ल में मारका मुश्किल था लेकिन हमने सर कर ही लिया रफ्ता रफ्ता हमने तेरे दिल में घर कर लिया सुनाई। डॉ. सरवत खान अपने कलाम मुझको अपना समझ के की है जफा कैसे कह दूॅ वो मेहरबां न रहा…….पेश की। मुशायरे में उदयपुर के शायर मुष्ताक चंचल ने हास्य व्यंग्य से भरपूर नज्म जानते जब कुछ है मगर करे क्या? अरे कौन चक्कर में पड़े हमें क्या सुनाकर श्रोताआंे को गुदगुदाया। बडौदा से आये शायर डॉ. सैयद अली नदीम ने अपनी शायरी में बया किया- जरा सी भी लाओ जो ताबे मुहब्बत खुल फिर तो हर एक बाबे महुब्बत जो है अस्ल में तो शराबे मोहब्बत पेश कर महफिल में समां बांधा। दिल्ली के सुरेन्द्र शजर ने अपने कलाम में कहा कि मैं नही कहता हर एक चीज़ पुरानी ले जा, मुझको जीने नही देती वो निशानी ले जा, सच को कागज पे उतरने में हो खतरा शायद मेरी सोची हुई हर बात जुबानी ले जा सुनाई। मुशायरे में एजाज अकमल बासंवाड़ा ने भी अपने कलाम पढ़े। कार्यक्रम का संयोजन कार्यक्रम अधिकारी जे.पी. पण्ड्या व मंच संचालन वरिष्ठ उद्घोषक दीपक मेहता और राजेन्द्र सेन ने किया। कार्यक्रम के अंत में निदेषक अभियात्रिकी सतीष देपाल ने आभार व्यक्त किया।
इस समारोह की रिकार्डिग का प्रसारण आकाशवाणी उदयपुर से दिनांक 2,3 तथा 4 अप्रेल 2014 को रात्रि 9.15 से होगा। इस समारोह के तीनो दिन कार्यक्रमों रिकार्डिग कर प्रसारण दूरदर्शन जयपुर द्वारा किया जायेगा।

Shabana Pathan
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