उदयपुर। ग्वालियर से पहली बार उदयपुर अपनी पेपरमेशी शिल्प कला के अद्भुद उत्पाद लेकर आए कल्लू प्रजापति द्वारा हाथ से सड़ा गला कागज, गोंद, मुल्तानी मिट्टी, फेवीकोल, ईमली के बीज के आटे के मिश्रण से तैयार किए गए उत्पाद को दूर से देखने पर तो टेराकोटा मिट्टी के लगते है, लेकिन छूने पर कागज का अहसास होता है। इतनी अद्भुद पेपरमेशी शिल्प कला को देखने के लिए जनता की नजर बरबस उन उत्पादों पर टिक जाती है। रूडा (रूरल नॉन फार्म डवलपमेंट एजेंसी) की ओर से टाउनहॉल में आयोजित दस दिवसीय राष्ट्रीय क्राफ्ट मेला ‘गांधी शिल्प् बाजार 2013Ó में ग्वालियर से आए कल्लू प्रजापति बताते हैं कि यह उनका पुश्तैनी धंधा है। पेपरमेशी शिल्प कला में विभिन्न रंगों का प्रयोग करते हुए लावर पॉट, वॉल हेंगिंग फ्रेम, भगवान गणेश, राधा-कृष्ण, धन कुबेर की मूर्ति, हाथी जोड़ा बनाया है, जो दूर से आकर्षित करती है। देश के विभिन्न स्थानों पर लगाई गई स्टॉल पर जनता का काफी सहयोग मिला है। ये पेपरमेशी उत्पाद पानी से धोने पर भी खराब नहीं होते हं। मेले में ये उत्पाद 100 रुपए से लेकर 1000 रुपए तक में उपलब्ध है। रूडा के महाप्रबंधक दिनेश सेठी ने बताया कि मेले में पहली बार गुजरात, पांडिचेरी से भी शिल्पकार आए है, जो अपनी अनोखी कला का प्रदर्शन एंव उत्पादों की बिक्री कर रहे हं।
दस दिवसीय राष्ट्रीय क्राफ्ट मेले में खरीदारी तेज
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