चीनी दासता से जूझते तिब्बत ने आंरभ किया गांधीवादी मुक्ति अभियान

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जनसमर्थन के लिए निकली सत्य की ज्वाला अभियान टीम लेकसिटी पहुंची

आज निकलेगा केण्डर मार्च

उदयपुर, चीन की दासता का दंश झेल रहे तिब्बत का एक प्रतिनिधि मण्डल अपने देश को दासता से मुक्त कराने के लिए जनसमर्थन जुटाने के लिए भारत सहित अन्य देशों में सत्य की ज्वाला अभियान चला रहा है इसी क्रम में यह दल रविवार को उदयपुर पहुंचा तथा यहां सोमवार को केण्डल मार्च कर तिब्बत के समर्थन में आवाज उठाने की मार्मिक अपील करेगा।

यह जानकारी रविवार को यहां लेकसिटी प्रेस क्लब मे आयोजित पत्रकार वार्ता में तिब्बतियन संसद सदस्य करमा येशी ने दी। उन्होंने बताया कि तिब्बत पर चीन की हुकूत पिछले ६० वर्षो से चली आ रही है इसके साथ चीन की अपरिवर्ततीय क्रुरतावादी नीति के चलते तिब्बत की भूमि एवं जनमानस पर जबरन कब्जा करते हुए नर संहार,कारावास, मारपीट एवं उत्पीडन इत्यादि की शृंखला अभी भी चल रही है। इसके बावजूद तिब्बतियों ने अपने धर्म, संस्कृति, भाषा एवं राष्ट्रीयता के प्रति अत्यन्त महत्व दिया है और इसे अब तक संरक्षित रखने का प्रयास करते हुए सत्य की संघर्ष को जीवित रखा हुआ है।

इसी को ध्यान में रखते हुए गत २००८ से समस्त तिब्बत में चीन की हिंसक नीति एवं सैनिकों द्वारा जिस तरह से नरसंहार और कारावास की संख्या दिन प्रतिदिन बढती जा रही है उसका परिणाम कुछ इस तरह से देखा जा रहा है तिब्बती जनता मानव लोक में नरक लोक के भांति असहनीय दुख झेलने पर मजबूर है। अपनी पीडा ओर तिब्बत की सत्य को उजागर करने, परम पावन दलाई लामा की तिब्बत मे वापसी इन मुद्दो पर संयुत्त* राष्ट्र महासंघ, अन्तर्राष्ट्रीय सरकार व गैर सरकार मानवाधिकार आयोग एवं विभिन्न संस्थाओं का ध्यान आकर्षित करने हेतु विवश होकर आत्मदाह कर रहे है। विवशतापूर्ण घट रहे आत्मदाहों की शृंखला इन लोगों के बहुजन हिताययुत्त* दृढ निश्चय, साहस एवं जिज्ञासा को उजारकरने हेतु ६ जुलाई २०१२ क्यों कि यह दिन परम पावन दलाई लामा का जन्म दिवस भी है इसलिए इसी दिन सत्य की ज्वाला का अभियान प्रांरभ किया गया था तब से लेकर लगभग इस तीन महिनों में भारत के २५ प्रान्त, १०० महानगरों में इस अभियान का सम्मपन हुआ। इस दौरान स्थानीय भारतीय एवं तिब्बती जनताओं से हमे जो सहयोग प्राप्त हुए उसके लिएहम आभार प्रकट करना चाहते है। जहां एक और भारत मे अभी भी यह अभियान चलाया जा रहा दूसरी ओर २ सितम्बर २०१२ जो कि तिब्बत का प्रजातंत्र दिवस है उसी दिन पूरे विश्व में यह अभियान चलाया जा रहा है। इसमें उत्तर अमेरिका,योरोप, अप्र*ीका,एशिया, आस्ट्रेलिया सहित ३० से अधिक देशों में यह अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के उदेश्य इस प्रकार है। येशी ने बताया कि अभियान का मुख्य उदेश्य सन १९५९, १९६१, १९६५ के दौरान संयुत्त* राष्ट्र महासंघ में तिब्बत पर रखे गये प्रत्येक तिब्बत में तत्कालीन बन रही गंभीर परिस्थिति को जांचने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि मण्डल को शीघ्रतिशीघ्र भेजने की मांग। तिब्बत में चल रहे तिब्बतियों के आशाओं की पूर्ति के लिए संयुत्त* राष्ट्र महासंघ द्वारा विशेष दायित्व लेने की मांग ।

मेशी के अनुसार इन मांगों को ध्यान में रखते हुए मुख्यतया भारत सहित अन्य देशों में सत्य की ज्वाला का अभियान चलाया जाएगा। जिसमें समर्थकों के हस्ताक्षर लिए जाएंगें। इन हस्ताक्षरों को १०दिसम्बर २०१२ के दिन न्यूयॉर्क स्थित संयुत्त* राष्ट्र के कार्यालय, जीनिवा स्थित संयुत्त* राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग कार्यालय और भारत स्थित संयुत्त* राष्ट्र के शाखा कार्यालयों में देकर इस अभियान का समापन करेंगे।

क्या है तिब्बतियन संसद : तिब्बतियन संसद के सदस्य करमा येशी ने बताया कि निर्वासित तिब्बति विगत ६० वर्षो से भारत की शरण मे है तथा यही उनका मुख्यालय है। तिब्बतियन संसदमें ४३ सदस्य होते है जिनका निर्वाचन पांच वर्ष के अंतराल में भारत मे रह रहे एक लाख तिब्बति करते है। यह संसद निर्वासित तिब्बतियों के मानवाधिकारों की रक्षा एवं देश वापसी के लिए अंतराष्ट्रीय सहयोग से जनसमर्थन जुटाने का प्रयास करती है।

क्रुर सत्य : तिब्बति नागरिक अपने ही देश में अल्संख्यक वाले इस छोटे से देश को अपना सैनिक अड्डा बनाने के उदेश्य से ७५ लाख चीनी तिब्बत में घुसकर स्थानिय नागरिकों को प्रता$िडत कर रहे है। मानवाधिकारों का उल्लघंन करते हुए उन्हे क्रुरतम यातनाएं दी जा रही है। अपने मुल्क की आजादी के लिए ५३ युवा आत्मदाह कर चुके है। यह सिलसिला जारी है। वर्तमान मे भारत मे निवासरत एक लाख १० हजार तिब्बति अपने देश की आजादी का परचम उठाए संघर्षरत है तथा भारत सरकार से अपने राजनीतिक प्रभाव का उपयोग करते हुए समर्थन की अपील कर रहे है।

 

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