जयपुर। “इस शहर ने हमें बहुत कुछ दिया, पेट भरने को खाना और तन ढंकने को कपड़ा, लेकिन साथ ही हमें मिली हवस से भरी नजरें। कभी कोई राह चलता रूक कर गंदे-गंदे इशारे करता है, तो कभी हमें खरीदने की कोशिश। कई लोगों ने मेरी जवान होती बेटी की बोली तक लगाई। हम फुटपाथ पर भले ही रहते हैं, पर हमारी इज्जत किसी महल वाले से कम नहीं है, मैंने साफ मना कर दिया। कह दिया फटा पहन लेंगे, भूखे रह लेंगे पर बेटी नहीं बेचेंगे।”
डबडबाई आंखों से कही जाती यह दास्तान है गवर्नमेंट हॉस्टल के पास फुटपाथ पर आशियाना बसाए बैठी देवली (बदला हुआ नाम) की। सालों से फुटपाथ पर जिंदगी गुजार रही देवली को पेट पालने से ज्यादा चिंता अपनी दो बेटियों की इज्जत बचाने की रही। आज उसकी बड़ी बेटी पूजा (बदला हुआ नाम) की भी शादी हो चुकी है और वह भी तीन बच्चों की मां बन गई है। पर चिंता बदस्तूर कायम है।
अब पूजा को यह डर है कि कहीं बड़ी बड़ी कारों में घूमते, फुटपाथ पर अपनी भूखी नजरें टिकाए हवस के भेडियों की निगाहें उसकी बेटियों पर न पड़ जाएं। उनको हर वक्त किसी अनहोनी का डर सताता है। जब उनसे कहा कि क्यों डर काहे का, पुलिस है तो सही। तो जाने उनकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो। कहने लगी, दीदी, कोई स्थायी ठिकाना हो तो पुलिस वाले भी सुनें। हम तो बेघर लोग हैं और यही हमारी इज्जत का सर्टीफिकेट भी। कुछ भी कहते ही दुत्कार ही मिलती है। एक ही बात सुनने को मिलती है कि, फुटपाथ पर रहोगे तो ये सब तो चलता ही रहेगा।
लड़कियों को समझते हैं बिकाऊ
देवली ने बताया कि वे आमेट के गोसुंडी के रहने वाले हैं, पति की कई सालों पहले मौत हो चुकी है। कमाई के लिए जयपुर आए और फुटपाथ पर रहना शुरू कर दिया। सजावटी सामान बेचकर जिंदगी बसर कर रहे हैं, लेकिन फुटपाथ पर बैठी लड़कियाें को भी लोग बिकाऊ समझ बैठते हैं। मेरी बेटी पूजा की इज्जत की कई बार बोली लगाई गई, लेकिन मैं बेटी नहीं बेचती। चिंता ऎसी हुई कि मैंने कम उम्र में ही बेटी की शादी कर दी। आज पूजा भी सामान बेचकर अपना परिवार पाल रही है। बाइस साल की उम्र की पूजा के तीन बच्चे हैं, जिसमें सबसे बड़े की उम्र सात साल है। लेकिन मां को पता है उसकी रक्षा के लिए अब पति है।
रैनबसेरों में हुआ आबरू पर हमला
बड़ी-बड़ी चमकती आंखों में कुछ कर गुजरने की चाह, जबान पर चढ़े अंग्रेजी के शब्द, सलीके से बंधे बाल, गोरे-साफ सुथरे चेहरे वाली पूजा भी शहर की घूरती निगाहों से परेशान है। कहा, पहले सोचा फुटपाथ पर पड़े हैं, इसलिए लोग खरीदने की कोशिश करते हैं। रैनबसेरों में आसरा लेने की सोची, लेकिन वहां तो स्थिति और भी खराब रही। रात होते ही छेड़छाड़ होना शुरू हो गया। गरीब हूं, लेकिन इज्जत पर हुआ यह हमला न सह सकी, इसलिए फिर से फुुटपाथ को घर बना लिया। सामान बेचने के दौरान कई बार लोग हाथ लगाने की, छूने की कोशिश करते हैं, लेकिन मैं क्या बोल सकती हूं, पेट तो पालना ही है। लोगों की सोच अब भी पुरानी ही है। चुनाव के समय सब हमारी मदद करने का वादा करते हैं, लेकिन जीतने के बाद न नेता आते हैं ना ही मदद। आज तक कोई स्वयंसेवी संस्था भी हमारी मदद को आगे नहीं आई।
मैं पढ़ाऊंगी बेटियों को ताकि न रहना पड़े फुटपाथ पर
पूजा कहती है, मेरी जिंदगी जैसे गुजर रही है, मुझे चिंता नहीं, लेकिन बçच्चयों को भूखी आंखों का सामना नहीं करने दूंगी। एक-एक रूपया जोड़ रही हूं। बच्ची को स्कूल में भर्ती करवाऊंगी। गांव में भाई भी सरकारी स्कूल में पढ़ता है, अगले साल बेटी को भी स्कूल भेजूंगी। बस चाह यह है कि वो फुटपाथ पर जिंदगी ना काटे।