एक दिन की जयंती, एक दिन की श्रद्धा, और एक दिन का सम्मान।

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इतने दिनों से याद नहीं आया गांधी जी का चश्मा, धुल फांकती प्रतिमा।

उदयपुर। मोहनदास करमचंद गांधी जी हाँ वही जो एक लाठी लेकर निकले थे भारत को आज़ाद कराने अहिंसा के मार्ग से और अपने मकसद में कामयाब भी हुए और आज़ादी भी दिलवाई। आज जब उनके सम्मान की बात आती है तो यह सम्मान सिर्फ एक दिन में सिमट कर रह जाता है। बाकी के 364 दिन उनकी प्रतिमा को वेसे ही धुल खाने के लिए छोड़ दिया जाता है जैसे उनके आदर्शों उनकी कही बातों को हम कही कोने में डाल देते है।
जी हाँ शहर के सबसे बड़े बाग़ गुलाब बाग़ में लगी माहात्मा गांधी जी की प्रतिमा 364 दिन उपेक्षित रहती है। कभी उसकी साफ़ सफाई या रख रखाव की तरफ किसी जिम्मेदार का ध्यान नहीं जाता। सिर्फ २ अक्तूबर यानी गांधी जयंती के एक दिन पहले उसकी साफ़ सफाई करवाई जाती है। यहाँ तक की इस प्रतिमा का चश्मा पिछले काफी समय से नहीं है कोई असमाजिक तत्व लेकर चला गया या क्षतिग्रस्त कर दिया, लेकिन ना तो गुलाब बाग के मालिकाना हक वाली पीडब्ल्यूडी ने इस तरफ कोई ध्यान दिया ना ही इसका मेंटिनेंस करने वाले निकाय नगर निगम ने ध्यान दिया। जब हमने प्रतिमा की इस उपेक्षा का कारण नगर निगम के महापौर से जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि गुलाबबाग के मालिकाना हक का ही झगडा नहीं सुलझा हम तो सिर्फ रख रखाव करते है। या अह गुलाब बाग़ अधीक्षक या पी डब्ल्यू डी विभाग के अधिकारियों को चाहिए कि ध्यान रखे। खैर यह झगडा काफी पुराना है और इसका गाँधी जी की प्रतिमा की साफ़ सफाई का कोई लेना देना नहीं वह तो महापोर जी को भी पुचने पर कुछ तो कहना था सो उन्होंने कह दिया लेकिन असल बात तो यही है कि आज गांधी जी भी हमे बस २ अक्तूबर को ही याद आते है वह भी फूल मालाएँ चडाने के लिए। उनके आदर्शों पर विचार करने के लिए नहीं।
चाहे जिम्मेदार ध्यान रखे ना रखें चाहे कोई गांधी वादी गांधी जी की प्रतिमा को साफ़ करे ना करे लेकिन फिर भी गांधी जी के जो विचार है और जो उनके वचन है उन्हें हर वक़्त याद किये जाते रहना चाहिए सिर्फ एक दिन गांधी जी को याद कर देने से या उनकी प्रतिमा को दूध से नहलाने या फूल मालाएं चढाने से कोई मतलब नहीं जब तक कि उनकी दी हुई शिक्षा उनके विचारों को हम असल जीवन में नहीं उतार लेते।

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