उदयपुर मुस्लिम दस्तरखानो की जितना जायका बिरयानी , पुलाव , ज़र्दा , तंदूरी चिकन आदि से है उससे कही ज्यादा जायका हलीम से है | हिन्दुतान ही नहीं दुनिया में गरीबों के दस्तरखानों से लेकर अमीरों कि पार्टियों तक सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला खानों में अपनी जगह बनाने वाली डिश का नाम है हलीम| हमारे यह मुहर्रम का महिना वेसे तो इमाम हुसैन की याद और उनकी शहादत लिए आता है | लेकिन इस महीने में जिस खास डिश का इंतजार रहता हे वो हे हलीम| मुहर्रम की पहली तारीख से ही यहाँ हर गली मोहल्ले में आप हलिम की डेगे पकती हुई देख सकते है जो सिलसिला ४० दिन तक चलता रहता है , और इसके जायके की दीवानगी देखिये की इसको खाने की दावत कही नहीं देनी पड़ती लोग बस देख के चले आते है और देखते ही देखते चन्द घंटों में डेगे खाली हो जाती है | जयका कुछ एसा होता है की लोग उँगलियाँ चाटते रह जाएँ |
हिंदुस्तान , पकिस्तान , बंगलादेश , अफगानिस्तान ,इरान आदि मुल्को में बहुत पसन्द किया जाने वाली इस डिश के बारे में क्या आपने कभी सोचा है इसकी शुरुआत केसे कहाँ से हुई और आज दुनिया में किस तरह बनाया जाता है | हैदराबादी हलिम को सितम्बर २०१० में जी.आई. प्रमाण पत्र मिला दुनिया की जुबान हलीम के जायके को चखने के लिए बेताब होगई और लोगो का रुख हेदराबादी हलिम की तरफ होने लगा |
गेहूं, दालें, सब्जियों को एक साथ डालकर करीब ७ से ८ घंटे तक लगातार पकने के बाद बनने वाला ये खाना इतना फायदेमंद है की डॉक्टर खुद भी इस कि खूबियों के कायल है | मोटा रेशा होने की वजह से ये न सिर्फ शरीर को प्रोटीन देता हे बल्कि आयरन मैग्नीशियम और बहुत सारी केलोरी भी देता है साथ ही इन्सान के पाचन तंत्र को भी बेहतर करता है \
हलीम की शुरुआत को लेकर कई बातें है ,लेकिन इतिहास के और धार्मिक धारणाओं के तहत हलीम को नुह अलेहिस्स्लाम ( मुस्लिम पैगम्बर ) के समय में तैयार किया गया था जब उनकी कश्ती जूदी पहाड़ पर आकर रुकी थी तब उसके पास बचे हुए सामानों से बनाया गया खाना हलीम कहलाया मुहर्रम के दिनों में इसकी इसलिए अहमियत है क्यों की नुह अलेहिस्सलाम की कश्ती जूदी पहाड़ पर मुहर्रम की १० तारीख को ही आकर रुकी थी |
हिन्दुस्तान में हलीम
हिन्दुस्तान में हलीम की शुरुआत शैख़ नवाब जंग बहादुर के वक़्त से मानी जाती है यमन के सफ़र के दौरान उन्होंने वह हलिम का जायका चखा और उन्हें इतना पसंद आया की वह की वहा से नवाब हलिम बनाने वाले कारीगरों को ले आये \ और तब से हिन्दुअतान में हलिम की शुरुआत हुई तो आज हर गली मोहल्लो की शान और सबसे ज्यादा पसन्द किया जाने वाला पकवान बन चूका है |
और अब तो ये आलम है की हलिम की पार्टियाँ होती है | रोज़ा इफ्तार के लिए में भी कई जगह अहम् डिश होती है | और कई मुज्स्लिम बाहुल्य इलाको में ये कारोबार का दर्ज़ा भी लग चूका है |
अलग अलग जगह ये अलग अलग नमो से जाना जाता है इरान में इस को “हरीसा” कहते हे तो हिन्दुस्तान ,पाकिस्तान में इसको हलीम कहते हे और हमारे यहाँ इस को “खिचड़ा” भी कहते हे