भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बांबे हाई कोर्ट के फ़ैसले को बरकारार रखते हुए महाराष्ट्र के थ्रीस्टार होटलों से नीचे के होटलों में डांस बारों पर लगी रोक हटा दी है.
ये बार 2005 में राज्य सरकार ने बंद करवा दिए थे.
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद मुंबई के इन होटलों, बारों के मालिकों को अपने यहाँ डांस कार्यक्रम के लिए फिर से लाइसेंस लेना पडे़गा.
समाचार एजेंसियों के मुताबिक़ मुख्य न्यायाधीश अल्तमश कबीर और न्यायाधीश एसएस निज्जर की खंडपीठ ने यह फ़ैसला सुनाया. फ़ैसला सुनाते हुए न्यायाधीश निज्जर ने कहा कि उन्होंने धारा 19 (ए) के तहत बार बालाओं के अधिकार को नहीं छुआ.
बरकार रखा फ़ैसला
मुंबई पुलिस ने एक आदेश के तहत बार डांस पर प्रतिबंध लगा दिया था. बांबे हाई कोर्ट ने अप्रैल 2006 में उसके इस आदेश को असंवैधानिक बताते हुए डांस बारों पर लगी रोक हटा दी थी. इसके खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.
इस पर बार डांसरों ने दलील दी थी कि नृत्य ही उनकी कमाई का जरिया है. उनके पास कमाई का कोई और जरिया नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद याचिकार्ताओं के वकील ने संवाददाताओं को बताया कि बांबे हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में पुलिस क़ानून की धारा 33 ए और 33 बी को असंवैधानिक बताया था.
उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फ़ैसले को बरकरार रखा है.
उन्होंने कहा कि हज़ारों डांसरों ने इस फैसले के लिए काफी लंबा इंतजार किया. लेकिन उन्हें इंतज़ार का मीठा फल मिला.
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई की अगर डांस बारों पर लगी रोक नहीं हटाई गई तो इस काम में लगी हज़ारों डांसरों को देह व्यापार में धकेल दिया जाएगा. उनकी इस दलील से अदालत ने सहमति जताई.
मुंबई में 2005 में डांस बारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसके पीछे सरकार का तर्क था कि इससे युवा पीढ़ी बरबाद हो रही है और अपराध व वेश्यावृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है.
एक अनुमान के मुताबिक़ मुंबई के क़रीब 14 सौ डांस बारों में क़रीब एक लाख बार बालाएं काम करती थीं. बार डांसर फ़िल्मी गीतों पर डांस करती थीं और दर्शक उनपर पैसे लुटाते थे.