उदयपुर। राजस्थान विधानसभा के आसन्न चुनावों में जीत सुनिश्चित करने के लिए चल रही यात्राओं के दौरान हथियारों के प्रदर्शन ने राजनीति पर सामंती और बर्बर प्रभाव को उजागर किया है। यह क्रजनतंत्रञ्ज के लिए कोई अच्छा शगुन नहीं हैं।
भारतीय जनता पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपनी सुराज संकल्प यात्रा में कई जनसभाओं के मंच पर तलवार लहराई, जो उन्हें कार्यकर्ताओं ने भेंट की थी। इसी तर्ज पर राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने भी तीर-कमान उठाकर विपक्ष पर निशाना साधा। ऐसा करके दोनों वरिष्ठ नेताओं ने, प्रतीकात्मक रूप से ही सही, हिंसा के प्रति लगाव को प्रदर्शित किया है, जिसे जनतांत्रिक दौर में कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। एक समय था, जब फूल तोडऩे को हिंसा मानते हुए चरखे पर काते गए सूत की माला पहनकर श्रम की प्रतिष्ठा की जाती थी, लेकिन अब महात्मा गांधी और दीनदयाल उपाध्याय के क्रस्कूलोंञ्ज से निकले नेता एक दूसरे पर, हथियार तानते दिखाई पड़ रहे हैं। इससे साफ होता है कि इनका अपनी-अपनी विचारधाराओं से कितना लेना-देना हैं।