नहीं बदले हैं मुसलमानों के हालातः कुंडू

Date:

131221174115_india_muslim_624x351_ap

मुसलमानों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पिछड़ेपन की स्थिति जानने के लिए गठित सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशों के क्रियान्वयन की हक़ीक़त को जानने के लिए प्रोफ़ेसर अमिताभ कुंडू की अध्यक्षता में बनी समिति ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को सौंप दी है.

131224130011_prof_amitabh_kundu_304x171_bbc_nocreditइस रिपोर्ट में डाइवर्सिटी आयोग बनाने के साथ-साथ कई सुझाव दिए हैं. समिति का मानना है कि कई मामलों में सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशों को लागू किए जाने का असर नज़र आ रहा है.
कुंडू ने कहा, “हमारी समिति का सुझाव है कि क्लिक करें आरक्षण से देश में परिवर्तन लाने की कोशिश की बहुत सी सीमाएं हैं क्योंकि सरकारी क्षेत्र में रोज़गार बढ़ नहीं रहा है बल्कि कम हो रहा है और आरक्षण सरकारी क्षेत्र तक सीमित है.”

उन्होंने कहा, “हमने सिफ़ारिश की है कि डाइवर्सिटी इंडेक्स के आधार पर अगर हम कुछ इंसेटिव दे सकें और इस इंसेंटिव सिस्टम में निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों को शामिल कर सकें तो उसका असर ज़्यादा कारगर साबित होगा.”

उन्होंने साथ ही कहा, “हमने सिफ़ारिश की है कि एक डाइवर्सिटी कमीशन बनाना चाहिए. जिन संस्थाओं ने डाइवर्सिटी को बनाकर रखा है, जिन्होंने अपनी नियुक्तियों में, फ़ायदे देने में अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति-जनजाति का ख़्याल रखा है, लैंगिक समानता का ध्यान रखा है- उसकी एक रेटिंग होगी. उस रेटिंग में जो ऊपर आएंगे उन्हें सरकार की ओर से कुछ छूट दी जा सकती है, कुछ उन्हें फंड दिए जा सकते हैं.”

131221153216_indian_muslims_624x351_ap

 

आरक्षण
प्रोफ़ेसर कुंडू ने कहा,  मुस्लिम समुदाय में ऐसे बहुत से पेशे हैं जिनमें वे अनुसूचित जातियों वाले काम करते हैं. हमने कहा है कि उन्हें भी अनुसूचित जाति के दर्जे में रखना चाहिए, उन्हें भी आरक्षण देना चाहिए. अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए जो क़ानून है (अनुसूचित जाति और जनजाति, अत्याचार निवारण, क़ानून, 1989) उसके दायरे में मुस्लिम समुदाय को भी लाया जा सकता है.”

उन्होंने कहा, “रोज़गार के क्षेत्र में मुसलमानों की ऋण ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं, उन्हें बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए. शिक्षा के क्षेत्र में भी मुस्लिम लड़कियां विशेषकर 13 साल के बाद स्कूल छोड़ देती हैं, उसमें सुधार की ज़रूरत है.”

कुंडू ने कहा, “यह कहना तो ग़लत होगा कि सरकार ने सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशों को लागू करने की कोशिश नहीं की है. उन्होंने योजनाएं बनाई हैं, उन्हें लागू किया है लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि जो परिणाम हासिल होने चाहिए थे वे नहीं हुए.”
उन्होंने कहा, ” गुजरात में मुसलमानों में ग़रीबी की जो दर है वह राष्ट्रीय दर से बहुत कम है, आधे से भी कम है लेकिन ऐसा नहीं है कि गुजरात की यह स्थिति अभी की ही है. आज से 10 साल पहले भी गुजरात में मुसलमानों में ग़रीबी बहुत अधिक नहीं थी.”

 

131212054647_narendra_modi_muslim_624x351_afp

गुजरात के मुसलमान

प्रोफ़ेसर कुंडू ने कहा, “इसके कारण ऐतिहासिक हैं और हमें देखना होगा कि मुस्लिम समुदाय किस तरह के रोज़गार कर रहा है. वह किसान नहीं हैं, वह व्यापार कर रहा है, उनके पास कुछ तकनीकी दक्षता वाली नौकरियां हैं, जिनके आधार पर उनकी आमदनी ठीक है और उनका उपभोग व्यय (जिसके आधार पर ग़रीबी निकाली जाती है) भी अधिक है.”

उन्होंने कहा, “दरअसल गुजरात में मुसलमानों की अच्छी चीज़ें हैं उसके लिए क्लिक करें नरेंद्र मोदी को श्रेय नहीं दिया जा सकता और जो ख़राब स्थिति है उसके लिए भी उन्हें ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.”
कुंडू ने कहा, “अगर आप भेदभाव को मानसिक स्थिति के रूप में देखें तो उसे मापने का कोई ज़रिया हमारी समिति के पास नहीं है. हमने यह देखा कि केंद्र के जो कार्यक्रम राज्य सरकार के मार्फ़त लागू होते हैं उनकी गुजरात में क्या स्थिति है?

उन्होंने कहा, “दो-तीन कार्यक्रमों में हमने देखा, जैसे कि छात्रवृत्ति के कार्यक्रम में गुजरात सरकार जो कर सकती थी उसने वह नहीं किया. इन मामलों में उसका प्रदर्शन अन्य राज्यों के मुकाबले कमज़ोर रहा.”

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

Join the best chat online lesbian community today

Join the best chat online lesbian community todayChat online...

what exactly is an old cougar dating?

what exactly is an old cougar dating?There is no...

Tips for making the most of granny personal websites

Tips for making the most of granny personal websitesIf...