थोथे निकले प्रशासनिक वादे
जनप्रतिनिधियों ने भी दिए झूठे आश्वासन
उदयपुर। सभी प्रकार के आश्वासनों से ऊब चुकी तेजाब पीड़िता को बुधवार को अंतत: कलेक्ट्रेट के सामने आमरण अनशन पर बैठना ही पडा।
उल्लेखनीय है कि गत ३० अक्टूबर को छेडछाड का विरोध करने पर शालू जैन पर समाज कंटकों ने तेजाब डाल दिया था। तेजाब से झुलसी युवती अब तक सात बार अपनी सर्जरी करवा चुकी है। अपराधियों के विरूद्घ न्यायालय में मामला विचाराधीन है। इन चार वर्षों में अपना उपचार कराते हुए आर्थिक एवं मानसिक रूप से टूट चुकी शालू से राष्ट्रीय महिला आयोग, राज्य महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग के अध्यक्षों सहित केन्द्रीय मंत्री एवं राज्य के कई मंत्री मिलकर उसकी सहायता का आश्वासन दे चुके है।
तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी पीड़िता को मुआवजे सहित आवास आदि की सुविधाएं मुहैया कराने का आश्वासन दिया था। लेकिन तमाम आश्वासनों के उपरांत प्रशासन द्वारा अभी तक इस पीड़िता को राहत के नाम पर फूटी कोडी भी नही दी गई ओर न ही आवास की सुविधा मुहैया कराई गई है। महिलाओं के तथाकथित सशक्तिकरण के खोखले दावे करने वाले जनप्रतिनिधि, स्वयं सेवी संगठन एवं प्रशासन अब इस पीड़िता से किनारा करने लगे है। यदि यहीं हादसा प्रदेश या देश की राजधानी में हो जाता तो ’निर्भया’ की भांति राष्ट्रीय मुद्दा बन जाता लेकिन शालू एक छोटे से शहर में अपनी राहत का जुगाड नहीं कर पा रही है।
सभी ओर से थक हारकर आमरण अनशन पर बैठी शालू को आज पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा भी दिनभर धरने पर नहीं बैठने के लिए धमकियां दी जाती रही है। अतिरिक्त जिला कलेक्टर यासीन पठान से अब इस संबंध में प्रशासन का पक्ष जानना चाहा तो उन्होंने धरने के संबंध में ही अनभिज्ञता दर्शा दी जबकि शाम आठ बजे वे स्वयं इस पीड़िता पर धरना उठाने के लिए दबाव बनाते रहे।
बहरहाल एक पीड़िता को अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए पीड़ित अवस्था में भी न्याय के लिए सडक पर बैठकर गुहार लगाने को बाध्य होना हमारे समाज में नारी को दिए जाने वाले सम्मान पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।
tejab dalney walo ko pakad kar tejab sey nahala do