गाजियाबाद, आर्य समाज गांधी नगर में रामनवमी पर्व पर आचार्य यषपाल मेधार्थी के ब्रह्मत्व में महायज्ञ सम्पन्न हुआ। यज्ञोपरांत आचार्य यषपाल जी ने मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम चन्द्र के जीवन पर प्रकाष डाला।
मुख्य वक्ता के रूप में डॉ0 भगवान देव शास्त्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि कुछ लोग मानते हैं कि राम अवतार थे और उन्होने आकर यहॉं पर लीलायें कीं। आर्य समाज मानता है कि राम अपने आचरण से, अपने कार्यों से, राम भगवान बनें। राम वह बन सकता है जिनमें निम्न गुण हों, वह उत्साह से भरा हुआ हो, दीर्घ सूत्री न हो, क्रिया विधी को जानकर कार्य करे, व्यसनों से दूर रहें, वीर हों, कृतज्ञ हों, दृढ निष्चयी हों, ऐसे व्यक्ति आज भी राम कहलाने के अधिकारी हो सकते हैं अर्थात राम बने बनाये नहीं आते, राम बनने के लिये प्रयास करना पडता है, अपने आप को राम की तरह तपाना पडता है और आदर्षों पर चलना पडता है। इसी में राम नवमी की सार्थकता हैं।
डॉ0 वीरपाल विद्यालंकार ने अपने उद्बोधन में कहा कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने कहा था – मैं नहीं यहॉं संदेष स्वर्ग का लाया किन्तु भू को ही स्वर्ग बनाने आया। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने मानवीय मर्यादाओं का विपरीत परिस्थितियों में भी पालन करना सिखाया। अतः हमें भगवान राम के बताये हुये पथ पर चल कर मानवता का मान बढाना चाहिये। और धरती को स्वर्ग बनाना चाहिये।
कार्यक्रम की अध्यक्षता पूज्य स्वामी चन्द्रवेष जी ने की और मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के जीवन के कई प्रेरणादायी संस्मरण सुनाये जिससे श्रोतागण भाव-विभोर हो गये।
समारोह का कुषल संचालन आर्य समाज गॉंधी नगर के मन्त्री श्री वेदव्यास जी ने किया।
इस अवसर पर आर्य केन्द्रीय सभा के महामंत्री प्रवीण आर्य, दीनानाथ नागिया एवं हर्ष बवेजा आदि ने अपनी रचनाओं के माध्यम से श्रीराम के जीवन का गुणगान किया।
इस अवसर पर मुख्य रूप से पं0 हृदेष शास्त्री, स्वर्ण वासन, यषपाल वासन, सत्यकेतु सिंह, चॉंद कक्कड, पुष्पा बत्रा, अंजना आर्य, चन्द्रमोहन गोगिया, पुष्प बलदेव राज डुडेजा, सुभाष राय, राजेष लूथरा आदि मौजूद रहे।