कमिश्‍नर अंकल! आपने तो प्रॉमिस किया था, फिर क्‍यूं हुआ ऐसा?

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20-delhi-01नयी दिल्‍ली (अंकुर कुमार श्रीवास्‍तव)। महज चार महीने पहले दिल्‍ली के 16 दिसंबर ने पूरे देश को खौला दिया था। फेसबु‍क, ट्विटर, अन्‍य सोशल नेटवर्किंग साइट और सड़क से लेकर संसद तक विरोध था। तब अपनी दिलदार दिल्‍ली के कमिश्नर साहब ने सामने आकर बड़ी-बड़ी डींगे हांकी थीं। लंबे-चौड़े वादे और दावे किए थे। पर नतीजा क्या निकला? सिर्फ तारीख बदली, तस्वीर नहीं। वो 16 दिसंबर की मासूम थी और ये 15 अप्रैल की गुड़िया (5 वर्षीय रेप पीडि़ता का काल्‍पनिक नाम) है। नाम अलग, तारीख अलग, जगह अलग पर जो एक जैसा है वो है दरिंदगी की कहानी और कमिश्नर साहब।

वैसे जो हम आपको बताने जा रहें हैं वो भूला नहीं जा सकता मगर फिर भी आगे की बात करने से पहले इसका जिक्र करना जरुरी है। 16 दिसंबर 2012 की रात दिल्‍ली की सड़कों पर दरिंदगी का नंगा नाच हुआ था। पैरामेडिकल छात्रा के साथ चलती बस में 6 लोगों ने सामूहिक बलात्‍कार किया और फिर उसके गुप्‍तांग में जंग लगी रॉड डाल दिया गया था। जिस्‍मानी प्‍यास बुझा लेने के बाद हैवानों ने छात्रा को नग्‍न अवस्‍था में चलती बस से फेंक दिया था। उसे इलाज के पहले सफदरगंज और फिर सिंगापुर भेजा गया जहां उसकी मौत हो गई थी।

 

कमाल है ना कमिश्नर साहब! इस हादसे के बाद आपने दिल्‍ली और दिल्‍ली वालों के साथ क्‍या क्‍या वादे किये थे। गुस्‍से में ही सही कमीशनर साहब ने दिल्‍ली की पूरी फोर्स सड़क पर उतार दी थी। रात 12 बजे अफसरों को बिस्‍तर से जगाकर सड़के छनवाईं थी ताकि महिलाएं सुरक्षित रहें। मगर क्‍या इसी दिन के लिये? वाकई शर्म आती है कि जिस दिल्‍ली ने फकत 4 माह पहले गैंगरेप जैसा दर्द झेला हो उसी दिल्‍ली के सामने आपके तमाम दावों और वादों के बावजूद आज फिर वैसा ही जख्‍म है।

बार-बार इन जख्‍मों को झेलने से तो अच्‍छा होगा कि आप खुद ही माफी मांग लें और कह दें कि ”भैया! दिल्‍ली में महिलाओं की हिफाज़त हमारे बूते की बात नहीं है, लोग खुद ही अपने घरों की इज्‍जत की हिफाज़त करें”। कमिश्‍नर साहब इससे ये तो होगा कि हम आपके भरोसे नहीं बैठेंगे। बुरा तो लगेगा और बात चुभेगी भी पर आप ही देखिये कमिश्‍नर साहब शहर की खाकी अपनी आदतों के सामने बेकाबू है। वो अपनी साख बचाने के लिये थप्‍पड़ भी मार देती है। कमिश्‍नर साहब आपके जांबाजों का काम अब सिर्फ कमजरों को थप्‍पड़ मारना रह गया है।

आप खुद ही देख लीजिए आपके सुरमाओं के सामने आपकी दिल्‍ली में एक 5 साल की बच्‍ची को चार दिनों तक नोंचा गया। लिखने में कलम कांप जाती है पर आपको बताना जरुरी है कि उस मासूम के प्राइवेट पार्ट में 200ML की शीशी और मोमबत्‍ती डाल दी गई। जब इस बात की शिकायत करने उस मासूम का बाप आपके पुलिस के पास पहुंचा तो उसे मुंह बंद रखने के लिये बतौर रिश्‍वत 2000 रुपये दिया गया। हम कहेंगे तो आपको बुरा लगेगा पर ये बात खुद वो बाप कह रहा है जिसकी बेटी देश के सबसे बड़े अस्‍पताल के आईसीयू में जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रही है।

प्रदर्शन के दौरान किसी महिला ने पुलिस को चुडि़यां दिखाई तो आप गुस्‍से में आ गये। अब आप ही बताईए कि आपका एक जांबाज महिलाओं को थप्‍पड़ मार रहा है और एक मुंह बंद रखने के लिये रिश्‍वत दे रहा है तो ऐसे में उन्‍हें बहादुरी का मेडल पहनाया जायेगा? धन्‍य तो आप भी है जो मुखिया होने के बावजूद तमाशबीन बैठे हैं। आप ही देखिये कमिश्‍नर साहब 16 दिसंबर की रात वाली लड़की 13 दिन तक मौत से जूझती रही थी और फिर भगवान को प्‍यारी हो गई। उस दौरान देश अपने अंदर ही लड़ रहा था। अब फिर ये 5 साल की बच्‍ची उसी हैवानियत के चलते मौत से लड़ रही है। अगर उसे कुछ हो गया तो आप जिदंगी में कभी जीत नहीं पाएंगे क्‍योंकि 16 दिसंबर के बाद आपने बड़े-बड़े दावे किये थे। अब बस आप भी यही दुआ मांगें कि उस बच्‍ची को कुछ ना हो।

कहना गलत ना होगा कि तारीखें बदली है लेकिन सूरत वही है.. दर्दनाक माहौल है, सिसकते लोग, लोगों का खून खौल रहा है, मर्दानगी पर थूकने को दिल कर रहा है और दिल्ली पुलिस के पास अफसोस करने का ना तो वक्त है और ना ही जिगर.. वह बस खाकी पहन कर लोगों को डराने का काम कर रही है.. सवाल यह है कि क्या आज का कानून वाकई में अंधा है? कमिश्नर साहब… दामिनी और गुड़िया की गलती क्या है?

 

Shabana Pathan
Shabana Pathanhttp://www.udaipurpost.com
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